Abhishek Srivastava : मेरे साथ एक बड़ी दिक्कत यह है कि देह को ज़रा सी ठंडी हवा लगते ही मुझे नींद आ जाती है। पहली बार ईमानदारी से बता रहा हूं कि मैं इतनी फिल्में देखने सिनेमाहॉल में इसलिए जाता हूं ताकि दो-ढाई घंटा चैन से पसीना सुखा कर झपक सकूं। ज़ाहिर है, फिल्मों को परखने का मेरा पहला पैमाना भी इसी से तय होता है। हुआ यों कि अव्वल तो मैंने तय किया था कि Sultan नहीं देखूंगा। इस हफ्ते Kerry On Kutton की बारी थी। कल पता चला कि ग़ाजि़याबाद के सारे सिनेमाघरों से सारी पिछली फिल्में हटाकर सुल्तान का कब्ज़ा हो गया है। दूसरी दिक्कत यह थी कि आज सुबह से बाहर निकले-निकले बेहद थकान हो चुकी थी, डेढ़ लीटर पसीना बह चुका था और शाम को शरीर जबरदस्त एसी की मांग कर रहा था। अर्ज़ ये है कि मजबूरी में सुल्तान ही देखनी पड़ी।
कसम से, पूरे तीन घंटे नींद नहीं आई। झपकी तक नहीं आई। पहले पैमाने पर फिल्म पास हो चुकी थी। दस बजे बाहर निकले तो अच्छा फील हो रहा था। ज़बान पर ”जग घूमेया” चढ़ चुका था। अब भी सलमान का सिग्नेचर धोबीपाट दिमाग में घूम रहा है। यह बेशक मुमकिन है कि किशोरावस्था में पहलवानी के अपने संक्षिप्त अतीत का कोई नोस्टेल्जिया हो जो मुझे यह फिल्म पसंद आई, लेकिन वास्तव में यह फिल्म अच्छी थी। दबंग के बाद सलमान खान की पहली संपूर्ण मनोरंजक फिल्म, जो आपको चाटती नहीं है। सलमान का ‘हिट एंड रन’ केस अगर थोड़ी देर के लिए कोने में रख दें, तो दावे के साथ एक बात कही जा सकती है कि सलमान ऐंवे ही सुपरस्टार नहीं हैं, उसके पीछे उनकी मेहनत है।
1998 में आई ‘प्यार किया तो डरना क्या’ में जब पहली बार सलमान ने कमीज़ उतारी थी, तब तक मैं ‘घातक’ के काशी से प्रेरित होकर चौबेपुर के अखाड़े में मट्टी पोतता था। ”आ आ जाने जाना” वाला गाना देखने के बाद मैं बनारस शहर के एक जिम में शिफ्ट हो गया। उस वक्त मेरी उम्र अभी के आधे से भी कम थी। आज जब पचास की उम्र में सलमान को देखा, तो 17 साल वाला भाव अचानक कुलबुलाने लगा और फिर से एक प्रेरणा मिली। ज़ाहिर है, इस प्रेरणा का वज़न उतना तो नहीं है लेकिन जितना भी है, उसे ज़ाया नहीं होने दूंगा।
फिल्म समीक्षक अभिषेक श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.