धीरज सिंह
राजनीति में कैसे-कैसे सूरमा है, कुछ सिर्फ बोलने में ही विश्वास रखते हैं तो कुछ कर गुजरते हैं। हम तो ठहरे, लोकतंत्र युग के प्राणी। कभी असली राजा देखा नहीं, फिल्मों ही देखते रहे कैसे होते थे राजा और क्या-क्या किया करते थे। हम क्या जाने राजा-रजबाड़ों के क्या-क्या शौक हुआ करते थे। अब राजा नहीं है, राजनेता है, वही पूरी कर रहे है राजाओं की कमी। कुछ बोलने में धमाल कर रहे हैं तो कुछ करतूतों में कमाल।
राजनीति में आना हो तो नीति का ज्ञान क्या जरूरी। अब नेता को नीति से क्या लेना-देना? कोई वक्ता अच्छा है, बोलने में माहिर है। ज्ञान भी बघारना जरूरी होता है। महिलाओं की फिगर पर पूर्ण ज्ञान हो तो बात ही क्या। दक्षिण भारतीय महिलाओं की तुलना उत्तर भारत की महिलाओं से करके देश की जनता के ज्ञान में वृद्धि करना उनका परम कर्तव्य है। देश की जनता का भी परम धर्म है कि उनके दिए गए ज्ञान को आत्मसात करे और हर पांच साल बाद उनको और उनकी पार्टी को वोट देती रहे। अगर ऐसे लोग सत्ता से दूर हो गए तो वो कैसे ऐसा ज्ञान पा सकेंगे। देश तो उनके महान ज्ञान का लाभ पाने से वंचित रह जाएगा।
एक समय था, देश भर में गजरौला वाले बाबा की धूम मच गई थी। बाबा ने ऐसा रौला काट दिया था कि लोग चटखारे ले-ले कर एक दूसरे से पूछते थे -वहां गेस्ट हाउस में क्या गुल खिले? राजनीति में टिके रहना है तो कुछ तो करना होगा। कुछ न करो तो कोई पार्टी पूछती तक नहीं।
खबर देखी तो चौंक गया। वाह प्रचारक जी, ये कैसा प्रचार कर दिया? राजाओं जैसे शौक! आपने तो गजरौला वाले बाबा का भी पछाड़ दिया, बाबा तुम फेल हो गए। देख लो और भी हुनरमंद हैं जमाने में, सिर्फ तुम ही नहीं। और भी पार्टियां हैं जहां काबिलों की कमी नहीं। बड़ी मुश्किल से अच्छे दिन आए हैं। सत्ता में आ गए तो तो भला सत्ता सुख भी न भोगें? बिना भोग-विलास राजभवन कैसा? निज भवन हो राजभवन, समान भाव से उपयोग करते हैं। संयम-धर्म से बंधा संगठन और फूल सी महकती पार्टी भी धन्य हो गई होगी, उनके इस कारनामे से।
कुछ ज्यादा बोल दिया क्या? राजा जी माफ करना, गलती म्हारे से हो गयी।
लेखक धीरज सिंह से संपर्क dhirajsinghdv@gmail.com के जरिये कर सकते हैं.