तारीख 25 दिसम्बर, वक्त दोपहर के करीब 12 बजे… अचानक मोबाइल में मैसेज की घंटी बजी, देखा तो भड़ास4मीडिया से मैसेज आया था. सोचा कि मीडिया की कोई नई उथल-पुथल की खबर होगी, लेकिन जैसे ही मैसेज पढ़ना शुरू किया, दिल बैठता चला गया, पूरा मैसेज पढ़ते-पढ़ते आखों के आगे अंधेरा छा गया, इस मैसेज में अशोक उपाध्याय सर की मौत की खबर थी. जब फ़रवरी 2009 में वीओआई ज्वाइन किया था तो स्क्रिप्ट राइटिंग का काम मिला. मुझे जिस शीट पर बैठाया गया, उसके बगल वाली शीट पर अशोक सर बैठा करते थे. ना जाने कितनी बार मैंने उनसे अपनी लिखी न्यूज़ सही करवाई. कई बार गलतियां होने के बाद भी उन्होंने कभी गुस्सा नहीं किया बल्कि बड़ी ही शांति से हर बार गलतियों के बारे में बताया. करीब ढेड़ महीने बाद मुझे मेरी खुद की स्टोरी करने का मौका मिला. स्क्रिप्ट लिखकर, पास कराकर जैसे ही मैं वोइस ओवर करने के लिए माइक के पास पहुंचा तो सामने से अशोक सर को आते देखा मैंने. सर से वोइस ओवर करने को कहा.
उन्होंने बिना किसी ना-नुकुर के वोइस ओवर कर दिया और इस तरह वीओआई में मेरी पहली स्टोरी, अशोक सर की आवाज में ऑन ऐयर हो गयी और एक सीडी मैं मैंने ये खबर यादगार के तौर पर अपने पास रख ली. इसके बाद तो कई बार मेरी खबर उनकी आवाज में टीवी पर दिखाई दी. लेकिन कुछ दिन बाद अचानक उन्होंने वोइस ओवर करने से मना कर दिया. कई बार पूछने के बाद भी उन्होंने कभी इसका कारण नहीं बताया. बाद में किसी से पता चला की किसी ने उनके वोइस ओवर पर कोई गलत कमेन्ट कर दिया था.
यूं तो मैं उनसे बहुत ज्यादा जूनियर था, बावजूद इसके वो हमेशा बहुत अच्छी तरह से बात करते थे. बहुत बार हमने ऑफिस से बाहर आकर साथ चाय पी, कई बार तो उन्होंने मुझे लिफ्ट भी दी. केवल मेरे साथ ही नहीं, बल्कि ऑफिस के ज्यादातर लोगों के साथ उनका ऐसा ही व्यवहार था. जब भी कोई उनसे नमस्ते करता था तो वो हमेशा मुस्कुराकर जवाब देते थे. अब उनका वही मुस्कुराता हुआ चेहरा आंखों के आगे से हटने का नाम ही नहीं ले रहा है.
भड़ास4मीडिया ने जब मोबाइल पर फ्री न्यूज़ अलर्ट सेवा शुरू की थी तो सबसे पहले मैंने ही उन्हें इसके बारे में बताया था. वे अक्सर भड़ास4मीडिया साइट खंगालने थे. उन्होंने मोबाइल पर मीडिया की खबरें मिलने पर ख़ुशी जाहिर की थी लेकिन मैंने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि एक दिन इसी न्यूज़ अलर्ट से मुझे उनकी मौत की खबर मिलेगी.
आज अशोक सर तो हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन वीओआई में मेरी पहली न्यूज़ को प्रस्तुत करती उनकी आवाज हमेशा मेरी पास जिंदा रहेगी और इस तरह ना होकर भी अशोक सर हमेशा मेरे पास महफूज़ रहेंगे, उनकी आवाज हमेशा उनकी मौजूदगी का अहसास दिलाएगी.
अशोक सर हमसे मिलते-मिलते हमेशा के लिए बिछड़ गये… किसी ने सच ही कहा है शायद…
मिल-मिल के बिछड़ जाती हैं घड़ी की सुइयां,
……….कैसे साथ रहने की दुआ करे कोई?
भगवान उनकी आत्मा को शांति और उनके परिवारवालों को ये दुःख सहने की शक्ति दे
लेखक गौरव कुमार प्रजापति पत्रकार हैं.