भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा छापे गए और बाजार में उयोग के लिए जारी किये गये कुल नोटों का मूल्य 16 लाख 98 हजार 5 सौ 40 करोड़ रुपये है। इसमें एक हजार के नोटों का मूल्य 6 लाख 70 हजार करोड़ है । और पांच सौ के नोटों का मूल्य 8 लाख 25 हजार करोड़ रूपये है । दोनों तरह के नोटों का कुल मूल्य 14 लाख 95 हजार करोड़ रुपये । यानी 9 नोवेम्बर से बाजार में प्रचलन में बचे एक से लेकर सौ रुपये के नोटों का कुल मूल्य मात्र 2 लाख 3 हजार 5 सौ 40 करोड़ रुपये ही बैठता है । जाहिर सी बात है 14 लाख 95 हजार करोड़ रुपये मूल्य के सारे एक हजार और पांच सौ के नोट तो काले नहीं हो सकते । नकली नही हो सकते । आतंकवादियों द्वारा उपयोग में लिए जा रहे नही हो सकते । एक अनुमान के अनुसार अधिकतम 15 या 20 प्रतिशत रकम ही नकली , काली आदि हो सकती है । यानी मात्र 2 लाख 25 हजार करोड़ रुपये लगभग ।
ये वो बात हुयी की एक चोर को पकड़ने के लिए कोई कोतवाल पुरे शहर को कोतवाली बुलाकर सब के खिलाफ मुकदमा लिखवा दे । और जांच बिठवा दे । यहाँ विशेष गौर करने वाली और महत्वपूर्ण बात ये है कि इन 14 लाख 95 हजार करोड़ में से 7 लाख करोड़ रुपया वो भी शामिल है जो बैंकों का बड़े उद्योगपति घराने मार के बैठ गए । यातो वो विदेश भाग गए या जिन्होंने सरकार को तमाम कानूनी मामलों में उलझा के रख दिया है । इस रकम की वसूलयाबी करने में मोदी सरकार अभी तक निकम्मी ही साबित हुयी है । इन कर्ज दारों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है ।
पाठक , विचार करें मोदी जी ने एक झटके में 14 लाख 95 हजार करोड़ रूपये को ” रद्दी कागज़ का टुकडा ” करार दे दिया । अब इस रद्दी कागज़ के टुकड़ों को फिर से नए नोटों में बदलने की जेहमत बिना सोंचे समझे उन सभी लोगों के सिर डाल दी जिनके पास ये एक हजार और पांच सौ के नोट है । इसमें में भी , गिनती में बहुत ज्यादा वो लोगों हैं जिन्होंने ईमानदारी और मेहनत से पैसा कमाया है । और बहुत कम लोग वो लोग हैं जिन्होंने अकूत संम्पत्ति भ्रष्ट तरीको से अर्जित की है ।
चंद भ्रष्टाचारियों के कारण उन लाखों लोगों को भी अब ये सबूत देना पड़ रहा है कि वे बेईमान नही ईमानदार है । कोई भ्रष्टाचारी अपने नोट बदलने के लिए बैंकों में लाइन में खड़ा रहके धक्के खाने नही आ रहा । उसकी मदद के लिए तो बैंक अधिकारी भी उसके घर पहुँच जाएंगे । पाठक शांत मन से विचार करें कि मोदी जी ने इस कदम के बारे में , जिसकी तैयारी पिछले छः माह से वे अपने अधिकारियों को विश्वास में लेके उनके साथ कर रहे थे , को क्यों अपने मंत्रीमंडल के सदस्यों तक से गुप्त रख्खा ? (ऐसा उन्होंने खुद राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा ) क्या मंत्रिमंडल के सदस्यों पर से उनका विशवास उठ चुका है ? आज नही तो कल देश को उन्हें ये बताना होगा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया ? लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के प्रधानमंत्री का ये कदम कितना तर्क संगत और औचित्य पूर्ण है ? क्या ये कदम उनके तानाशाह होने और उन पर तानाशाह की तरह व्यवहार करने की छाप नहीं लगाता ।
उ0प्र0 सहित जिन राज्यों में 2017 के शुरू में चुनाव होने है के बाद , अगर ये कदम उठाया गया होता तो मोदी जी कई राजनैतिक आरोपों से बच सकते थे । जैसे कि पहला आरोप कि उनका ये कदम अपने विरोधी राजनैतिक दलों को चुनावों की घोषणा से पूर्व ही बलहीन कर देने वाला है । माना जाता है कि चुनावों में हर दल आयोग द्वारा निर्धारित खर्च की सीमा से बहुत अधिक खर्च करते हैं । और ये धन काला ही होता है । दूसरा कि मोदी जी ने अपनी पार्टी के लिए समुचित धन की व्यवस्था इस घोषणा को करने से पहले ही कर ली है ।
“मेघनाथ देसाई“ के चाल चलन , रीति नीति आदि और भारतीय राजनीति में उन्हें कब ललित मोदी और वसुंधरा राजे सिंधिया सरीखों के साथ खड़े रहना पसंद है , कब सुषमा स्वराज सरीखों के साथ खड़े रहना पसंद है , वगैरह वगैरह उनकी फितरत से सुविज्ञ पाठक भलीभांति परिचित होंगे । अभी संक्षेप में बस इतना परिचय ही यथेष्ठ होगा कि वे भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद है । बीजेपी के प्रवक्ता के अभिनय की भूमिका में उनका ये ताजा बयान कि — साल 2014 में भाजपा का चुनावी मुद्दा तो विदेशी बैंकों में जमा काला धन ही था , मगर सत्ता हासिल करने के ढाई साल बाद “ मोदी सरकार की काले धन के खिलाफ लड़ाई की जगह बदल गयी है। सरकार का इरादा अब विदेश में जमा कालेधन के बदले देश में जमा कालेधन के खिलाफ हल्ला बोलने का है“
मेघनाथ देसाई का ये बयान , क्या मोदी जी के उस बयान पर पर्दा डलवाने के लिए दिलवाया गया है , जो उन्होंने 8 नोवेम्बर को रात 8 बजे राष्ट्र को संबोधित करते हुए दिया था ? अपने वक्तव्य में मोदी जी ने साफ़ साफ़ कहा था कि – इस कदम की भनक उन्होंने अपने मंत्रिमंडल को भी नही लगने दी ? जब भनक मंत्रिमंडल को नही थी तो , इस देश के आमजन , जिन्हें लोकतांत्रिक प्रणाली की थोड़ी बहुत भी ए बी सी डी आती है , इस फैसले को सरकार का फैसला कैसे मान लें ? क्या मेघनाथ देसाई की सफाई उस गलती की भरपाई कर देगी जो मोदी जी से हो चुकी है ? मेरे ख्याल से इसकी भरपाई अब नही हो सकती ।
इस देश की 125 करोड़ की कुल आबादी में से मात्र 2 करोड़ 87 लाख लोग आयकर रिटर्न भरते है जिनमे से केवल 1 करोड़ 25 लाख लोग ही आयकर भरते है । शेष 96 प्रतिशत को सुपने में भी इस बात का ख्याल नही आया होगा कि अभी ढाई साल पहले भ्रष्टाचार् और विदेशी बैंकों में जमा कालेधन की वापसी की आस पाल जिंसने अपने विवेक पर पर्दा , कानों में रुई और आँखों पर पट्टी बांध जिस मोदी को पूरी ताकत से सत्ता सौंपी थी वही मोदी एक दिन उन्ही के घरों में कालाधन होने के शक के दायरे में उन्हें ही घसीट लेगा । अपने नोटों की पहचान के साथ उन्हें अपनी पहचान देनी होगी और सबूत जुटाने होंगे कि ये धन काला नही है । घर में बीमार पड़े परिजनों की देखभाल दवादारू , अस्पताल , डॉक्टर की फीस , रिक्शा भाड़ा अदा करने के लिए उसके पास धन होते हुए भी कोई उसे लेना तो दूर छूने को भी तैयार नही होगा । और इलाज के अभाव में प्रसव के दौरान उसकी बीबी-बच्चे , बूढ़े माँ-बाप उसी की आँखों के सामने दम तोड़ देंगे । और ऐसे हालातों के चलते बीजेपी के अध्यक्ष के मुँह से उनका ये बयान कि देश का आमजन मोदी जी के इस कदम को सर आँखों पर उठाये डोल रहा है , क्यों “ जले पर नमक छिड़कने “ जैसा न कहा जाए ?
मोदी जी इस देश में हजारों उद्द्योगपति ऐसे है जो कागजी किसान हैं और आपके सामने 56 इंच का सीना खोल के दिखा और धडल्ल्ले से टैक्स चोरी कर रहे हैं । करनी थी तो सर्जिकल स्ट्राइक उन पर करते । इस देश में खेतिहार मजदूर , छोटे कारोबारी , छोटे ठेकेदार , दिहाड़ी मजदूर , होटल रेस्टोरेंट , ढाबे , टीस्टाल , पटरी दुकानदार , रेढी धकेल पर सब्जी बेचने वाले , पुराना रद्दी कागज़ अखबार खरीदने वाले आदि आदि ऐसा तबका है जिसके साथ सारा लेनदेन नगद (कैश) ही होता है । इन सब पर सर्जिकल स्ट्राइक करके आपको क्या मिला ? वोतो आप ही जाने । पर देश के आमजन ने जो जाना है , वक्त आने पर आपको जरूर बताएगा ।
इस देश में किन किन उद्द्योगपतियों ने , सरकारी अधिकारियों ने , मंत्रियों ने , सांसदों ने विधायकों ने और जाने किन किन ने महज आयकर डकारने के लिए खुद को कागजों पर किसान दिखा रख्खा है । दो कूड खेत में हल चला के , पलेवा करके , खेत की ओट कब आगयी , किस बीज को बोते समय कौन सी खाद उपयोग में लेनी है वगैरह वगैरह सवाल अगर आपका आयकर अधिकारी इन कागजी किसानों से पूंछ ले तो किसका अंडरवीयर खराब होने से बचेगा राम जी जाने । पर फिलहाल तो काले नोटों को उजला कराने के चक्कर में बिचारा आमजन आपके हर सवाल का जबाब देने को मजबूर है ।
आप अपने कार्यकाल में कॉंग्रेस मुक्त भारत बना पाएंगे या नही ये कोई नही जानता । पर हाँ आपने कोंग्रेसी नोट मुक्त भारत तो बना के दिखा ही दिया है । और हाँ , अब नोटों की नयी श्रखंला के साथ 30 दिसंबर तक घर घर मोदी तो पहुँच ही जाएगे ।
लेखक विनय ओसवाल हाथरस (यूपी) के वरिष्ठ पत्रकार हैं.