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अब गलत ई-मेल और कमेंट पर नप जाएंगे

जगदीश्वर चतुर्वेदीसाइबर उत्‍पाति‍यों की खैर नहीं : भारत में मंगलवार से संशोधि‍त सूचना तकनीक कानून 2008 लागू हो गया है। यह सन् 2008 के सूचना तकनीक कानून का संशोधि‍त रूप है। साइबर जगत के अपराधों पर अब सरकार और भी सख्‍ती के साथ पेश आएगी। अभि‍व्‍यक्‍ति‍ की आजादी के नाम पर चाहे जि‍से भी संदेश भेजना, अपमानजनक ब्‍लाग लेखन, अपमानजनक टि‍प्‍पणि‍यां, अश्‍लील सामग्री का वि‍तरण, बाल पोर्नोग्राफी के वि‍तरण के साथ-साथ साइबर सामग्री के बगैर अनुमति‍ के उपयोग और दुरुपयोग के बारे में यह कानून ज्‍यादा सख्‍त है। इस कानून से गैर कानूनी साइबर हरकतें कि‍तनी कम होंगी, यह तो वक्‍त ही बताएगा, लेकि‍न यह तय है‍ अब आप मनमाने लेखन के दि‍न लद गए।

जगदीश्वर चतुर्वेदी

जगदीश्वर चतुर्वेदीसाइबर उत्‍पाति‍यों की खैर नहीं : भारत में मंगलवार से संशोधि‍त सूचना तकनीक कानून 2008 लागू हो गया है। यह सन् 2008 के सूचना तकनीक कानून का संशोधि‍त रूप है। साइबर जगत के अपराधों पर अब सरकार और भी सख्‍ती के साथ पेश आएगी। अभि‍व्‍यक्‍ति‍ की आजादी के नाम पर चाहे जि‍से भी संदेश भेजना, अपमानजनक ब्‍लाग लेखन, अपमानजनक टि‍प्‍पणि‍यां, अश्‍लील सामग्री का वि‍तरण, बाल पोर्नोग्राफी के वि‍तरण के साथ-साथ साइबर सामग्री के बगैर अनुमति‍ के उपयोग और दुरुपयोग के बारे में यह कानून ज्‍यादा सख्‍त है। इस कानून से गैर कानूनी साइबर हरकतें कि‍तनी कम होंगी, यह तो वक्‍त ही बताएगा, लेकि‍न यह तय है‍ अब आप मनमाने लेखन के दि‍न लद गए।

साइबर जगत में जि‍म्‍मेदार लेखन और सृजन के लि‍ए ज्‍यादा सुरक्षि‍त रास्‍ता तैयार हुआ है। अभी तक जो लोग अपमानजनक ई-मेल भेजकर सो जाते थे, वे ऐसा नहीं कर पाएंगे। अपमानजनक, अवैध ई-मेल कानून के दायरे में आ चुके हैं। अब आपका ई-मेल भी वैध गति‍वि‍धि‍ है। आपकी टि‍प्‍पणी और ई-मेल भी कॉपीराइट के दायरे में हैं। गलत करने पर दंडि‍त हो सकते हैं। गोपनीयता का उल्‍लंघन अभी तक साइबर स्‍पेस में अपराध नहीं था लेकि‍न अब अपराध है। आप कि‍सी के वैध संरक्षि‍त डाटा का अनुमि‍त के बि‍ना व्‍यावसायि‍क इस्‍तेमाल नहीं कर सकते। अब तक ‘ई-व्‍यापार’ के नाम पर जो धोखाधड़ी चल रही थी उसे रोक नहीं सकते थे।

इस कानून के जरि‍ए ‘ई-व्‍यापार’ की धोखाधडी भी दंड वि‍धान के दायरे में चली आयी है। साइबर स्‍पेस में चलने वाली खरीद-फरोख्‍त भी इसके दायरे में चली आयी है। संशोधि‍त कानून के व्‍यापक सामाजि‍क प्रभाव हो सकते हैं, बशर्ते सरकार के पास ‘ई-नि‍गरानी’ करने वाली व्‍यापक मशीनरी हो। साइबर कानून में संशोधन से सि‍र्फ इतना हुआ है कि‍ हमारे पास कानून है। कोई शि‍कायत करने आएगा तो कानूनी कार्रवाई की जा सकती है लेकि‍न स्‍वयं सरकार अपनी तरफ से कोई कदम नहीं उठाने जा रही है। आमतौर पर जि‍न देशों ने साइबर कानून बनाए हैं वहां पर साइबर नि‍गरानी करने वाली लंबी-चौड़ी फौज रखी गयी है।

भारत में कानून है लेकि‍न कानून लागू करने वाली संरचनाएं अभी तक नहीं बन पायी हैं। अदालतों का जो हाल है उसे देखकर नहीं लगता कि‍ यह कानून कि‍सी भी साइबर अपराधी को रीयल टाइम में पकड़ पाएगा अथवा रीयल टाइम में दंडि‍त कर पाएगा। साइबर कानून तब ही प्रभावी हो सकता है जब उसकी नि‍गरानी करने वाली स्‍वतंत्र एजेंसी हो, साइबर जगत पर भारत सरकार की नि‍गरानी चौकि‍यां हों, इसके लि‍ए लाखों साइबर पुलि‍सकर्मी हों जो रीयल टाइम में एक्‍शन लें और कानून का पालन करें। संशोधि‍त सूचना तकनीक कानून को सन् 2000 में बनाया गया था। बाद में दि‍सम्‍बर 2008 में इसमें संशोधन कि‍ए गए जि‍न्‍हें राष्‍ट्रपति‍ के पास स्‍वीकृति‍ के लि‍ए भेजा गया था। राष्‍ट्रपति‍ ने फरवरी 2009 में इसे मंजूरी दी है और 27 अक्‍टूबर 2009 से यह कानून लागू हो गया है। इसके दायरे में साइबर आतंकवाद को भी शामि‍ल कर लि‍या गया है। साथ ही पहली बार बाल पोर्नोग्राफी को अपराध माना गया है। इस कानून का अभि‍व्‍यक्‍ति‍ की आजादी को कुचलने के लि‍ए भी कोई भी सरकार दुरूपयोग कर सकती है।

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