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समाज-सरोकार

एक थी डेल्टा

भारत पाकिस्तान की सीमा पर बसे गाँव त्रिमोही की बेटी डेल्टा, जो इस रेगिस्तानी गाँव की पहली बेटी थी जिसने बारहवीं पास करके रीति रिवाजों में जकड़े समाज की सीमा का उल्लघंन किया था, उच्च शिक्षा के लिए बाहर गयी. उसके मन में कईं सपने थे, जिन्हें वो साकार करना चाहती थी, उन्मुक्त गगन में उड़ना चाहती थी वो, अपने मेहनकश माता, पिता और दलित समुदाय का आदर्श सितारा बनना चाहती थी वो, मगर अफ़सोस यह है की महज 17 वर्ष की डेल्टा इस व्यवस्था की क्रूरता की निर्मम शिकार हो गई. जिन लोगों के संरक्षण में डेल्टा को सुरक्षित मानकर छोड़ा गया था. वे रक्षक ही हत्यारे और बलात्कारी बन बैठे और 29 मार्च 2016 को उसकी बलात्कार के बाद जघन्य हत्या कर दी गई.

<p>भारत पाकिस्तान की सीमा पर बसे गाँव त्रिमोही की बेटी डेल्टा, जो इस रेगिस्तानी गाँव की पहली बेटी थी जिसने बारहवीं पास करके रीति रिवाजों में जकड़े समाज की सीमा का उल्लघंन किया था, उच्च शिक्षा के लिए बाहर गयी. उसके मन में कईं सपने थे, जिन्हें वो साकार करना चाहती थी, उन्मुक्त गगन में उड़ना चाहती थी वो, अपने मेहनकश माता, पिता और दलित समुदाय का आदर्श सितारा बनना चाहती थी वो, मगर अफ़सोस यह है की महज 17 वर्ष की डेल्टा इस व्यवस्था की क्रूरता की निर्मम शिकार हो गई. जिन लोगों के संरक्षण में डेल्टा को सुरक्षित मानकर छोड़ा गया था. वे रक्षक ही हत्यारे और बलात्कारी बन बैठे और 29 मार्च 2016 को उसकी बलात्कार के बाद जघन्य हत्या कर दी गई.

भारत पाकिस्तान की सीमा पर बसे गाँव त्रिमोही की बेटी डेल्टा, जो इस रेगिस्तानी गाँव की पहली बेटी थी जिसने बारहवीं पास करके रीति रिवाजों में जकड़े समाज की सीमा का उल्लघंन किया था, उच्च शिक्षा के लिए बाहर गयी. उसके मन में कईं सपने थे, जिन्हें वो साकार करना चाहती थी, उन्मुक्त गगन में उड़ना चाहती थी वो, अपने मेहनकश माता, पिता और दलित समुदाय का आदर्श सितारा बनना चाहती थी वो, मगर अफ़सोस यह है की महज 17 वर्ष की डेल्टा इस व्यवस्था की क्रूरता की निर्मम शिकार हो गई. जिन लोगों के संरक्षण में डेल्टा को सुरक्षित मानकर छोड़ा गया था. वे रक्षक ही हत्यारे और बलात्कारी बन बैठे और 29 मार्च 2016 को उसकी बलात्कार के बाद जघन्य हत्या कर दी गई.

एक होनहार बेटी की मौत से दलित, बहुजन, मूलनिवासी समाज थोड़ी देर के लिए जागा, धरने भी प्रदर्शन किये.  नतीजतन जनाक्रोश से डर कर राजस्थान की घोर सामंतवादी सरकार ने सीबीआई जाँच का नाटक किया, मगर डेल्टा की मौत के तीन माह गुजर जाने के बावजूद आज तक सीबीआई जाँच होना तो दूर की बात है, ऐसी किसी जाँच के लिए केंद्र सरकार की ओर से नोटिफिकेशन तक जारी नहीं किया गया है.  दलितों की भावनाओं की कितनी कद्र करती है ये समरसता की पैरोकार सरकार, इसका पता इस बात से चलता है कि इसी राज्य में घोषित गुंडों की मौत की जाँच तुरंत सीबीआई को सौंपी जाती है, मगर बहुजन समाज की होनहार बेटी की क्रूर हत्या की जाँच राजस्थान की नाकारा पुलिस करती है.

अब तो ऐसा लगता है कि डेल्टा की हत्या को एक तमाशा बना दिया गया है, समाज की एक प्रतिभाशाली बेटी के शव को कई सरकारी, गैर सरकारी, राजनीतिक, जातीय और प्रशासनिक गिद्द नौंचने में लगे हुए है. रसूखदार आरोपियों को बचाने के लिए स्पष्ट हत्या को आत्महत्या करार दिया गया है. डेल्टा के लिए लड़ रहे वकीलों तक के सुर रातों रात बदल गए है. इस मसले में भी लोग दलाली करने से नहीं चूके, कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि कुछ लोग सड़कों से सीधे स्कार्पियों में आ गये है, छुटभैयों को पार्टी में पद मिल गये है और जिन्होंने सब कुछ जानते हुए भी ख़ामोशी ओढ़े रखी, उन्हें लाल बत्तियां नसीब हुई है. अमानवीयता की पराकाष्ठा तक पंहुच कर लालचियों ने इस पूरे मसले का अपने अपने तरीके से लाभ लेने की निष्ठुर कोशिशें की है. रही बात वृहत्तर समाज की, तो उसने शुरुआत में हल्की सी जुम्बिश ली और फिर लम्बी चादर तान कर खुद को मुर्दों का समाज साबित कर दिया है.

डेल्टा के न्याय के लिए संघर्ष कर रहे उसके यौद्धा पिता महेंद्रा राम मेघवाल,उनके हिम्मती परिजन और अन्य संघर्षशील साथीगण अब स्वयं को अकेला पा रहे है, उनका लड़ने का ज़ज्बा आज भी उतना ही है, ना ही उन्होंने उम्मीद छोड़ी है, पर जिन लोगों से उन्हें सकारात्मक सहयोग की अपेक्षा है वो आज आरोप, प्रत्यारोप और राजनीतिक नफा नुकसान को मद्देनजर रख कर अपना कदम निर्धारित कर रहे है. इसका फलित यह है कि डेल्टा के पक्ष में देश के कोने कोने तथा विदेशों तक में जस्टिस फॉर डेल्टा के नारों के साथ खड़ी हुई बिरादरी को पता ही नहीं चल पा रहा है कि आखिर डेल्टा के मामले में आगे क्या हुआ है.

ज्यादातर लोग इसी गलतफहमी में है कि सीबीआई जाँच चल रही है. मगर सच्चाई तो कुछ और ही है. इसलिए हमने सोचा है कि डेल्टा की पैदाइश से लेकर उसकी परवरिश तथा पढाई और उसके साथ हुए अन्याय एवं उसको न्याय नहीं मिले इसके लिए किये जा रहे दुश्चक्र की जानकारी परत दर परत सब तक पंहुचाई जाये.

यह सीरिज बहुत सारे साथियों से बातचीत करके लिखी जा रही है फिर भी इसमें कोई तथ्यात्मक त्रुटि परिलक्षित हो तो हमें अवगत करावें.  यहाँ डेल्टा के नाम का ज़िक्र उनके परिजनों की सहमति से किया जा रहा है, वो चाहते है कि उनकी जांबाज़ बेटी के संघर्ष और उसके साथ हुई संस्थानिक क्रूरता के बारे में सब लोग जानें और न्याय की इस जंग में उनके संग खड़े हों.

राजस्थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले का क़स्बा गडरारोड कभी पाकिस्तान का हिस्सा हुआ करता था, नाम था गडरा. विभाजन के बाद निरंतर युद्धों की विभीषिका झेलने के कारण पाकिस्तानी सीमा में स्थित गडरा उजड़ गया तथा वहां के ज्यादातर नागरिक गडरारोड आ कर बस गये. स्थानीय निवासी रमेश बालाच बताते है कि तारबंदी होने से पहले तक सीमापार से लोग आ कर कभी भी यहाँ पर लूटपाट कर लेते थे, जिंदगी बहुत दूभर थी. लोग घर बनाते थे और सेना उजाड़ देती थी. अक्सर गाँव खाली करना पड़ता था. जिसके चलते सब कुछ अनिश्चित सा था. लोग पक्के घर बनाने से भी हिचकते थे, पढाई, व्यापार आदि पर भी इसका असर पड़ता था.

इसी गडरा रोड से दो किलोमीटर पाकिस्तान सीमा की तरफस्थित है त्रिमोही गाँव. भारत का आखिरी गाँव, जहाँ से आप सरहद को अपनी आँखों से देख सकते है. तारबंदी साफ दिखलाई पड़ती है.  सीमापार की एक मस्जिद भी दिखती है, जहाँ से दिन में कई बार अजान की आवाज भी सुनाई देती है. हालाँकि तारबंदी के चलते सीमापार से होने वाली लूटपाट से तो राहत है, मगर हर वक़्त फौजी बूटों की आवाज़ अब भी यहाँ के लोगों को असहज रखती है. सामरिक महत्व के इस इलाके में सेना, पुलिस तथा कई प्रकार की गुप्तचर एजेंसियां अपनी मुस्तैद निगाहें जमाये रहती है. सरहदी गाँव होना ही चुनौती से भरा होता है, ऊपर से थार के रेगिस्तान का हिस्सा होना जीवन को और विकट बनाता है.  ऐसे दुर्गम गाँव त्रिमोही में साठ फीसदी आबादी मेघवाल अनुसूचित जाति की है, दो परिवार भील जनजाति के है और लगभग चालीस प्रतिशत लोग अल्पसंख्यक समुदाय के है. दलित आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग यहाँ पर बेहद भाईचारे से रहते है तथा एक दुसरे के सुख दुःख में सहभागी बनते है.

त्रिमोही के अधिकतर मकान कच्चे या अधपके हैतो कुछेक पक्के भी, पर भव्य और विशाल मकान इस गाँव में नहीं मिलते. सरकारी सुविधाओं के नाम पर आंगनबाड़ी है और एक राजकीय प्राथमिक पाठशाला भी. इसी विद्यालय में कार्यरत शिक्षक है महेंद्रा राम मेघवाल. 42 वर्षीय महेंद्रा राम मेघवाल त्रिमोही के इसी विद्यालय, जिसे पहले राजीव गाँधी स्वर्णजयंती पाठशाला कहा जाता था, में बतौर शिक्षा सहयोगी नियुक्त हुए थे, उन्हें सिर्फ 1200 रुपये मानदेय दिया जाता था. इतने अल्प मानदेय पर उन्होंने वर्ष 1999 से काम शुरू किया तथा 2007 तक प्रबोधक के नाते काम किया, वेतन फिर भी मात्र 4,200 रूपये ही था. बाद में उन्हें तृतीय श्रेणी शिक्षक के रूप में इस स्कूल में ही नियुक्ति मिल गई. अभी भी वेतनमान कोई बहुत अधिक नहीं है. सब कटने के बाद उनके हाथ में महज़ 13 हजार रूपये आते है. इतने कम वेतनमान के बावजूद शिक्षक महेंद्रा राम का सोच बहुत विस्तृत रहा, उन्होंने सदैव अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाने की सोच रखी.

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वेतन के अलावा आय का कोई जरिया तो घर में है नहीं, पिताजी के पास थोड़ी बहुत जमीन है, जिसपर सिर्फ बरसाती फसल होती है, जिससे घर का कुछ महीने खाने पीने का काम चल जाता, बाकि घर खर्च और पढाई का सारा भार महेंद्रा राम मेघवाल के ही कन्धों पर रहा है. महेंद्रा राम के पास दो छोटे छोटे कमरे ही है, उन्होंने अपना सर्वस्व अपनी संतानों को पढ़ाने में लगाने की ठान रखी थी.
उनकी पत्नी लहरी देवी एक सुघड़ गृहिणी और खेती व् पशुपालन में मनोयोग से जुटी रहने वाली कर्मयोगिनी है, जिसका ख़्वाब भी अपने बच्चों को आगे बढ़ाने का ही रहा है. महेंद्रा राम के परिवार में उनके बुजुर्ग पिता राणा राम सहित कुल 6 लोग अब बचे है. महेंद्रा राम, उनकी पत्नी लहरी देवी, दो बेटे प्रभुलाल व अशोक कुमार और छोटी बेटी नाखू कुमारी. दोनों बेटे पी एम टी की तैयारी के लिए कोटा और बीकानेर में रह कर पढ़ रहे थे, छोटी बेटी नाखू ग्यारहवीं कक्षा उत्तीर्ण कर चुकी है. इसी हंसते खेलते परिवार की प्रिय बेटी थी डेल्टा. सरहदी गाँव त्रिमोही की प्रथम बालिका जिसने आज़ादी के बाद बारहवीं कक्षा तक पढाई करने का गौरव हासिल किया था.

शिक्षक महेंद्रा राम मेघवाल का एक ही जूनून था कि वह अपने बच्चों को ऊँची से ऊँची शिक्षा दिलाना चाहते थे, उनकी इच्छा थी कि डेल्टा पढ़ लिख कर एक दिन आई पी एस बने, बेटे डॉक्टर बने और छोटी बेटी भी अपनी रूचि के मुताबिक उच्च शिक्षा हासिल करें.  इसके लिए उनकी अल्प आय काफी नहीं थी, इसलिए महेंद्रा राम ने कई प्रकार के लोन ले रखे है, उन्होंने ढाई लाख रुपये का सरकारी तथा तक़रीबन 18 लाख रुपये साहूकारी ब्याज पर ले कर अपने बच्चों का भविष्य बनाने के सपने बुने और रात दिन इसी उधेड़बुन में लगे रहे. जिंदगी अच्छे से चल रही थी. बच्चे भी पढाई लिखाई में होशियार साबित हो रहे थे, पर उनको सबसे ज्यादा नाज़ अपनी लाडली बेटी डेल्टा पर था, जो बचपन से ही होनहार थी और अपनी प्रतिभा के चलते पुरे गाँव, परिवार तथा समाज की लाड़ली बेटी बनी हुई थी. महेंद्रा राम उम्मीदों से भरे हुए थे, पर भारत जैसे जातिवादी देश में किसी दलित पिता को इतना खुश होने की कोई जरुरत नहीं है, क्योँकि यहाँ पग पग पर ऐसी क्रूर सामाजिक व्यवस्था बनी हुई है, जो कभी भी इस देश के मूलनिवासियों के चेहरे की मुस्कान छीन सकती है

. . और अंततः महेंद्रा राम के साथ भी वही हुआ जो एकलव्य के साथ हुआ, जो निषाद के साथ हुआ, जो रोहित वेमुला के साथ हुआ. महेंद्रा राम के जीवन भर की तपस्या एक ही दिन में भंग कर दी गई. जिस लाडली बेटी डेल्टा को वो आईपीएस देखना चाहते थे, उसका मृत शव देखना पड़ा और जिन बेटों को डॉक्टर बनाना चाहते थे, वो पढाई अधूरी छोड़ कर घर लौट आये. जिस छोटी बिटिया नाखू को वो खूब पढाना चाहते थे, वह अपनी पढाई छोड़ कर घर बैठी हुई है. अपनी लाड़ली बेटी खो चुके महेंद्रा राम कहते है कि- “ हम नहीं चाहते है कि नाखू भी डेल्टा की तरह छोटी जिंदगी जिए, हम अपने बच्चों को नहीं खोना चाहते है “.

7 मई 1999 को शिक्षक महेन्द्रा राम के घर जन्मी पुत्री का नाम डेल्टा रखा गया. त्रिमोही जैसे छोटे से गाँव के लिए यह नाम ही किसी अजूबे से कम नहीं था. यहाँ के अधिकांश लोगों में किसी ने भी अपनी पूरी ज़िन्दगी में ऐसा नाम सुना तक नहीं था. जो पढ़े लिखे है उन्होंने भी भूगोल की किताबों में डेल्टा के बारे में पढ़ा था, लेकिन किसी का नाम डेल्टा, यह तो अद्भुत ही बात थी. ऐसा नाम रखने के पीछे के अपने मंतव्य को प्रकट करते हुए महेन्द्रा राम मेघवाल बताते है कि – ‘ जिस तरह नदी अपने बहाव के इलाके में तमाम विशेषताएं छोड़ कर समंदर तक पंहुच कर मिट्टी को अनूठा सौन्दर्य प्रदान करती है, जिसे डेल्टा कहा जाता है, ठीक वैसे ही हमारे परिवार में पहली बेटी का आगमन हमारी जिंदगी को अद्भुत ख़ुशी और सुन्दरता देनेवाला था, इसलिए मैंने उसका नाम डेल्टा रखा. मैं चाहता था कि मेरी बेटी लाखों में से एक हो, उसका ऐसा नाम हो जो यहाँ पर किसी का नहीं है. ” वाकई अद्वितीय नामकरण किया महेन्द्राराम ने अपनी लाड़ली बेटी का !

कहते है कि होनहार बिरवान के होत चीकने पात, सो डेल्टा ने अपने होनहार होने को अपनी शैशवावस्था में ही साबित करना शुरू कर दिया. वह जब अपने पैरो पर खड़ी होने लगी तो उसके पांव संगीत की धुन पर थिरकने लगते थे. बचपन में जब अन्य बच्चे तुतला तुतला कर अपनी बात कहते है, तब ही डेल्टा स्पष्ट और प्रभावी उच्चारण करने लगी. महेन्द्राराम को विश्वास हो गया कि उसकी बेटी अद्भुत प्रतिभा की धनी है. उन्होंने उसे अपने विद्यालय राजीव गाँधी पाठशाला जहाँ पर वे बतौर शिक्षक कार्यरत थे, वहां साथ ले जाना शुरू कर दिया. प्राथमिक शाला में पढ़ते हुए डेल्टा ने मात्र पांच साल की उम्र में दूसरी कक्षा की छात्रा होते हुए राष्ट्रिय पर्व पर आत्मविश्वास से लबरेज़ अपना पहला भाषण दे कर सबको आश्चर्यचकित कर डाला. जब वह चौथी कक्षा में पढ़ रही थी तो उसने रेगिस्तान का जहाज़ नामक एक चित्र बनाया, जो राज्य स्तर पर चर्चित हो कर आज भी जयपुर स्थित शासन सचिवालय की दीवार की शोभा बढ़ा रहा है. मात्र आठ वर्ष की उम्र में डेल्टा ने फर्राटेदार अंग्रेजी में एक स्पीच दे कर लोगों को दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर दिया.

डेल्टा ने अपनी पांचवी तक की पढाई अपने ही गाँव त्रिमोही की राजीव गाँधी स्वर्णजयंती पाठशाला में की, यहाँ पर वो हर प्रतियोगिता में अव्वल रही. आठवी पढने के लिए वह त्रिमोही से दो किलोमीटर दूर गडरा रोड में स्थित आदर्श विद्या मंदिर गयी. यहाँ भी हर गतिविधि और पढाई में वह आगेवान बनी.  मेट्रिक की पढाई राजकीय बालिका माध्यमिक विध्यालय गडरा रोड से पूरी करके उसने सीनियर की शिक्षा स्वर्गीय तेजुराम स्वतंत्रता सेनानी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय से प्राप्त की. यह सब उसने मात्र पंद्रह साल की आयु में ही कर दिखाया.

बहुमुखी प्रतिभासंपन्न डेल्टा सदैव अव्वल रहने वाली विद्यार्थी तो थी ही, वह बहुत अच्छी गायिका भी थी, उसके गाये भजनों की स्वर लहरियां श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किये देती थी. बचपन में ही उसके हाथों ने कुंची थाम ली थी, वह किसी सधे हुए चित्रकार की भांति चित्रकारी करती थी. साथ ही साथ वह बहुत बढ़िया नृत्य भी करती थी. वह स्काऊट की लीडर भी थी और स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस की परेड्स का भी नेतृत्व करती थी.

मात्र पांच साल की उम्र में मंच पर भाषण, छह साल की उम्र में राज्य स्तरीय चित्रकारी, आठ साल में इंग्लिश स्पीच, दस साल की उम्र में परेड का नेतृत्व और पंद्रह साल की होते होते बारहवी कक्षा उत्तीर्ण करनेवाली डेल्टा हर दिल अज़ीज़ बन चुकी थी. वह इस इलाके की अध्ययनरत अन्य छात्राओं के लिए भी एक आदर्श बन गयी थी. त्रिमोही के हर अभिभावक की ख्वाहिश थी कि उनकी बेटी भी डेल्टा जैसी होनहार बन कर गाँव और परिवार का नाम रोशन करें.

आत्मविश्वास से भरी डेल्टा अपने प्रिय पिता और परिजनों के स्वप्नों को साकार करना चाहती थी, वह आईपीएस बनने के अपने पिता के सपने को पूरा करना चाहती थी, लेकिन वो जानती थी कि उसके पिता महेन्द्राराम कितनी मुश्किलों से उसे और अन्य भाई बहनों को पढ़ा रहे थे, इसलिए वह जल्दी से जल्दी अपने पैरों पर खड़े होना चाहती थी, ताकि पिता पर भार कम हो. उसने शिक्षिका बनने का संकल्प लिया और जयनारायण व्यास विश्वविध्यालय द्वारा आयोजित बेसिक स्कूल टीचर कोर्स की प्रवेश परीक्षा में शामिल हो गयी, यहाँ भी उसने अपनी कामयाबी के झंडे गाड़े, उसने छह सौ अंको वाली यह परीक्षा चार सौ उनसत्तर अंको से पास कर ली. शुरुआत में उसे जैसलमेर सेंटर मिला, जहाँ वह चार दिन रही भी, लेकिन वहां का माहौल ठीक नहीं होने से वह घर लौट आई.  बाद में नोखा स्थित श्री जैन आदर्श कन्या शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय को सही जानकर उसे मात्र पंद्रह साल की आयु में सन 2014 में बीकानेर जिले के नोखा पढ़ने के लिये भेज दिया गया.  जी हाँ उसी नोखा में.

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नोखा, जिसे सन 1926 में बीकानेर स्टेट के तत्कालीन महाराजा गंगासिंह ने स्थापित करवाया था. इतिहासकार ताराराम गौतम के अनुसार -” आजादी से पहले रियासतों के संघ के अध्यक्ष महाराजा गंगा सिंह थे.  जिनका और बाबा साहब का गोल मेज कांफ्रेंस में मिलन हुआ.  डॉ अम्बेडकर ने उनकी ओर से प्रीविपर्स और मुवावजे की पैरवी की थी.  बाद में बीकानेर में उन के पुत्र ने डॉ अम्बेडकर की राजस्थान में पहली मूर्ति लगायी “.  इन्ही बीकानेर नरेश गंगासिंह द्वारा स्थापित नोखा बीकानेर जिले का एक बड़ा व्यावसायिक केंद्र माना जाता है, यहाँ का मोठ पूरे एशिया में प्रसिद्ध है तथा हल्की रजाईयां देश विदेश तक लोकप्रिय है. व्यापारिक केंद्र होने की वजह से नोखा को नोखा मंडी कहा जाता है.

व्यापार वाणिज्य के साथ साथ यहाँ पर शिक्षण संस्थाओं का कारोबार भी खूब फला फूला. व्यापारिक जमात के सियासती रसूख वाले लोगों ने शिक्षा के बड़े बड़े संस्थान खोल लिए. यही पर स्थित है श्री आदर्श सेवा संस्थान जिसके कई विद्यालय महाविद्यालय चलते है. दक्षिणपंथी राजनीतिक सामाजिक संस्था समूहों में उच्च स्तरीय दखल रखने वाले ईश्वर चंद वैद इसके अध्यक्ष है. कहा जाता है कि उनसे आरएसएस से लेकर भाजपा तक के लोग उनसे उपकृत होते रहते है. आदर्श सेवा संस्थान द्वारा वर्ष 2007 से श्री जैन आदर्श कन्या शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय संचालित है. इसी आदर्श ( ? ) कहे जाने वाले कोलेज में महेन्द्राराम ने अपनी प्रतिभावान बेटी डेल्टा को शिक्षिका बनने भेजा.

एक आदर्श शिक्षिका बनने का सपना लिये डेल्टा वर्ष 2014 में इस संस्थान में आई. उसे यहाँ पढ़ते हुए दूसरा बरस चल रहा था. बेसिक स्कूल टीचर कोर्स की द्वितीय वर्ष की छात्रा डेल्टा श्री जैन आदर्श कन्या शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में भी हर गतिविधि में आगे रहती थी. वह पढने में तो तेजतर्रार थी ही, नृत्य, खेलकूद, गायन तथा पेंटिंग जैसी शिक्षणत्तर कार्यों में सदैव अग्रणी भूमिका निभाती थी. हरफनमौला स्वभाव की डेल्टा में अंहकार नहीं था. वह सहज, सरल ओर साफ दिल की भावुक बालिका थी. सबसे मीठा बोलती थी, लडाई झगडा किसी से भी नहीं अपने काम से काम रखनेवाली लड़की के रूप में उसकी छवि थी.

डेल्टा इसी महाविद्यालय द्वारा संचालित बालिका छात्रावास की आवासिनी थी. उसके सहज स्वाभाव का फायदा उठाते हुए हॉस्टल वार्डन द्वारा हॉस्टल की सफाई का काम भी अक्सर उससे कराया जाता था. डेल्टा ने कभी भी इस बात की शिकायत नहीं की. उसका लक्ष्य जल्दी जल्दी अपनी ट्रेनिंग पूरी कर शिक्षिका बनना था.
सब कुछ ठीक ही चल रहा था. मार्च में इस साल जब होली की छुट्टियाँ हुयी तो और छात्राओं की भांति डेल्टा भी अपने गाँव त्रिमोही गई. खूब आनन्द उल्लास के साथ अपने परिजनों ओर गाँव के लोगों के साथ होली मनाई ओर 28 मार्च को अपने पिता महेन्द्राराम के साथ वापस हॉस्टल लौट आई.

डेल्टा को नोखा छोड़ कर महेन्द्राराम अपने घर के लिए रवाना हुए. घर पंहुचने पर उनके मोबाईल पर डेल्टा का रोते हुए फोन आया. उसने बताया कि आज हॉस्टल वार्डन प्रिया शुक्ला ने मुझे पीटीआई विजेन्द्रसिंह के कमरे में सफाई करने के लिए भेजा, जहाँ पर विजेंद्र सिंह ने मेरे साथ ज्यादती की ओर धमकी दी कि अगर किसी को बताया तो जान से मार डालूँगा. वह बहुत डरी हुई थी. यह सुनकर महेन्द्राराम सन्न रह गए. अभी अभी तो वो अपनी लाड़ली को हंसती मुस्कराती छोड़कर आये ओर यह क्या हो गया ? जिस वार्डन के संरक्षण में उन्होंने अपनी बेटी रखी, उसने ही उसकी आबरू तार तार करवा दी. महेन्द्राराम की हालत अजीब हो गयी, उनके सोचने समझने की स्थिति ख़त्म हो रही थी, उन्हें चक्कर आने लगे. किसी तरह खुद को संभाला ओर बिटिया को सांत्वना दी –बेटी मैं सुबह छुट्टी ले कर सीधा नोखा आ रहा हूँ,तुम डरना मत, चिंता मत करना, मैं सुबह स्कूल खुलते ही अवकाश लेकर रवाना हो जाऊंगा.

बेटी को तो उन्होंने दिलासा दे दिया पर खुद के मन को समझाना भारी हो रहा था. वो नहीं चाहते थे कि उनके परिजनों को इसकी भनक लगे, इसलिए उनके सामने सामान्य होने की कोशिस करते रहे. रात भर नींद नहीं आई, आँखों ही आँखों में पूरी रात गुजर गई. सुबह नोखा वापसी के लिए पैसों का इंतजाम किया, स्कूल गए और सोचा कि आधे दिन का अवकाश लेकर निकल जाऊंगा, ताकि घरवालों को भी शक ना हो और शाम होने से पहले ही बेटी तक पंहुचा भी जा सके. एक गरीब ग्रामीण कर्ज में दबे पिता के लिए किराये भाड़े की व्यवस्था भी कई बार पहाड़ लांघने जैसा दूभर काम हो जाता है.

खैर, जाने के सारे इंतजाम हो चुके थे कि उनका फोन बजा, नोखा थाने से फोन था. उन्हें जो सूचना दी गयी, शायद ही कोई पिता हृदय को विदीर्ण करने वाले ऐसे शब्द सह सकें. उन्हें बताया गया कि -” आपकी पुत्री डेल्टा मृत अवस्था में कुंड में मिली है. . . . . . “.

पुलिस के मुताबिक-  “ श्री जैन आदर्श कन्या शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में बी एस टी सी, बी एड की 16 छात्राएं संस्था परिसर में बने हॉस्टल में रहती है, जो 20 मार्च को होली की छुट्टियाँ होने पर हॉस्टल में रहने वालीं छात्राएं अपने अपने गाँव चली गयी.  28 मार्च को छात्रा कुमारी डेल्टा मेघवाल सबसे पहले हॉस्टल में आई.  उसके बाद छात्राएं शकीला बानो, परमेश्वरी व मंजू आई. रात में लगभग 12. 30 बजे इसी हॉस्टल में रहने वाली एक नर्स श्रीमती लीना गुप्ता बाथरूम जाने के लिए जगी तो देखा कि मुख्य दरवाजा थोडा सा खुला हुआ था.  गुप्ता ने लड़कियों के कमरे में जा कर देखा तो सभी लड़कियां एक ही कमरे में सो रही थी. कमरा खुला था ओर लाइट भी चालू थी. लेकिन जहाँ डेल्टा का बेड था, वहां रजाई सीढ़ी रखी हुयी थी, डेल्टा बेड पर नहीं थी. ”

पुलिस के अनुसार – “लीना गुप्ता ने सोयी हुयी लड़कियों को जगाया, उनसे डेल्टा के बारे में पूंछा, डेल्टा को आवाज लगायी, आस पास खोजा, पर वह कहीं नहीं मिली. इसकी सूचना वार्डन प्रिय शुक्ला को दी गयी, वह हॉस्टल पंहुची. डेल्टा की तलाश की मगर वह कहीं नहीं मिली. फिर वह लड़कियों को लेकर चौकीदार हनुमानसिंह के पास गई. पूरे परिसर में खोजबीन की गयी, तब भी डेल्टा नहीं मिली. अंततः वार्डन अपने पति प्रतीक शुक्ला जो स्कूल के प्रिंसिपल भी है, उसे बुला कर लायी. चौकीदार हनुमानसिंह को हॉस्टल परिसर में ही स्थित आवास में रहने वाले पी टी आई विजेन्द्रसिंह को बुलाने भेजा. पहले तो उसने दरवाजा ही नहीं खोला, बाद में फोन करके दरवाजा खुलवाया गया. पीटीआई ने दरवाजा खोला और लाइट बंद करके बाहर आ गया तथा दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया. वह भी डेल्टा की खोजबीन में शामिल हो गया. पीछे से वार्डन उसके क्वाटर में गयी, लाइट ऑन की तो देखा कि वहां पर चारपाई पर डेल्टा बैठी हुई थी. प्रिया शुक्ला ने डेल्टा से पूंछा कि रात के समय पी टी आई के यहाँ क्यों गई तो डेल्टा का जवाब था कि पीटीआई सर के पास आंवले लेने आई थी. पीटीआई से पूंछा तो उसने बताया कि मैंने उसे नहीं बुलाया, वह खुद आई थी, इसके बाद वार्डन प्रिया शुक्ला ओर उसके पति प्रज्ञा प्रतीक शुक्ला ने डेल्टा ओर पीटीआई विजेन्द्रसिंह से अलग अलग कागजों पर माफीनामा लिखवाया. ”

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पुलिस का दावा है कि –  “ रात्रि 3 बजे डेल्टा को नर्स लीना गुप्ता के साथ वापस हॉस्टल भेज दिया गया. डेल्टा अपने कमरे में जाकर सो गयी. सुबह जब डेल्टा को वहां नहीं पाया तो पता चला कि अभी अभी डेल्टा बाहर की तरफ गयी है. चारों तरफ खोजबीन की गयी, डेल्टा नहीं मिली. चौकीदार हनुमानसिंह ने डेल्टा को कोलेज परिसर, रेल्वे स्टेशन व बस स्टेंड पर ढूंढा पर वह कहीं नहीं मिली. वार्डन के ससुर श्याम शुक्ला ने बताया कि सुबह जब मैं घूम रहा था, तब एक लड़की भोजनालय की तरफ जाते हुए दिखी थी, जिस पर चौकीदार हनुमानसिंह हॉस्टल की दीवारों के पास तलाश करता हुआ पानी के कुंड को देखा तो उसमें डेल्टा की लाश नजर आई. इस घटना की सूचना प्रिंसिपल प्रज्ञा प्रतीक शुक्ला, संस्था के महामंत्री जगदीश मल लोढ़ा को दी गयी. उन्होंने इसकी सूचना संस्था के अध्यक्ष ईश्वर चंद बैद को दी. बैद नोखा के पूर्व विधायक कन्हैयालाल झंवर को साथ लेकर कोलेज पंहुचे. घटना की इत्तला थानाधिकारी नोखा को दी गई. इंचार्ज थाना रामकेश घटना स्थल पर पंहुचा. मृतका डेल्टा की लाश को पानी के कुंड से बाहर निकाल कर मोर्चरी रूम सी एच सी नोखा में रखवाई गई. ”

ये है श्री आदर्श जैन कन्या शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय स्टाफ, प्रबंधकों ओर उनसे मिली हुई नोखा पुलिस की कहानी, जो यह साबित करने का प्रयास करती है कि हॉस्टल की एक नाबालिग दलित छात्रा रात के अँधेरे में अकेली हॉस्टल से बाहर निकली, अपनी मर्जी से पीटीआई के क्वाटर पर पंहुची, उसका दरवाजा खुलवाया स्वेच्छा से उसके बेड पर जा कर बैठ गई, बाद में इसका पता चल जाने पर उसने माफीनामा लिख कर दिया. रात में अपने कमरे में जाकर आराम से सोयी ओर सुबह उठ कर पानी के कुंड में जा कर गिर कर मर गई. ऐसा लगता है जैसे डेल्टा कोई इंसानी जिस्म नहीं बल्कि एक रोबोट थी, सब कुछ स्वतः ही बेहद सामान्य तरीके से घटित हो गया.

. एक नाबालिग दलित लड़की का रात में गायब होना, पीटीआई के कमरे में उसका बरामद होना यहाँ के कोलेज के लिए बहुत आम बात की तरह थी, इतनी बड़ी घटना की सुचना ना रात में पुलिस को दी गई और ना ही डेल्टा के परिजनों को दिया जाना, क्या साबित करता है. सुबह फिर से डेल्टा का गायब होना, चारों तरफ ढूंढने का नाटक किया जाना, फिर भी पुलिस या परिजनों को सूचित नहीं करना ओर अंततः छात्रा की लाश पानी के कुंड में मिलना, संस्था से जुड़े समस्त लोगों को बुलाया जाना तथा उनके मौके पर पंहुचने के बाद पुलिस का घटना स्थल पर पंहुचना, किस बात की ओर ईशारा करते है. इससे भी ज्यादा गंभीर बात तो यह है कि संस्था की ओर से सूचना देने के बजाय पुलिस द्वारा लाश मिलने के ढाई घंटे बाद डेल्टा के पिता महेन्द्राराम को फोन के ज़रिये सूचित करना क्या किन्ही संदेहों को जन्म नहीं देता है ?

पुलिस से लेकर कोलेज के प्रशासन की तरफ से जो कहानी रची गई है, उसको सुनने और अब पुलिस द्वारा प्रस्तुत आरोप पत्र को देखने के बाद इस बनावटी कहानी का झुठापन अपने आप सामने आ रहा है. सब कुछ मैनेज कर लेने की होशियारी के बावजूद भी सैंकड़ों सवाल अनुतरित छुट गए है, जिनका जवाब न तो बीकानेर पुलिस के पास है और ना ही ईश्वर चंद बैद के आदर्श जैन कोलेज के पास.  डेल्टा की रहस्यमय परिस्तिथियों में हुई मौत जो कि वस्तुतः आत्महत्या नहीं है, बल्कि बलात्कार के बाद की गई हत्या जैसा जघन्य अपराध है. उसे आत्महत्या में तब्दील करने की हरसंभव कोशिस 28 मार्च की रात ही शुरू कर दी गई थी.

पुलिस और कॉलेज प्रशासन का यह कहना कि 28 मार्च की रात में अपने कमरे से डेल्टा गायब थी और वह स्वत: ही पी टी आई विजेन्द्रसिंह के कमरे में पंहुची. यहीं से कहानी संदेहास्पद बनने लगती है. डेल्टा के परिजनों का कहना है कि –“ डेल्टा को रात के अँधेरे से बहुत डर लगता था, वह अकेले कहीं बाहर नहीं निकलती थी “ ऐसे में यह सवाल लाज़िमी है कि वह हॉस्टल से निकल कर पीटीआई के कमरे तक अँधेरे में गई या उसे कोई ले कर गया ?

वार्डन प्रिया शुक्ला के मुताबिक जब हॉस्टल में डेल्टा नहीं मिली तो उसे बहुत ढूंढा गया और अंततः वह पीटीआई के कमरे में सामान्य स्थिति में पाई गई. बाद में दोनों से माफीनामा लिख कर छोड़ दिया गया. गर्ल्स हॉस्टल की एक प्रतिभावान नाबालिग दलित लड़की का गायब होना और बाद में एक पुरुष पिटीआई के यहाँ मिलना क्या वार्डन और कॉलेज प्रशासन के लिए इतनी सामान्य बात थी कि मामले को वहीँ रफा दफा कर दिया गया ? डेल्टा के स्थानीय अभिभावक, पुलिस तथा उसके परिजनों को इसकी सुचना देना आवश्यक क्यों नहीं समझा गया ?

जो माफीनामे डेल्टा और विजेन्द्रसिंह से लिखवाये जाने की बात वार्डन प्रिया शुक्ला और उसके पति प्रज्ञा प्रतीक शुक्ला बताते है, उन दोनों माफीनामों की भाषा और लिखावट एक जैसी क्यों है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये माफीनामे डेल्टा की हत्या को आत्महत्या में बदलने के लिए निर्मित किये गये सबूत हो ? पुलिस का आरोप पत्र भी इस बारे में मौन है. चार्जशीट के मुताबित माफीनामों की एफ एस एल रिपोर्ट अभी प्राप्त होना शेष है.  वार्डन का यह कहना कि डेल्टा पीटीआई के क्वाटर में सामान्य स्थिति में थी, जबकि पुलिस का आरोप पत्र यह कहता है कि मृतका डेल्टा और आरोपी विजेन्द्रसिंह के जब्तशुदा अंडरगारमेंट व बेडशीट पर मानव वीर्य मौजूद पाया गया. जाँच में बलात्कार किये जाने की पुष्टि हो चुकी है. इसका मतलब साफ है कि वार्डन और कॉलेज प्रशासन पी टी आई विजेंद्र को बचाने की भरपूर कोशिस में लगा हुआ था. कहीं ऐसा तो नहीं कि इसमें विजेन्द्रसिंह के अलावा भी कोई दोषी व्यक्ति हो, जिसको भी बचाया जा रहा हो ? कहीं श्री जैन आदर्श कन्या शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के प्रबंधन और प्रशासन से जुड़े लोग लड़कियों के यौन शोषण में संलिप्तता रखते हो, जिनकी हवस की शिकार होने के बाद डेल्टा को सदा सदा के लिए मौत की नींद में सुला दिया गया हो ?

डेल्टा का शव जिस कुण्ड में बरामद हुआ, उस समेत कोलेज में सात पानी के कुण्ड है, जिनमे से छह पर ताले लगे हुये थे, सिर्फ एक वो ही कुण्ड बिना ताले के क्यों रखा गया, जिसमे गिरने की कहानी निर्मित की गई है ? मानव अधिकार संगठनों की तथ्यान्वेषी रिपोर्ट डेल्टा के पानी में डूबने की पूरी थ्यौरी पर ही कई गंभीर सवाल उठाती है, रिपोर्ट कहती है कि – “हमारा मानना है कि 5 फुट 6 इंच से भी ज्यादा लम्बी डेल्टा मेघवाल अगर डूबी होती तो 7 बजे सुबह जब लीना व अन्य छात्राओं तथा श्याम शुक्ला ने जब कुण्ड का ढक्कन उठा कर अंदर झांक कर देखा तो जरुर उसमे कुछ ना कुछ दिखता. हमारे दल का मानना है कि कुण्ड का मुंह उपर की तरफ 2 x 2 फिट खुलता है, लेकिन अन्दर चौडाई संकरी हो जाती है, लगभग 4 इंच का पत्थर दो तरफ से निकल रहा है जिससे कुण्ड के मुंह  से अंदर जाते जाते और छोटा हो जाता है. बिना किसी सहारे कुण्ड में किसी का कूदना आसान नहीं है, क्यूंकि चौडाई संकरी है और ढक्कन लौहे की मोटी चद्दर का बना होने के कारण बिल्कुल भी नहीं रुकता है. साथ ही डेल्टा हॉस्टल के बाहर करीब 7 बजे निकली है तो हॉस्टल वार्डन प्रिया शुक्ला के ससुर बाहर टहल रहे थे और लीना गुप्ता भी तभी बाहर निकली थी. अन्य लड़कियां भी पीछे ही थी तो वह ढक्कन जो कि बिना जोर से आवाज किये बंद नहीं होता, जिसकी आवाज हॉस्टल के अंदर तक सुनाई देती है, उसकी आवाज किसी ने क्यों नहीं सुनी जबकि आधे से जयादा लोग तो उस वक्त बाहर ही घूम रहे थे. अगर डेल्टा ने कुण्ड का ढक्कन उठा कर कूदने की कोशिस की तो ढक्कन उसके सिर पर गिरा होता {क्यूंकि वह ढक्कन एक पल भी बिना पकडे खड़ा नहीं हो सकता है } अगर वह गिरा होता तो सिर पर जरुर चोट आई होती और खोपड़ी की हड्डी भी टूटी होती मगर मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार सिर पर कोई चोट नहीं है.

पोस्टमार्टम की प्रारम्भिक रिपोर्ट में सिर पर कोई चोट नहीं है तथा डॉक्टर्स की ओपिनियन स्पष्ट थी कि मौत डूबने से नहीं हुई, क्यूंकि मृतका के फेफड़ों में पानी नहीं पाया गया. लेकिन बाद डॉक्टर्स की रीओपिनियन ली गई जिसमें –‘ पानी में डूबने से मृत्यु होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है ‘ अंकित किया गया. सवाल यह है कि मेडिकल बोर्ड ने किसके दबाव में यह दोबारा राय दी और अपनी ही पहली ओपिनियन और तथ्यों को बदलने की शर्मनाक कोशिस की. यह भी अत्यंत गंभीर तथ्य है कि मेडिकल बोर्ड ने डेल्टा के शव का अंतिम संस्कार हो जाने के बाद अपनी दूसरी राय व्यक्त की ताकि फिर से पोस्टमार्टम करने की सम्भावना ही क्षीण हो जाये.

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कुल मिलाकर पुलिस ने कोलेज प्रशासन द्वारा गढ़ी गई झूठी कहानी पर ही मोहर लगाई. डेल्टा के तथाकथित माफीनामे से लेकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ओपिनियन बदलने तक की सारी कार्यवाही आदर्श सेवा संस्थान के अध्यक्ष ईश्वर चंद, वार्डन प्रिया शुक्ला, उसके पति प्रतीक शुक्ला तथा विजेंद्र सिंह सहित हत्या और बलात्कार के दोषियों को बचाने की कवायद भर दिखाई पड़ती है. वैसे भी जहाँ का पूरा सिस्टम सड़ चुका हो और अपराधियों को संरक्षित करता प्रतीत हो वहां की पुलिस के आरोप पत्र पर कौन यकीन कर सकता है. 

लेखक भंवर मेघवंशी स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता है, जिनसे bhanwarmeghwanshi@gmail. com या 9460325948 के जरिए सम्पर्क किया जा सकता है.

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