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मीडिया मंथन

अगर इतने ही पाक साफ हैं तो लड़कियों को देखकर लार क्यों टपकाते हैं?

यशवंत जी विप्लव जी का आर्टिकल ढिबरी चैनल का घोषणा पत्र भाग चार पढ़ा. पढ़कर मन इतना दुखी हो गया कि अपने आपको व्यक्त किये बिना नहीं रह सकी। उनका यह विचार दर्शाता है कि मीडिया में काम करने वाली महिलाओं के प्रति उनके विचार कैसे हैं। चूकि मैं भी मीडिया पर्सन हूं, और अच्छी तरह जानती हूं कि मीडिया मे काम करने वाले कुछ पुरुष संकुचित विचारधारा के होते हैं। मुझे लगता है कि विप्लव जी भी कुछ इसी तरह की मानसिकता के शिकार हैं। सब जानते हैं कि आप किसके बारे में बात कर रहे हैं। एक औरत का बहाना लगाकर आप न जाने कितनी औरतों के बारे में गलत बात कह रहे हैं। अगर आज लडकियां वो काम कर रही है, जिसे बडे़ से बड़ा पत्रकार नहीं कर सकता है तो इसमें गलती किसकी है।

<p style="text-align: justify;">यशवंत जी विप्लव जी का आर्टिकल <a href="baton-baton-mei/1222-2011-04-24-07-20-01.html">ढिबरी चैनल का घोषणा पत्र भाग चार</a> पढ़ा. पढ़कर मन इतना दुखी हो गया कि अपने आपको व्यक्त किये बिना नहीं रह सकी। उनका यह विचार दर्शाता है कि मीडिया में काम करने वाली महिलाओं के प्रति उनके विचार कैसे हैं। चूकि मैं भी मीडिया पर्सन हूं, और अच्छी तरह जानती हूं कि मीडिया मे काम करने वाले कुछ पुरुष संकुचित विचारधारा के होते हैं। मुझे लगता है कि विप्लव जी भी कुछ इसी तरह की मानसिकता के शिकार हैं। सब जानते हैं कि आप किसके बारे में बात कर रहे हैं। एक औरत का बहाना लगाकर आप न जाने कितनी औरतों के बारे में गलत बात कह रहे हैं। अगर आज लडकियां वो काम कर रही है, जिसे बडे़ से बड़ा पत्रकार नहीं कर सकता है तो इसमें गलती किसकी है।</p>

यशवंत जी विप्लव जी का आर्टिकल ढिबरी चैनल का घोषणा पत्र भाग चार पढ़ा. पढ़कर मन इतना दुखी हो गया कि अपने आपको व्यक्त किये बिना नहीं रह सकी। उनका यह विचार दर्शाता है कि मीडिया में काम करने वाली महिलाओं के प्रति उनके विचार कैसे हैं। चूकि मैं भी मीडिया पर्सन हूं, और अच्छी तरह जानती हूं कि मीडिया मे काम करने वाले कुछ पुरुष संकुचित विचारधारा के होते हैं। मुझे लगता है कि विप्लव जी भी कुछ इसी तरह की मानसिकता के शिकार हैं। सब जानते हैं कि आप किसके बारे में बात कर रहे हैं। एक औरत का बहाना लगाकर आप न जाने कितनी औरतों के बारे में गलत बात कह रहे हैं। अगर आज लडकियां वो काम कर रही है, जिसे बडे़ से बड़ा पत्रकार नहीं कर सकता है तो इसमें गलती किसकी है।

आप जैसे कुछ पुरुषों ने ही इन महिलाओं को ऐसे रास्ते सुझाए हैं ना। अगर आज वो औरत किसी राजनेता,  किसी उद्योगपति का बिस्तर गरम करके पैसे कमा रही है तो ऐसे रास्ते इन पुरुषों ने ही उस औरत को बताए हैं। लेकिन एक औरत के कारनामे की वजह से आपने न जाने कितनी लडकियों को आपने इस कतार में शामिल कर लिया।

अगर पुरुष इतना पाक-साफ़ चरित्र का है तो क्यों देश के हर कोने में रोज़ाना कई लडकियों की अस्मत लूटी जाती है, क्यों राह चलती महिलाएं सुरक्षित नहीं है। अगर आज समाज में वेश्‍यावृत्ति है तो उसका जिम्मेदार सिर्फ़ और सिर्फ़ पुरुष है। पुरुष इतना साफ़ है तो उन बदनाम गलियों में जाना छोड़ क्यो नहीं देता। आप बहुत समाज सुधार की बात करते हैं, तो क्यों न पहली शुरुआत पुरुषों की तरफ़ से हो। राह चलती महिलाओं को देखना बंद कर दो, बदनाम गलियों की तरफ़ देखना बंद कर दो, फ़िर देखना कैसे समाज में सुधार आता है। जिन लडकियों से आपको शिकायत है कि वो सारे काम आसानी से कर लेती है तो तुम पुरुष एक पहल करो कि उन लडकियों को भोगने की वस्तु न मान कर अपने दफ़्तर की सिर्फ़ एक कर्मचारी मानो। उस में पात्रता है तो आगे बढ़ने दो। नहीं है तो उसे आगे बढ़ाने के लिए अपने रुतबे का इस्तेमाल मत करो। अगर तुम पुरुषों मे ऐसा करने की हिम्मत है तो फ़िर देखो तुम्हारी शिकायत कितनी जल्दी दूर होगी।

तुम पुरूष ऐसा कर ही नहीं सकते, तुम में इतनी हिम्मत ही नहीं है। लडकियां देखी नहीं कि लार टपकाने लगते हो। कोई लड़की इंटर्नशिप  के लिए किसी मीडिया संस्थान में जाती है, तो तुम उसे नौकरी का लालच देकर उसका शोषण करना चाहते हो, अगर यहां किसी तरह बच गयी, तो जब वह नौकरी के लिए जाती है तो तुम वहां भी उसका शोषण करने से नहीं चूकते हो। अगर लड़की तुम्हारे जाल में नहीं फ़ंसी तो तुम उसको परेशान करते हो, उसे चैन से रहने नहीं देते हो। वही लड़की अगर तुम्हारा फ़ायदा उठाती है तो फ़िर तुम उसे गलत और चरित्रहीन कहते हो। यह किस शास्त्र में लिखा है कि सिर्फ़ पुरुष ही महिला का फ़ायदा उठा सकता है। इसमें गलती किसकी है। उस लड़की कि या फ़िर तुम जैसे पुरूषों की। जब तुम किसी लड़की से हारते हो तो तुम्हें उसमे चरित्रहीनता नज़र आने लगती है। तुम तो खुलकर किसी लड़की के मेहनत की तारीफ़ नहीं कर सकते हो। दरअसल तुम महिलाओं को आगे बढ़ता हुआ देख ही नहीं सकते हो। अगर देख सकते तो आज संसद में महिला आरक्षण बिल ऐसे अधर में लटका हुआ नहीं होता। जब तुम अपना वर्चस्व हिलता हुआ देखते हो तो आगे बढ़ रही महिलाओं मे ऐब ढूंढ़ने लगते हो।

जहां तक बात मंत्री और उद्योगपतियों की कमजोरी जानने की है तो, जब तक कोई अपनी कमजोरी किसी को बताएगा नहीं तो मुझे नहीं लगता है कि किसी की कमजोरी कोई जान पाएगा। तुम पुरुषों का चरित्र इतना कमजोर है कि तुमने अपनी कमजोरी महिलाओं को बना रखा है। आज देखा जाए तो कुंवारे से लेकर शादी शुदा पुरुष तक लड़कियों को देखकर लार टपकाने लगता है। बल्कि शादी शुदा पुरुष ज्यादा ही चरित्र के मैले होते हैं। जिस महिला का आपने जिक्र किया है,  उसने दलाली शुरू की, क्योकि समाज में उसे दलाल मिले। अगर दलाल नाम का प्राणी न होता तो, दलाली का सवाल ही नहीं उठता है। इस आर्टिकल के जरिये महिलाओं के बारे में आपने जो विचार रखे है, मुझे लगता है कि बहाने से ही सही आपने महिलाओं के बारे मे अपनी सोच बता दी। कहीं न कहीं एक तरह के आप भी दलाल ही हैं, जो उस दलाल महिला के जरिए अपना काम निकाल रहे हैं।

लेखिका अंतरा संतोष तिवारी विजन 2020 मैगजीन में रिपोर्टर हैं.

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