: ढिबरी चैनल का घोषणा पत्र- भाग 4 : शिक्षा मंत्री के सदवचनों एवं सुझावों के बाद हम उत्साह से भर गये और हमें ढिबरी चैनल परियोजना का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल नजर आने लगा। इस भविष्य को और अधिक चमकदार बनाने के लिये हम देश की एक प्रमुख पीआर कंपनी की मालकिन के पास गये, जिसका नाम वैसे तो कुछ और था लेकिन हम अपने लंगोटिया यारों की निजी बातचीत में हम उसका जिक्र रंडिया के नाम से ही करते थे, क्योंकि उसका काम इसी तरह का था। जब वह हमारे संपर्क में थी, तब वह अपने को रंडिया कहे जाने पर कोई शिकायत नहीं करती थी, बल्कि उसे इस नाम से पुकारे जाने पर खुशी होने लगी और बाद में उसने अपना नाम भी यही रख लिया। देखने में वह इतनी सुंदर थी कि उस पर किसी का भी दिल आ सकता था – चाहे वह कितना ही संत हो।
वह दिन के समय देश के राजनीतिक माहौल को गर्म करती थी और रात में किसी अरबपति उद्योगपति अथवा घोटालेबाज मंत्री के बिस्तर को। उसने अपनी शारीरिक एवं मौखिक क्षमता की बदौलत कई संपादकों एवं वरिष्ठ पदों पर बैठे पत्रकारों के लिये आदर्श बन गयी थी। रंडिया जिस पत्रकार से बात कर लेती वह अपने को धन्य समझता। जो लोग टेलीफोन पर हुयी बातचीत को रेकार्ड करके सीडी बना कर अपने मालिक को पेश कर देते उसकी उसकी सैलरी में लाखों रूपये की हाइक हो जाती, उसकी पदोन्न्ति हो जाती और उसकी नौकरी अंगद के पांव की तरह इस तरह पक्की हो जाती जिसे पूरा देश मिलकर भी हिला नहीं सकता था।
एक समय था जब वह मुझ पर भी मेहरबान थी, लेकिन आज तो उसकी हैसियत इतनी उंची हो गयी कि वह मंत्री और सरकार बनाने-बिगाड़ने का खेल करती थी। उससे मिलने का समय मिलना, किसी देवी से मिलने से भी अधिक कीमती था। महीनों तक सैकड़ों बार फोन करने के बाद जब उसने मुलाकात का समय दे दिया तब मैंने समझ लिया कि हमारी दुकान का चलना तय है। असल में जब उसने विदेश में अपने पति को छोड़कर भारत आकर व्यवसायियों, पूंजीपतियों, उद्योगपतियों, मंत्रियों और पत्रकारों से संपर्क बनाने का अपना पीआर का नया व्यवसाय शुरू किया था, तब मैंने ही उसे पहला काम दिया था। धीरे-धीरे जब उसने अपनी शारीरिक प्रतिभा का परिचय देकर मंत्रियों एवं बड़ी-बड़ी कंपनियों के मालिकों से संपर्क बढ़ाना शुरू किया और आखिरकार उसने देश के सबसे बड़े उद्योगपति से काम पाने में सफलता हासिल कर ली। उसने उस उद्योगपति की जरूरतों और इच्छाओं को इतने बेहतर तरीके से पूरा किया कि उन्हें कुंवारे रहने का अपना फैसला सही लगने लगा।
जब मैं उससे मिलने पहुंचा तब उसकी भव्यता को देखकर दंग रह गया कि एक समय दो कौड़ी की महिला आज देश की सिरमौर बन गयी। आलीशान बंगला, विदेशी कारों का काफिला, दर्जनों नौकर, हर कदम पर सुरक्षा गार्ड – ऐसा लगा कि मैं अमरीका के राष्ट्रपति से मिलने जा रहा हूं। उसकी हैसियत से तुलना करने पर मैं बिल्कुल डिप्रेशन में चला गया, एक सेकेंड के लिये तो आंखों के सामने अंधेरा छा गया। मुझे लगा कि टेलीविजन चैनल खोलने के बजाय पीआर कंपनी ही खोलना ज्यादा अच्छा रहता। जब मैं रंडिया के सामने पहुंचा तो साक्षात देवी लग रही थी। मैंने सोचा कि अगर उसका आशीर्वाद मिल जाये तो मेरा भी जीवन सफल हो जाये, इसलिये मैं उसके चरण छूने के लिये झुका लेकिन उसने मुझे छाती से लगा कर अपना आशीर्वाद देकर मुझे धन्य कर दिया। मुझे नहीं पता था कि वह इतनी दयावान और कृतज्ञ है कि वह अपने उपर वर्षों पूर्व किये गये छोटे से छोटे अहसान की कीमत इतनी उदात्त भावना के साथ चुकाती है। मेरे मन में अचानक उसके प्रति श्रद्धा भाव उमड़ पड़ा।
मैंने हिचकते हुये ढिबरी चैनल खोलने की अपनी योजना बतायी और उससे यथासंभव मदद करने का आग्रह किया। वह मेरी योजना सुनते ही खुशी से उछल पड़ी। उसने कहा, ”मैं तो पहले से ही कोई चैनल शुरू करने का मन बना रही थी और अगर आप चैनल शुरू कर ही रहे हैं तो वह इसी चैनल में पार्टनर बनने को तैयार है। असल में हमारा पीआर का काम और चैनल का काम एक ही तरह का होता है। पीआर के काम में जो माहिर हो गया उसे अच्छा संपादक बनने से कोई नहीं रोक सकता। मेरे यहां कितनी लड़कियां हैं जिन्होंने पीआर में महारत हासिल कर ली है और इनसे चैनल में रिपोर्टिंग या एंकरिंग का काम लिया जा सकता है। ये लड़कियां बड़े से बड़े मंत्री का ऐसा इंटरव्यू कर सकती है कि बड़ा से बड़ा पत्रकार नहीं कर सकता। ये लड़कियां ऐसे-ऐसे सवाल पूछकर बड़े से बड़े नेता और मंत्री की बोलती बंद कर सकती है, क्योंकि ये लड़कियां मंत्रियों के बारे में ऐसी बातें जानती हैं जो उनके अलावा कोई और नहीं जानता है। लेकिन हमें किसी की दुकानदारी बंद करने से क्या लाभ, हमें तो अपना काम निकालना है। लेकिन इतना पक्का है कि ये लड़कियां बेहतर पत्रकार साबित हो सकती हैं और मंत्रियों से वे काम भी करावा सकती हैं जो कोई और नहीं करवा सकता है।”
उसकी बातें सुनकर मैं उसकी काबिलियत पर मकबूल फिदा हुसैन हो गया था और अगर मैं फिल्म बनाने के धंधे में होता तो उसपर जरूर एक फिल्म बना डालता और अगर पेंटर होता तो उसकी दर्जनों पेंटिंग बना कर उनकी दुनिया भर में प्रदर्शनी करता। उसका आइडिया सुनकर मुझे चैनल खोलने का अपना फैसला बिल्कुल सही लगने लगा। उसने बताया कि चूंकि मंत्री और उद्योगपति पीआर की लड़कियों की तुलना में चैनलों में काम करने वाली सुंदर लड़कियों को अधिक भाव देते हैं इसलिये अगर आप किसी मंत्री या उद्योगपति के पास किसी महिला पत्रकार को भेजें तो आपका काम जल्दी हो जाता है। लाखों-करोड़ों के विज्ञापन चुटकी बजाते मिल जाते हैं। आपका कोई काम रूका है, तुरंत हो जाता है। इसी कारण से मैं भी अपनी पीआर कंपनी के लिये चैनल में काम करने वाली एक नामी महिला पत्रकार और कुछ और वरिष्ठ पत्रकारों की सेवायें लेती रहती हूं। इन्हीं पत्रकारों की बदौलत मैं बड़े-बड़े उद्योगपतियों का काम कराती रहती हूं। इसमें मुझे इतनी सफलता मिली कि मैंने दलाली का नया बिजनेस शुरू कर दिया जिसे ”लाबिंग” कहा जाता है। यह बहुत सम्मान का काम है और इसमें न केवल मनमाने पैसे मिलते हैं बल्कि इज्जत भी खूब मिलती है। मैंने मंत्री बनवाने और मंत्री हटवाने का काम भी शुरू किया है।
रंडिया ने काफी देर तक मुझे गुरू मंत्र दिया और उसने यह भी कहा कि अगर मैं उसे चैनल में फिफ्टी-फिफ्टी का पार्टनर बना दूं तो वह मेरे पिताजी के नाम को अमर करने के लिये एक भव्य मंदिर बनायेगी। मुझे इसमें कोई दिक्कत नजर नहीं आयी इसलिये मैंने तत्काल हामी भर दी। रंडिया से मिलकर लौटते समय रास्ते भर मुझे आंखों के सामने स्वर्ग के नजारे दिखते रहे। मुझे अफसोस हो रहा था कि चैनल शुरू करने का विचार पहले क्यों नहीं आया। अगर ऐसा हो गया होता तो इस समय मैं स्वर्ग का सुख भोग रहा होता – खैर देर आये, दुरूस्त आये।
(जारी)
लेखक विनोद विप्लव पत्रकार, कहानीकार एवं व्यंग्यकार हैं।