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नपुंसक, निर्लज्‍ज व रीढ़विहीन बौद्धिक लम्‍पट

मीडिया के जनविरोधी, विज्ञान विरोधी, तर्क विरोधी चरित्र को सामने लाने की जरूरत : एक अखबार में ज्ञानेश्‍वरी ट्रेन हादसे को लेकर एक खबर छपी है जिसे पढ़कर कोई भी विवेकवान और इंसाफ पसंद नागरिक भौचक रह जाएगा। इस खबर में ममता बनर्जी को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि जांच दल अपना काम कर रहा है और जल्द ही इस बात का पता चल जाएगा कि हादसे के लिए जिम्‍मेदार कौन से तत्‍व हैं। बताने की जरूरत नहीं कि इस दु:खद घटना के अगले दिन देश के छोटे-बड़े सभी दैनिक समाचारपत्रों ने नक्‍सलियों को इसके लिए जिम्‍मेदार बताते हुए खबर छापी थी। फिर क्‍या था अखबारों के संपादकीय पेज पर निंदा-भर्त्‍सना और लानत-मलामत का दौर शुरू हो गया। मुख्‍यधारा के किसी भी बुद्धिजीवी ने लेख लिखने से पहले खबर की पुष्टि कर लेना जरूरी नहीं समझा।

<p><strong>मीडिया के जनविरोधी, विज्ञान विरोधी, तर्क विरोधी चरित्र को सामने लाने की जरूरत :</strong> एक अखबार में ज्ञानेश्‍वरी ट्रेन हादसे को लेकर एक खबर छपी है जिसे पढ़कर कोई भी विवेकवान और इंसाफ पसंद नागरिक भौचक रह जाएगा। इस खबर में ममता बनर्जी को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि जांच दल अपना काम कर रहा है और जल्द ही इस बात का पता चल जाएगा कि हादसे के लिए जिम्‍मेदार कौन से तत्‍व हैं। बताने की जरूरत नहीं कि इस दु:खद घटना के अगले दिन देश के छोटे-बड़े सभी दैनिक समाचारपत्रों ने नक्‍सलियों को इसके लिए जिम्‍मेदार बताते हुए खबर छापी थी। फिर क्‍या था अखबारों के संपादकीय पेज पर निंदा-भर्त्‍सना और लानत-मलामत का दौर शुरू हो गया। मुख्‍यधारा के किसी भी बुद्धिजीवी ने लेख लिखने से पहले खबर की पुष्टि कर लेना जरूरी नहीं समझा। </p>

मीडिया के जनविरोधी, विज्ञान विरोधी, तर्क विरोधी चरित्र को सामने लाने की जरूरत : एक अखबार में ज्ञानेश्‍वरी ट्रेन हादसे को लेकर एक खबर छपी है जिसे पढ़कर कोई भी विवेकवान और इंसाफ पसंद नागरिक भौचक रह जाएगा। इस खबर में ममता बनर्जी को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि जांच दल अपना काम कर रहा है और जल्द ही इस बात का पता चल जाएगा कि हादसे के लिए जिम्‍मेदार कौन से तत्‍व हैं। बताने की जरूरत नहीं कि इस दु:खद घटना के अगले दिन देश के छोटे-बड़े सभी दैनिक समाचारपत्रों ने नक्‍सलियों को इसके लिए जिम्‍मेदार बताते हुए खबर छापी थी। फिर क्‍या था अखबारों के संपादकीय पेज पर निंदा-भर्त्‍सना और लानत-मलामत का दौर शुरू हो गया। मुख्‍यधारा के किसी भी बुद्धिजीवी ने लेख लिखने से पहले खबर की पुष्टि कर लेना जरूरी नहीं समझा।

मां के आंचल की छांव से निकलकर पत्रकारिता करने पहुंचे शावक पत्रकारों को बताया-समझाया जाता है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा खंभा है पर दरअसल यह राज्‍य का चौथा खंभा है। यकीन नहीं आ रहा हो तो रेल हादसे के बाद की संपादकीय टिप्‍पणियों और विश्‍लेषणों को पढ़ लीजिए, काफी कुछ स्‍पष्‍ट हो जाएगा। कोई भी राज्‍य जब जनता की बुनियादी जरूरतों को पूरी नहीं कर पाता और जनता के कुछ हिस्‍से जब बागी तेवर अख्तियार कर लेते हैं तो वही ह्रासोन्‍मुख राज्‍य अपनी ही जनता के खिलाफ सबसे पहले लंपट तत्‍वों को भेजता है। चूंकि बात यहां मीडिया की हो रही है और इस स्‍थापना के साथ कि मीडिया लोकतंत्र का नहीं वरन राज्‍य का चौथा खंभा है तो बुद्धिजीवियों के नैतिक स्‍तर और उनकी प्रतिबद्धता पर बात करना जरूरी हो जाता है। दैनिक जागरण में प्रकाशित एक लेख में पांचजन्‍य के पूर्व संपादक तरुण विजय ने लिखा कि मार्क्‍सवादी गुंडों पर नकेल कसना बहुत जरूरी हो गया है।

दो अलग-अलग विश्‍व दृष्टियों के मध्‍य टकराव होना लाजिमी है और यह टकराव अनेकश: धरातलों पर होता है लेकिन जनता की पिछड़ी चेतना को हथियार बनाकर राज्‍य मार्क्‍सवादी विचारधारा को बदनाम करने के लिए बौद्धिक लंपटों का सहारा बड़े पैमाने पर ले रहा है। मुझे नपुंसक, निर्लज्‍ज व रीढ़विहीन बौद्धिक लम्‍पटों के बारे में अधिक कुछ नहीं कहना क्‍योंकि हम सभी अपने-अपने अनुभवों से जानते हैं कि थोड़ी सी सुख-सुविधाओं को बटोर लेने के लिए इनके नीचे गिरते जाने की को‍ई सीमा नहीं होती।

यहां हम मीडिया के राज्‍य का चौथा खंभा होने और राज्‍य द्वारा बौद्धिक लंपटों का इस्‍तेमाल किये जाने पर बात कर रहे हैं। चूंकि जनता की चेतना पिछड़ी हुई है इसलिए उसके दिलो-दिमाग में समाज के अगुवा तत्‍वों के खिलाफ पूर्वाग्रह भर देना बहुत आसान है और इसके लिए और कुछ नहीं करना बस मीडिया की ताकत के सहारे झूठ पर झूठ को प्रसारित करते जाना है। लेकिन हममें से उन लोगों को इसका प्रतिकार करना ही होगा जो कि असलियत को समझते हैं वरना इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

थोड़ा नक्‍सलियों के बारे में। अकेले भारत में ही नही दुनिया के तमाम हिस्‍सों में ऐसा हो रहा है कि मध्‍यवर्गीय भटकाव के चलते मुट्ठी भर लोग जनता को जागृत-गोलबंद किये बगैर इंकलाब कर लेना चाहते हैं। वे क्रांति के विज्ञान को नहीं जानते बस भावना से ही क्रांतिकारी हैं। लेकिन, चूंकि वे राज्‍य के दमनात्‍मक चरित्र को उजागर करते हैं, उसकी पतनशीलता को बेपर्दा करते हैं इसलिए जनता उन्‍हें अपना मानने लगती है और इसी जनता की नजर में उन्‍हें गिराने के लिए मीडिया के लंपट बौद्धिक मुंह से फेचकुर छोड़ते हुए लिख-बोल रहे हैं। दोस्‍तो, हमें मीडिया के इस जनविरोधी-विज्ञान विरोधी, तर्क विरोधी चरित्र को सामने लाना होगा।

लेखक कामता प्रसाद पत्रकार हैं और जनांदोलनों के प्रखर समर्थक हैं.

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