मेरठ कभी फाइनेंस कम्पनियों का हब बन गया था। रोज नई खुलने वाली फाइनेंस कंपनियां अपनी तड़क-भड़क दिखाकर जनता के धन को अपने यहां जमा कराने के लिए आकर्षित करती थीं जो कारोबार में लगाये जाने के बजाय कम्पनी स्वामियों की निजी वैभव में खर्च कर लिया जाता था। फलस्वरूप जल्दी ही अधिकांश कम्पनियां डूब गईं। शेयर मार्केट में भी धन लगाने वाले व्यक्ति बिना पुरुषार्थ किए, आंकलन व अपेक्षाओ के सहारे धन निवेश कर अधिक लाभ प्राप्त करना चाहता है।
बैकों से ऋण लेते समय व विदेशी देशों के लिए वीजा बनवाने के लिए भी अपनी हैसियत को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया जाता है। विवाह प्रस्ताव के समय छोटा-मोटा चिड़ीमार भी अपने को बड़ा शिकारी होने की डींग मारता है। परन्तु दो नम्बर के बहीखातों का सबसे बड़ा प्रयोग चुनाव खर्च के विवरण में होता है जहां ईमानदारी व देशभक्ति की कसमें खाने व जान कुर्बान करने वाले बड़े-बड़े राजनैतिक दलों के नेता करोड़ों के खर्च को लाखों में बदल देते हैं। लेखा पुस्तकों की इस परम्परागत हेरा-फेरी को आयकर के छापों व सीबीआई की जांच से बन्द नहीं किया जा सकता है। कारण साफ है, जब राष्ट्र के भाग्य विधाता व सूबे के व्यवस्थापक झूठे लेखा विवरण का शपथ पत्र देकर लोकसभा व विधानसभा के सदस्य बन कर बेईमानी रोकने का कानून बनाना चाहेंगे तो कानून में सिलवटें आना लाजमी है। आखिर समस्या की जड़ तो यही है। दो नम्बर के बहीखातों को जड़ से मिटाना है तो उनके उदगम स्थल पर ही बन्दोबस्त करना होगा।
एक बार जनता मन में ठान ले कि गलत विवरण के लिए सौ रामलिगम् राजू (सत्यम) के गुनाह माफ किये जा सकते हैं परन्तु लोकतन्त्र के पवित्र मन्दिर लोकसभा व विधानसभा में प्रवेश करने के लिए झूठे ब्योरे देने वाले एक भी अपराधी को माफ नहीं किया जायेगा तो काले धंधे का दोष सदा-सदा के लिए मिट जायेगा। असम्भव कुछ भी नहीं है। जनता करोड़ों खर्च करने वालों पर निगाह रखे और उन्हें वोट न दे। काले धन की बीमारी को दूर करने का यह सबसे अचूक नुस्खा है। लोकसभा चुनाव नजदीक है। चाहे तो आजमा कर देख ले।