Connect with us

Hi, what are you looking for?

समाज-सरोकार

वाह मोदी जी! करे कोई, भुगते कोई

श्रीगंगानगर। जब तक ये शब्द आप तक पहुंचेंगे,  तब तक देश को परेशान हुए तीन दिन से अधिक हो चुके होंगे। देश मेँ उन व्यक्तियों को शामिल नहीं किया जो देश चलाते हैं या देश चलाने वालों के सहयोगी हैं। उनके साथ हैं। क्योंकि उन पर किसी सरकार के किसी भी फैसले का कोई असर नहीं होता। वे हर फैसले से ऊपर हैं। उनको ना तो बाजार जाना है। ना कहीं किसी लाइन मेँ लगना है। ना सौ रुपये का पेट्रोल डलवाना है और ना सब्जी लेनी है। ऐसे लोग खुद सरकार होते हैं। जो सरकार है वह देश नहीं। यहां उस देश का जिक्र है जिसे घर चलाने के लिये रुपए कमाने हैं। उसका नहीं, जिसके पास इतना है कि उसे उसी की चिंता है, घर की नहीं। आम आदमी वो नहीं जिसके पास हर साधन और सुविधा है। आम आदमी वो है जिसको एक सुविधा के लिये दुविधा मेँ जीना पड़ता है। बुजुर्ग माँ-बाप की चिंता है। बच्चों की पढ़ाई की फिक्र है। बेटियों की शादी करनी है। मामूली से बुखार पर एक हजार रुपया लग जाता है।

<p>श्रीगंगानगर। जब तक ये शब्द आप तक पहुंचेंगे,  तब तक देश को परेशान हुए तीन दिन से अधिक हो चुके होंगे। देश मेँ उन व्यक्तियों को शामिल नहीं किया जो देश चलाते हैं या देश चलाने वालों के सहयोगी हैं। उनके साथ हैं। क्योंकि उन पर किसी सरकार के किसी भी फैसले का कोई असर नहीं होता। वे हर फैसले से ऊपर हैं। उनको ना तो बाजार जाना है। ना कहीं किसी लाइन मेँ लगना है। ना सौ रुपये का पेट्रोल डलवाना है और ना सब्जी लेनी है। ऐसे लोग खुद सरकार होते हैं। जो सरकार है वह देश नहीं। यहां उस देश का जिक्र है जिसे घर चलाने के लिये रुपए कमाने हैं। उसका नहीं, जिसके पास इतना है कि उसे उसी की चिंता है, घर की नहीं। आम आदमी वो नहीं जिसके पास हर साधन और सुविधा है। आम आदमी वो है जिसको एक सुविधा के लिये दुविधा मेँ जीना पड़ता है। बुजुर्ग माँ-बाप की चिंता है। बच्चों की पढ़ाई की फिक्र है। बेटियों की शादी करनी है। मामूली से बुखार पर एक हजार रुपया लग जाता है।</p>

श्रीगंगानगर। जब तक ये शब्द आप तक पहुंचेंगे,  तब तक देश को परेशान हुए तीन दिन से अधिक हो चुके होंगे। देश मेँ उन व्यक्तियों को शामिल नहीं किया जो देश चलाते हैं या देश चलाने वालों के सहयोगी हैं। उनके साथ हैं। क्योंकि उन पर किसी सरकार के किसी भी फैसले का कोई असर नहीं होता। वे हर फैसले से ऊपर हैं। उनको ना तो बाजार जाना है। ना कहीं किसी लाइन मेँ लगना है। ना सौ रुपये का पेट्रोल डलवाना है और ना सब्जी लेनी है। ऐसे लोग खुद सरकार होते हैं। जो सरकार है वह देश नहीं। यहां उस देश का जिक्र है जिसे घर चलाने के लिये रुपए कमाने हैं। उसका नहीं, जिसके पास इतना है कि उसे उसी की चिंता है, घर की नहीं। आम आदमी वो नहीं जिसके पास हर साधन और सुविधा है। आम आदमी वो है जिसको एक सुविधा के लिये दुविधा मेँ जीना पड़ता है। बुजुर्ग माँ-बाप की चिंता है। बच्चों की पढ़ाई की फिक्र है। बेटियों की शादी करनी है। मामूली से बुखार पर एक हजार रुपया लग जाता है।

सरकारी हॉस्पिटल मेँ जाओ! वहां कौनसे डाक्टर साहब मेरे ही इंतजार मेँ हैं। मुझे काले- सफ़ेद धन की तो समझ है नहीं लेकिन ये जरूर दिखाई दे रहा है, समझ आ रहा है कि पीएम मोदी जी के निर्णय से आज आम आदमी प्रभावित हुआ है। कारोबार ठप है। साधारण घरों मेँ परेशानी है। वो जमाना और था जब 500 का नोट किसी किसी के पास हुआ करता था। आज तो 500 का नोट आम बात हो गई। यह तो ठीक वैसे है जैसे सालों पहले 100 का नोट हुआ करता था। ये वो वक्त था जब बच्चे को जेब खर्च के  लिये चवन्नी, अठन्नी मिला करती थी। लंच  बॉक्स नहीं थे। विद्यार्थी कपड़े के टुकड़े मेँ रोटी लाते थे।  स्कूल मेँ टंकी का पानी पीते थे। तब 500 के नोट बंद करने  का असर आम जनता पर नहीं हुआ था।  आज तो हर कोई इससे प्रभावित है। ऐसा कोई घर ही नहीं, जहां 500 के नोट ना हो। रसोई से लेकर  बाजार तक यही एक चर्चा है। तमाम मुद्दे इस चर्चा मेँ दब गए हैं। पहले से मंदे बाजार का एक बार तो  दम ही निकल गया है।

प्राइवेट नौकरी या छोटा-मोटा काम कर, अपना घर चलाने वाला काम पे जाए या बैंक की लाइन मेँ लगे। वित्त मंत्री ने तो कह दिया कि शगुन चैक से दो। सभी भुगतान चैक से करो।  मंत्री जी, शादी मेँ कितने ही भुगतान ऐसे होते हैं जो कैश के अतिरिक्त हो ही नहीं सकते। मंत्री जी, एक बार किसी आम घर के किसी दुल्हन, दूल्हे के पिता, भाई, माँ, बहिन बन के देखो। आपको पता लगेगा कि भुगतान कैसे, किस प्रकार, किस माध्यम से होता है। कम से कम आज तो सभी भुगतान चैक से संभव नहीं। कारण! कारण ये कि इसके लिये जनता को तैयार ही नहीं किया गया। कैश लैस करना है तो फिर उसके लिये उसी के अनुरूप योजना भी हो। जन जन को जागरूक करने का काम हो। इसमें कोई शक नहीं कि देश की तरक्की के लिये कड़े निर्णय लेने पड़ते हैं। किन्तु ये समझ नहीं आया कि ऐसा हर कडा निर्णय साधारण परिवार के गले का ही फंदा क्यों बनता है! देश के विकास मेँ केवल आम आदमी को ही कीमत क्यों चुकानी पड़ती है! कष्ट उसे ही क्यों होता है!

आजादी को सत्तर साल होने वाले है। पूरा सिस्टम भ्रष्टाचार मेँ पला है। बड़ा हुआ है। बढ़ा है। इसमें आम आदमी का कसूर क्या है? कुछ भी नहीं। सरकार की नीतियां ही ऐसी थीं कि काला धन समानान्तर सरकार बन कर चुनी हुई सरकार के साथ साथ चलता रहा। सरकार नीतियों से तो इस पर अंकुश लगा नहीं सकी। कड़े निर्णयों से आम परिवार को परेशानी मेँ डाल, काले धन को समाप्त करने की कोशिश मेँ हैं। काला धन समाप्त होगा या नहीं समय बताएगा, लेकिन ये सबको दिखाई दे रहा है कि यह निर्णय जल्दबाज़ी मेँ लिया गया है। जो आम आदमी के हित मेँ नहीं है। लेकिन जो इसकी आलोचना करेगा वही देश का दुश्मन। काले धन का पक्षधर। दो लाइन पढ़ो-

आँख के अंधे बने हुए है किसको राह दिखाए
तुझे गिराकर खूब हसेंगे, खुद आगे बढ़ जाए।
 
govind goyal
[email protected]

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

मेरी भी सुनो

अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाने के लिए पहले रेडियो, अखबार और टीवी एक बड़ा माध्यम था। फिर इंटरनेट आया और धीरे-धीरे उसने जबर्दस्त लोकप्रियता...

साहित्य जगत

पूरी सभा स्‍तब्‍ध। मामला ही ऐसा था। शास्‍त्रार्थ के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्रश्‍नकर्ता के साथ ऐसा अपमानजनक व्‍यवहार...

मेरी भी सुनो

सीमा पर तैनात बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव ने घटिया खाने और असुविधाओं का मुद्दा तो उठाया ही, मीडिया की अकर्मण्यता पर भी निशाना...

समाज-सरोकार

रूपेश कुमार सिंहस्वतंत्र पत्रकार झारखंड के बोकारो जिला स्थित बोकारो इस्पात संयंत्र भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का इस्पात संयंत्र है। यह संयंत्र भारत के...

Advertisement