6 दिसंबर के बहाने : खोदा पहाड़ निकली चुहिया वह भी मरी हुई। लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट के बारे में यही कहावत चरितार्थ होती है। इस आयोग ने 17 साल में अपनी जो यह रिपोर्ट तैयार की है उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जो इससे पहले मीडिया में कहा या लिखा नहीं गया। 17 साल में एक पूरी पीढ़ी जवान हो चुकी है और उम्मीद की जाती थी कि यह आयोग, जिसे 48 बार विस्तार दिया गया अपनी रिपोर्ट में ऐसा कुछ कहेगा, जिससे लोगों में इस देश के कानून और संविधान में विश्वास पैदा हो। लेकिन लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट से सबको निराश ही किया है। आयोग की रिपोर्ट से भी ज्यादा लचर सरकार द्वारा उस पर तैयार की गई कार्रवाई रिपोर्ट है, जिसे देखकर लगता है कि हड़बड़ी में और संसद में हुए हंगामे के बाद एक रात में तैयार किया गया है। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढाए जाने की घटना कोई मामूली घटना नहीं थी। इस घटना के बाद देश भर में सांप्रदायिक दंगे हुए थे।
इन दंगों में सैकड़ों लोग मारे गए थे और करोड़ों रुपए की संपत्ति स्वाहा हुई थी। इससे भी बड़ी बात ये कि इस घटना ने देश के सांप्रदायिक ताने-बाने को बड़ी चोट पहुंचाई थी और सैकड़ों वर्ष पुराने सौहार्द को नुकसान पहुंचाया था। साथ ही यह घटना दिन-दहाड़े कानून, संविधान, सुप्रीम कोर्ट, सरकार और राष्ट्रीय एकता परिषद के फैसलों को धता बताकर अंजाम दी गई थी।
इसलिए अयोध्या की इस घटना को सिर्फ दो पक्षों, धर्मो या संप्रदायों का आपसी विवाद नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि इस घटना ने न सिर्फ ये कि पूरी दुनिया में भारत की नाक कटवाई बल्कि एक आधुनिक, प्रगतिशील और उभरते राष्ट्र की जड़ों में मट्ठा डालने का काम किया। इस घटना से जो नुकसान पहुंचा उसकी भरपाई सदियों में भी नहीं हो पाएगी। लिब्रहान आयोग से उम्मीद की जाती थी कि वह अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ढाए जाने की घटना की गहन जांच-पड़ताल करेगा और उन तथ्यों को देश के सामने लाएगा जिनकी वजह से इस घटना को अंजाम दिया गया।
जो लोग बाबरी मस्जिद को ढाए जाने के षडयंत्र में शामिल थे उनकी पहचान करेगा और उन्हें इंगित करते हुए कड़ी से कड़ी सजा दिलाए जाने की सिफारिश करेगा। साथ ही इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इस बारे में भी सुझाव देगा और इस देश का जो राजनीतिक ताना-बाना है, उसे ये हिदायत देगा कि इस तरह की घटनाओं को सरसरे अंदाज में नहीं बल्कि पूरी गंभीरता के साथ लिए जाने की जरूरत है। और इस तरह के आंदोलनों को बढ़ावा देने के लिए, जो लोग रथ यात्राएं, पदयात्राएं या और किसी तरह के आंदोलन चलाते हैं उन्हें इस बात की इजाजत नहीं दी जा सकती कि वे इस महान देश के साथ खिलवाड़ करें। और देश के सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने का काम करें। इस देश की एकता किसी भी धर्म, जाति, संप्रदाय और राजनीतिक दल से ज्यादा बड़ी धरोहर है।
लेखक कुरबान अली देश के जाने-माने पत्रकार हैं.