Connect with us

Hi, what are you looking for?

राजनीति-सरकार

गन्ने पर घाटा, दवा पर सात सौ टका मुनाफा : क्या नीति है!

गोपाल अग्रवालफसल बोये तो लागत भी नहीं निकलती, यदि फैक्ट्री लगा लें तो हजारों गुना का लाभ मिलेगा : मानवीय जीवन का दो तत्वों से सर्वाधिक संवेदनशील रिश्ता है, दवा व चीनी। मूल तत्व हवा पानी प्रकृति ने प्रदान किए हैं। उसके बाद की प्राथमिक आवश्यकताओं में नमक है जिस पर महात्मा गांधी जन-आन्दोलन चला चुके हैं। डा. राम मनोहर लोहिया ने भी अर्थशास्त्र की पीएचडी ‘नमक सत्याग्रह’ पर ही की थी। इतना कह सकता हूं कि नमक के बाद अगला जन-आन्दोलन चीनी व दवा को लेकर ही चलेगा। गन्ना किसान मुसीबत में हैं परन्तु चीनी के दाम बढ़ रहे हैं जिसका लाभ किसान को नहीं है। चीनी मिलों के मुनाफे में देश के कर्णधार अघोषित पार्टनर हैं। किसान उस बीमार की तरह है जिससे प्रत्येक को हमदर्दी है परन्तु उसकी संजीवनी का स्रोत चीनी मिल में है जहां रखी संजीवनी का स्टाक मिल मालिक, अधिकारी तथा कथित राजनेता अपने यौवन को बरकरार रखने के लिए कर रहे हैं।

गोपाल अग्रवाल

गोपाल अग्रवालफसल बोये तो लागत भी नहीं निकलती, यदि फैक्ट्री लगा लें तो हजारों गुना का लाभ मिलेगा : मानवीय जीवन का दो तत्वों से सर्वाधिक संवेदनशील रिश्ता है, दवा व चीनी। मूल तत्व हवा पानी प्रकृति ने प्रदान किए हैं। उसके बाद की प्राथमिक आवश्यकताओं में नमक है जिस पर महात्मा गांधी जन-आन्दोलन चला चुके हैं। डा. राम मनोहर लोहिया ने भी अर्थशास्त्र की पीएचडी ‘नमक सत्याग्रह’ पर ही की थी। इतना कह सकता हूं कि नमक के बाद अगला जन-आन्दोलन चीनी व दवा को लेकर ही चलेगा। गन्ना किसान मुसीबत में हैं परन्तु चीनी के दाम बढ़ रहे हैं जिसका लाभ किसान को नहीं है। चीनी मिलों के मुनाफे में देश के कर्णधार अघोषित पार्टनर हैं। किसान उस बीमार की तरह है जिससे प्रत्येक को हमदर्दी है परन्तु उसकी संजीवनी का स्रोत चीनी मिल में है जहां रखी संजीवनी का स्टाक मिल मालिक, अधिकारी तथा कथित राजनेता अपने यौवन को बरकरार रखने के लिए कर रहे हैं।

दवा में गरीब व्यक्ति को कर्जे की यातनाएं साथ मिलती हैं। असहाय व्यक्ति अपने प्रियजन के उपचार के लिए अपना सब कुछ बेच कर दवा खरीदने को बाध्य है। न चीनी के बिना रह सकते, न दवा के बिना, परन्तु सरकार ने यह कभी सार्वजनिक नहीं किया कि दवा व चीनी की फैक्ट्रीवालों का मुनाफा कितना है। हम यह कदापि नहीं जानना चाहते कि कार, टेलीविजन, सूट लेन्थ व टाई आदि की फैक्ट्रीवाले को कितना मुनाफा है। ये तो हैसियत व जेब की सुविधा से खरीदे जाने वाली वस्तुएं हैं। परन्तु चीनी घर की आम जरूरत व दवा प्राकृतिक आपदा से उबरने का आधार है। जब जनता को यह सच्चाई मालूम पड़ेगा कि दवा व चीनी के दामों मे हो रही लूट का भुगतान उन्हें अपना पेट काटकर करना पड़ रहा है।  देश के कर्णधार सावधान हो जॉय। नमक से बड़ा सत्याग्रह दवा व चीनी के दामों को लेकर होगा।

कृषि आधारित देश में कृषक को फसल का मूल्य न मिले, रोटी के लिए हल, फावड़ा, बरतन धोते, घर साफ करते, छोटी-मोटी नौकरी करते या फेरी लगाकर सुबह से रात तक जंग करते हुए 90 करोड़ लोगों को जानकारी मिले कि दवा लागत से पांच-सात सौ या हजार प्रतिशत मुनाफे पर बेची जा रही है तो लोग क्षुब्धता व आक्रोश से भर उठेंगें। सवाल करेंगे कि क्या मिलों से चन्दे में सैंकड़ों करोड़ लेकर जनता को अन्याय की ज्वाला में सुलगने के लिए छोड़ना देश के नीति निर्धारकों की संवैधानिक जिम्मेदारी है?

नर्सिंग होम के बेड से बेटे-पोतों के सहारे उठा और लाठी के सहारे टुकर-टुकर चलने वाले वृद्ध के बेटे के मन में यह जिज्ञासा जग जाये कि डिस्चार्ज स्लिप पर लिखी जिस गोली को सात रुपये में खरीदा है उसके निर्माण पर वास्तविक लागत कितनी है तो पैदा हुई गर्मी को ठन्डा करने में शहर भर की दमकलें कम पड़ जायेंगी। दवा बेचने वाला केमिस्ट तो हाथ खड़ा कर कह देगा कि भई वह नहीं जानता, उसकी खरीद पांच रुपये पिच्चासी पैसे की है। इसमें दुकान का किराया, बिजली, नौकर और तमाम विभागों की सेवा, सब कुछ है परन्तु दवा खरीदने वाला युवक खोजी प्रवृति का हुआ और गंगा से गंगोत्री की ओर जाती राह की तरह मेडिकल स्टोर से फैक्ट्री तक पहुंच कर ज्ञात कर ले कि जिस गोली को उसने सात रुपये में खरीदा है उसकी निर्माण लागत तो पचास-साठ पैसे ही आई है तो सबसे पहले कहेगा कि ‘शर्म करो ऐ देश चलाने वालों’। परन्तु देश चलाने वाले तो नमक, चीनी व दवा की फैक्ट्री तो क्या सरकारी फैक्ट्रियों से भी चन्दा लेते हैं। तो क्या, एक बार फिर बिना गांधी के डांडी मार्च होगा या किसी गांधी के आने का इन्तजार करना पड़ेगा?

किसानों को भी अपना गन्ना जलाने के बजाय नगाड़े बजा कर जिला मुख्यालयों पर यह सवाल पूछना चाहिए कि खेत में फसल बोये तो लागत भी नहीं निकलती, यदि फैक्ट्री लगा लें तो हजारों गुना का लाभ मिलेगा, तो क्या, सरकार खेतों को कंक्रीट फील्ड बनाना चाहती है? इन पर सड़क व इमारतें बनाना चाहती है? जिसकी आत्मा नहीं उसके तन में क्या है? किसान देश की आत्मा है। किसान की बर्बादी का चाह लिए हुए देश के नीति निर्धारक यह जान लें कि भूखे अन्नदाता के देश में कटोरा लेकर यूरोप, अमरीका की ओर अन्न के दानों के लिए लगी लाइन में सबसे आगे वे ही होंगे।


लेखक गोपाल अग्रवाल समाजवादी आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं। इन दिनों समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति के हिस्से हैं। मेरठ निवासी गोपाल से संपर्क [email protected] के जरिए या फिर 09837087693 के माध्यम से किया जा सकता है।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

मेरी भी सुनो

अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाने के लिए पहले रेडियो, अखबार और टीवी एक बड़ा माध्यम था। फिर इंटरनेट आया और धीरे-धीरे उसने जबर्दस्त लोकप्रियता...

साहित्य जगत

पूरी सभा स्‍तब्‍ध। मामला ही ऐसा था। शास्‍त्रार्थ के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्रश्‍नकर्ता के साथ ऐसा अपमानजनक व्‍यवहार...

मेरी भी सुनो

सीमा पर तैनात बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव ने घटिया खाने और असुविधाओं का मुद्दा तो उठाया ही, मीडिया की अकर्मण्यता पर भी निशाना...

समाज-सरोकार

रूपेश कुमार सिंहस्वतंत्र पत्रकार झारखंड के बोकारो जिला स्थित बोकारो इस्पात संयंत्र भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का इस्पात संयंत्र है। यह संयंत्र भारत के...

Advertisement