अजय कुमार, लखनऊ
चुनावी बेला में सभी सियासी जमात अपनी ताकत बढ़ाने के लिये हाथ-पैर मार रही हैं। सबके अपने-अपने दावे हैं। कौन बाजी मारेगा ? किसको हार का मुंह देखना पड़ेगा ? कहां किसका किस पार्टी के साथ गठबंधन होगा ? इसको लेकर कयासों का बाजार गर्म है,लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि अबकी से यूपी में मुकाबला चौतरफा होगा। पिछले कई चुनावों में मुख्य मुकाबले में रहने वाली सपा-बसपा को इस बार कांग्रेस-भाजपा कड़ी टक्कर देने के लिये मशक्कत कर रहे हैं। कांग्रेस अपने रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) के बल पर ताल ठोंक रही है तो बीजेपी मोदी के सहारे यूपी में अपनी नैया पार लगाना चाहती है। पार्टियां तो सभी ताल ठोंक रही हैं लेकिन इधर कांग्रेस की तेजी ने सबको अचंभित कर दिया है। प्रदेश में कांग्रेस सशक्त हो रही है। इस बात का कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं पेश किया जा सकता है। लोकतंत्र में जब किसी पार्टी की सफलता-असफलता को भीड़तंत्र की कसौटी पर कसा जाता हो तो कांग्रेस का ग्रा्फ बढ़ रहा है यह हकीकत सामने आती है। लोकसभा चुनाव से पूर्व बीजेपी नेता और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का पैमाना भी तो उनकी जनसभाओं और रोड शो में जुटने वाली भीड़ से ही तो लगाया जाता था। 29 जुलाई को लखनऊ में कांग्रेस युवराज राहुल गांधी पॉलिटिकल रैंप पर चहल कदमी करते हुए कांग्रेसियों में नई जान फूंक गये। रिझझिम फुहारों के बाद हुई तेज बरसात भी कांग्रेसियों का हौसला पस्त नहीं कर पाई। घंटों मंच से लेकर मैदान तक कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता चट्टान की तरह सियासी मोर्चे पर डटे रहे। इन लोंगो में जोश भरने का काम राहुल गांधी ने किया। स्क्रिप्ट पहले से तैयार थी। राहुल ‘नायक’ की तरह आये और अपना किरदार निभाकर चले गये। पीछे छोड़ गये तो सियासी चर्चाओं का अम्बार। यूपी में इससे पूर्व शायद ही राहुल का कोई कार्यक्रम इतना हिट रहा होगा।
राहुल तय समय पर रमाबाई अंबेडकर मैदान पहुंचे। उन्होंने सबसे पहले फ्लाइंग किस कर कार्यकर्ताओं का अभिवादन किया। इससे कार्यकर्ता जोश से भर गए। पूरा कार्यक्रम स्थल कांग्रेस के जयघोष से गंूज उठा। राहुल ने बारिश से तरबतर कार्यकर्ताओं को देखा तो उनका दिल जीतने के लिए कहा,….काश एक बार फिर जोर की बारिश आ जाए और मैं भी पूरी तरह भीग जांऊ। इस समय आप भीगेे हुए हैं और मैं सूखा हूं। मेरी भी इच्छा आपकी तरह भीगने की है। नेता मंच पर बैठे थे। राहुल इसी रैंप पर चहलकदमी करते हुए पहली बार कार्यकर्ताओं के सवालों के जवाब दे रहे थे।कार्यकर्ताओं के उत्साह को देखते हुए राहुल ने गुलाम नबी आजाद और राजबब्बर को रैंप पर बुलाया। उन्होंने भी कुछ सवालों उत्तर दिये । बाद मे शीला दीक्षित,संजय सिंह व अन्य नेता भी रैंप पर आए । दो घंटे के इस शोे के जरिए राहुल ने कई बार कार्यकर्ताओं के दिलों को छुआ। बार- बार तालियों की गड़गड़ाहट बता रही थी कि राहुल उनका उत्साह बढ़ाने में कामयाब रहे है। जिस रैली स्थल के बारे में कहा जाता है, कि इसे भरने की क्षमता सिर्फ बसपा प्रमुख मायावती के पास है, उसी रमाबाई अंबेडकर मैदान में कांग्रेसी झंडे लहरा रहे थे।
कांग्रेसी राहुल के लखनऊ कार्यक्रम की सफलता से गद्गद हैं लेकिन विरोधी कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। पिछले पांच महीने के दौरन अलग-अलग मीटिंग में प्रशांत किशोर ने सभी टिकट चाहने वाले नेताओें से बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की सूची मांगी थी। पीकेे ने सभी टिकट चाहने वालों से 15-15 कार्यकर्ताओं को लाने के लिए कहा था। इस समय यूपी में 9000 लोेग कांग्रेस से टिकट मांग रहे है। इनमें से आधे भी यदि 15-15 कार्यकर्ताओं को लाये होंगे तो कार्यक्रम तो सफल हो ही जायेगा। विरोधी कुछ कहें लेकिन इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि पीके की भीड़ जुटाने की यह रणनीति पूरी सफल रही।
लखनऊ कार्यक्रम की सफलता कांग्रेस नेताओं के सिर चढ़कर बोल रही थी। कांग्रेस की मुख्यमंत्री पर की दावेदार शीला दीक्षित, प्रदेश अध्यक्ष राजब्बर से लेकर प्रभारी गुलाम नबी आजाद तक सब गद्गद थे तो कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर(पीके) के चेहरे पर शुकून देने वाले भाव थे। आखिर उनका पहला शो हिट रहा था। इस कामयाबी से पीके को उर्जा मिली जिसका नतीजा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में देखने को मिला। वाराणसी में लखनऊ से भी बड़ी कामयाबी कांग्रेस और पीके के हाथ लगी।
लखनऊ में राहुल गांधी चेहरा थे तो वाराणसी में पीके ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी पर ‘दांव’ लगाया था। वाराणसी में लखनऊ की तरह जनसभा नहीं रखी गई थी, यहां सोनिया गांधी का करीब छहः किलोमीटर लम्बा रोड शो था। रोड शो में खूब भीड़ जुटी। लोग सोनिया के रोड शो की तुलना मोदी के रोड शो से होने लगी। सोशल मीडिया पर भी सोनिया का रोड शो कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम की वजह से पूरे दिन ‘सोनिया इन काशी’ के नाम से टॉप पर ट्रेंड करता रहा। सोनिया भीड़ को देखकर गद्गद थी,वह हाथ हिला-हिलाकर भीड़ का अभिवादन कर रही थीं, लेकिन अचानक सोनिया की तबीयत बिगड़ने लगी।
एयरपोर्ट पर चार घंटे के इलाज के बाद उन्हें दिल्ली भेज दिया गया,लेकिन तब तक कांग्रेस का काम हो चुका था। पीके की रणनीति यहां भी सफल रही थी। सोनिया की गैर-मौजूदगी में शीला दीक्षित और राजब्बर ने रोड शो की कमान अपने हाथों में ले ली। शीला दीक्षित ने तो घोषणा भी कर दी कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो पूर्वाचल को विशेष पैकेज दिया जायेगा। एक सप्ताह में दो बड़े और कामयाब कार्यक्रम। इससे पहले दिल्ली से कानपुर तक कांग्रेस की बस यात्रा ‘27 साल, यूपी बेहाल’ में भी खूब भीड़ देखने को मिली थी। वाराणसी में सोनिया की तबीयत खराब हो गई तो शीला दीक्षित को स्वास्थ्य कारणों से बस यात्रा बीच में ही छोड़कर वापस आना पड़ा था। इसी तरह से नई जिम्मेदारी संभालने के बाद जब शीला दीक्षित और राजब्बर का प्रथम लखनऊ आगमन हुआ था, तब भी कांग्रेसियों के जोश ने काफी उफान मारा था।
खैर, प्रथम दृष्टया यूपी में 27 वर्षो के बाद कांग्रेस के दिन बहुरते दिख रहे हैं,लेकिन इसमें कितनी हकीकत है और कितना फंसाना है, यह अगले साल बैलेट मशीन खुलने के बाद ही पता चलेगा। कांग्रेस की यूपी में क्या स्थिति है, इसका बारीकी से विश्लेषण किया जाये तो साफ नजर आता है कि भले ही कांग्रेसी तमाम दावे कर रहे हों, लेकिन कांग्रेस के लिये यूपी में राह बहुत ज्यादा आसान नहीं है। सबसे बड़ी बात तो यही है कि 2017 में चुनाव उत्तर प्रदेश विधान सभा के होने हैं,लेकिन कांग्रेसी अखिलेश सरकार से ज्यादा हमले केन्द्र की मोदी सरकार पर करने में लगे हैं। मानो यह विधान सभा नहीं लोकसभा का चुनाव हो। काशी में रोड शो करके भले ही कांग्रेस ने अपनी ताकत दिखा दी हो,मगर यहां से जो संदेश निकला है वह लखनऊ नहीं दिल्ली ही गया है। बात यहीं खत्म नहीं होती है। कांग्रेस ने सियासी बिगुल तो बजा दिया है लेकिन उसे अभी तक यह भी नहीं पता है कि किस पार्टी या नेता के ऊपर कितना हलका या तगड़ा हमला किया जाये। ऐसा लगता है कि भले ही कांग्रेसी ‘एकला चलो’ की बात कर रहे हों, लेकिन कहीं न कहीं अंदरखाने में उनकी नजर छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन पर भी लगी हुई है। सबसे बड़ी बात तो यही है कि फिलहाल कांग्रेसी अकेले ही ताल ठोंक रहे हैं, जब सपा-बसपा और भाजपा भी मैदान में कूदेंगे तब कांग्रेस की जमीनी स्थिति का सही-सही आकलन हो पायेगा।
कांग्रेसी जिस रणनीति के तहत आगे बढ़ रहे हैं उससे तो यही लगता है कांग्रेस सबसे पहले अपने पुराने परम्परागत वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है। कांग्रेस की निगह दलित-ब्राहमण और मुस्लिम समीकरण पर है। यह बात सोनिया के रोड शो में साफ झलक रही थी। रोड शो के लिये जो रास्ता चुना गया था, उसमें मुस्लिम, ब्राहमण और दलित बाहुल्य आबादी वाले इलाके खासकर शामिल थे। वैसे चर्चा यह भी है कि बीजेपी भी कांग्रेस पर जबावी हमला बोलने की तैयारी में है। हो सकता है अगले कुछ दिनों या हफ्तों में बीजेपी भी अमेठी या रायबरेली में ताल ठोंकती मिले। वैसे बीजेपी नेत्री स्मृति ईरानी राहुल के संसदीय क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के बाद से चहल-कदमी कर रही हैं।
लब्बोलुआब यह है कि भले ही कांग्रेस अपनी सक्रियता को लेकर उत्साहित नजर आ रही हो,लेकिन अभी उसे कई पड़ाव पार करना होगा। सोनिया गांधी की सेहत ठीक नहीं रहना कांग्रेस के लिये चिंताजनक है तो प्रियंका को लेकर पार्टी के भीतर दुविधा की स्थिति समझ से परे लगती है।बात राहुल गांधी की कि जाये तो मात्र एक कार्यक्रम की सफलता से यह तय नहीं किया जा सकता है कि राहुल गांधी ने कांग्रेसियों या जनता की नब्ज पकड़ ली है। लम्बे समय से यूपी की जनता ने राहुल गांधी पर भरोसा नहीं किया है, जबकि वह 2009 के लोकसभा चुनाव से लगातार यूपी में कांग्रेस को मजबूत करने के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए थे।मगर कांग्रेस मजबूत होना तो दूर और कमजोर होती गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस ने इतिहास का सबसे बुरा प्रदर्शन किया । राहुल तक को अपनी सीट बचाने के लाले पड़ गये थे।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.