Connect with us

Hi, what are you looking for?

बातों बातों में

हिन्दी मां है, तुम मां से बलात्कार कर रही हो

03 मई 2010, सोमवार, वैशाख कृष्ण पंचमी, 2067, प्रिय सुश्री गायत्री शर्मा, प्रसन्न रहो, हम परस्पर अपरिचित हैं। तुम जलजजी को नहीं जानती होगी। उनका पूरा नाम डॉक्टर जयकुमार जलज है। वे रतलाम में ही रहते हैं। उनकी आयु इस समय 75 वर्ष के आसपास होगी। वे मूलतः हिन्दी के प्राध्यापक रहे हैं और रतलाम के शासकीय कला एवम् विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य के पद से सेवा निवृत्त हुए। वे हिन्दी के बहुत ही अच्छे कवि तो हैं ही, देश के प्रख्यात् भाषाविद् भी हैं। हिन्दी को लेकर सदैव चिन्तित, सजग तो रहते ही हैं, यथासम्भव सक्रिय और प्रयत्नरत भी रहते हैं।

<p>03 मई 2010, सोमवार, वैशाख कृष्ण पंचमी, 2067, प्रिय सुश्री गायत्री शर्मा, प्रसन्न रहो, हम परस्पर अपरिचित हैं। तुम जलजजी को नहीं जानती होगी। उनका पूरा नाम डॉक्टर जयकुमार जलज है। वे रतलाम में ही रहते हैं। उनकी आयु इस समय 75 वर्ष के आसपास होगी। वे मूलतः हिन्दी के प्राध्यापक रहे हैं और रतलाम के शासकीय कला एवम् विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य के पद से सेवा निवृत्त हुए। वे हिन्दी के बहुत ही अच्छे कवि तो हैं ही, देश के प्रख्यात् भाषाविद् भी हैं। हिन्दी को लेकर सदैव चिन्तित, सजग तो रहते ही हैं, यथासम्भव सक्रिय और प्रयत्नरत भी रहते हैं।</p>

03 मई 2010, सोमवार, वैशाख कृष्ण पंचमी, 2067, प्रिय सुश्री गायत्री शर्मा, प्रसन्न रहो, हम परस्पर अपरिचित हैं। तुम जलजजी को नहीं जानती होगी। उनका पूरा नाम डॉक्टर जयकुमार जलज है। वे रतलाम में ही रहते हैं। उनकी आयु इस समय 75 वर्ष के आसपास होगी। वे मूलतः हिन्दी के प्राध्यापक रहे हैं और रतलाम के शासकीय कला एवम् विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य के पद से सेवा निवृत्त हुए। वे हिन्दी के बहुत ही अच्छे कवि तो हैं ही, देश के प्रख्यात् भाषाविद् भी हैं। हिन्दी को लेकर सदैव चिन्तित, सजग तो रहते ही हैं, यथासम्भव सक्रिय और प्रयत्नरत भी रहते हैं।

आज सवेरे इन्हीं जलजजी का फोन आया था। उनके स्वरों से लग रहा था कि वे या तो रो चुके हैं या फिर फोन बन्द करके रोने ही वाले हैं। उन्होंने, ‘नईदुनिया’ के आज के अंक में, ‘बचपन से ही प्रतिभावन है नेहा’ शीर्षक से प्रकाशित, श्रीयुत दिलीप हिंगे से तुम्हारी बातचीत में अकारण प्रयुक्त अंग्रेजी के ढेर सारे शब्दों का उल्लेख अत्यधिक पीड़ा के साथ किया। मैंने लगभग एक वर्ष से ‘नईदुनिया’ खरीदना और पढ़ना बन्द कर रखा है। सो, पड़ौस से मँगवाया, देखा/पढ़ा तो जलजजी की पीड़ा समझ पड़ी।

हिन्दी के साथ इन दिनों मनमाना व्यवहार हो रहा है। बिलकुल गरीब की जोरु की तरह। जिसके मन में आता है, वही हिन्दी के साथ अश्लील छेड़खानी कर लेता है और ऐसा कर गर्वित भी हो लेता है। इनमें से कुछ लोग तो जानबूझकर, अत्यधिक निर्लज्जता से यह दुष्कर्म करते हैं किन्तु भारत में अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जिनके माता या पिता में से कोई एक अंग्रेज है अथवा रहा होगा या फिर वे किसी अंग्रेज की अवैध सन्तान हैं। ऐसे लोग जानबूझकर हिन्दी के साथ ऐसा अश्लील बर्ताव नहीं करते। वे तो अपनी सहज प्रकृति के चलते ही हिन्दी में अंग्रेजी शब्द प्रयुक्त करते हैं। ऐसे लोगों को मैं नमन करता हूँ। अहिन्दी भाषी होते हुए भी ये लोग हिन्दी की सेवा करने के निर्दोष प्रयत्न कर रहे हैं। मैं तुम्हें भी ऐसी ही ‘अहिन्दी-भाषी, हिन्दी-सेवी’ मानता हूँ। नहीं जानता कि तुम्हारी माताजी या पिताजी में से कौन अंग्रेज हैं (अथवा रहा होगा) या कि तुम किस अंग्रेज की अवैध सन्तान हो, मैं अपने अन्तर्मन से तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

जैसी हिन्दी तुमने लिखी है, वह भले ही तुम्हारी सहज प्रकृति हो किन्तु उसे ‘भाषा के साथ बलात्कार’ के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता। हिन्दी को मैं अपनी माँ मानता हूँ और इसीलिए, ऐसी प्रत्येक प्रस्तुति को मैं अपनी माँ के साथ बलात्कार ही मानता हूँ। सो, तुम्हारी यह प्रस्तुति भी मेरी माँ के साथ बलात्कार ही है। मुझे नहीं पता कि तुम्हारे साथ या तुम्हारी माताजी के साथ कभी कोई बलात्कार हुआ या नहीं किन्तु तुम तो एक स्त्री हो, सो अनुमान कर रहा हूँ कि बलात्कार से उपजी पीड़ा और तदोपरान्त निर्मित स्थितियों की कल्पना भली भाँति कर सकोगी।

किन्तु ‘नईदुनिया’ में तुम्हारे नाम से जो भी छपा है उसके लिए मैं तुम्हे रंच मात्र भी दोषी नहीं मानता। यह तो तुम्हारी सहज प्रकृति ही थी। हिन्दी के साथ इस बलात्कारी प्रस्तुति का सारा दोष तो ‘नईदुनिया’ का है। वे चाहते तो तुम्हें इस फजीहत से बचा सकते थे। लगभग 63 वर्ष पुराना यह अखबार किसी समय में पत्रकारिता का स्कूल कहा जाता था और लोग अपनी हिन्दी सुधारने के लिए इसे खरीदते, पढ़ते थे। मध्यप्रदेश में इस अखबार जैसा समृद्ध वाचनालय शायद ही किसी अखबार के पास रहा होगा।

यह अखबार हिन्दी में ही छपता है, इसके मालिक, सम्पादक, सम्वाददाता, लेखक सब हिन्दी भाषी ही हैं, ये सब हिन्दी की ही रोटी खा रहे हैं और हिन्दी लेखन के कारण ही जाने-पहचाने, पूजे जा रहे हैं किन्तु सबका आत्म विश्वास इस सीमा तक चुक गया है कि वे सबके सब हिन्दी के सन्दर्भ में या तो ‘मातृ सम्भोगी’ हो गए हैं या फिर ‘माँ के दलाल’ बन गए हैं। वे चाहते तो तुम्हारे द्वारा प्रयुक्त अंग्रेजी शब्दों के स्थान पर हिन्दी के लोकप्रचलित शब्द प्रयुक्त कर लेते, जैसा कि तुम्हारी प्रस्तुति के शीर्षक में (निश्चय ही अनजाने में, स्वभाववश) ‘प्रतिभावान’ शब्द प्रयुक्त कर बैठे। जाहिर है कि तुम्हारी प्रस्तुति में प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द उन्होंने जानबूझकर यथावत् रखे – या तो तुम्हारी फजीहत करने के लिए या फिर हिन्दी की फजीहत करने के लिए।

मैं ईश्वर से याचना करता हूँ कि वह तुम्हें लम्बी उम्र दे और तुम देश के श्रेष्ठ हिन्दी सेवियों में अपना स्थान बनाओ। किन्तु इसके लिए अच्छा होगा कि तुम हिन्दी का समुचित ज्ञान प्राप्त कर लो। जिस भाषा में लिखो, उसके, प्रचुर शब्द भण्डार की स्वामिनी बनने का यत्न करो। इसके लिए तुम्हें कोई अतिरिक्त या विशेष प्रयत्न नहीं करने पड़ेंगे। बस, अपने कान, अपनी आँखें और अपने मस्तिष्क की सारी खिड़कियाँ खुली रखना ही पर्याप्त होगा। अपने से बेहतर लोगों के आसपास रहकर उन्हें सुनना सबसे आसान उपायों में से एक है।

तुम्हारी सुविधा के लिए मैं यहाँ, तुम्हारी प्रस्तुति में प्रयुक्त अंग्रेजी शब्दों के पर्याय प्रस्तुत कर रहा हूँ। ये शब्दानुवाद नहीं, तुम्हारी प्रस्तुति के सन्दर्भ में भावानुवाद हैं-

इण्टेलीजेण्ट : प्रतिभावान

Advertisement. Scroll to continue reading.

सेकण्ड-थर्ड क्लास : दूसरी-तीसरी कक्षा

फिफ्थ-सिक्स्थ : पाँचवीं-छठवीं

पोयम्स : कविताएँ

गेम्स : खेल

इण्टेरेस्टेड थी : रुचि रखती थी

स्कूल टाइम में : स्कूल समय में या पढ़ाई के दौरान

गोल्ड मेडल : स्वर्ण पदक

सिन्सियर : निष्कपट

इण्टरनेशनल काम्पीटिशन : अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिता

Advertisement. Scroll to continue reading.

इण्डिया : भारत

रिप्रेजेण्टेशन : प्रतिनिधित्व

फेवर में : पक्ष में

कन्विन्स किया : मनवाया, कायल किया

सिलेक्शन : चयन

मिस किया : कमी खली

रिटायर : सेवा निवृत्त

हम जिस भाषा में लिखते हैं, जिसकी रोटी खाते हैं, जो हमारी पहचान बनती है, जो हमें पहचान और प्रतिष्ठा देती/दिलाती है, उसके सार्वजनिक सम्मान और गौरव की रक्षा करना हमारा न्यूनतम उत्तरदायित्व बनता है। यदि हम उसकी इज्जत बढ़ा नहीं सकते तो हम इतना ध्यान तो रख ही सकते हैं (जो कि हममें से प्रत्येक को रखना ही चाहिए) कि हमारे कारण उसके सम्मान में कमी न हो। मैं आशा (और अपेक्षा भी) करता हूँ कि भविष्य में हिन्दी लिखते समय तुम इन छोटी-छोटी बातों को ध्यान अवश्य ही रखोगी। यदि आज हिन्दी का ध्यान नहीं रखा गया तो आनेवाले दिनों में तुम्हे यदि कभी ‘सुश्री गायत्री शर्मा’ के स्थान पर ‘सुसरी गाय तरी सर माँ’ लिखा मिले तो ताज्जुब मत करना।

प्रसंगवश लिख रहा हूँ कि यदि तुम्हें किसी अंग्रेजी शब्द का लोकप्रचलित हिन्दी पर्याय याद नहीं आए तो चाहो तो मुझ फोन कर सकती हो। मैं हिन्दी का ज्ञाता तो नहीं हूँ किन्तु तुम्हारी सहायता करने का हर सम्भव प्रयास मैं अवश्य करुँगा। वस्तुतः, ऐसा करके तो मुझे परम प्रसन्नता और परम सन्तोष होगा। तुम चाहो तो आदरणीय जलजजी को भी कष्ट दे सकती हो। उनका फोन नम्बर 07412 260911 है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसी क्रम में याद आ रहा है कि श्रीयुत सरोजकुमारजी (इन्दौर) भी ‘नईदुनिया’ से जुड़े रहे हैं (कोई ताज्जुब नहीं कि ‘नईदुनिया’ ने अब उनसे मुक्ति पा ली हो)। मेरी डायरी के मुताबिक उनका फोन नम्बर 2561919 है। इनके अतिरिक्त श्रीयुत जयदीप कर्णिक नामक सज्जन भी ‘नईदुनिया’ में हैं। वे भी, हिन्दी में अंग्रेजी शब्दों के अनुचित और अनावश्यक उपयोग से असहमत हैं और इस दशा से ‘नईदुनिया’ को मुक्त करने की इच्छा रखते हैं। तुम उनसे भी सम्पर्क कर, अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी पर्याय जान सकती हो। यदि वे भी सहायता न कर पाएँ तो आदरणीय श्रीयुत अभयजी छजलानी से सम्पर्क करना। मुझे आकण्ठ विश्वास है कि इस सन्दर्भ में तुम्हारी सहायता कर उन्हें बिलकुल वैसा ही सन्तोष होगा जैसा कि अपने इष्ट की पूजा-आराधना करने पर होता है। यदि यह सब या इस सबमें में से कुछ भी करना सम्भव न हो या तुम ही यह सब न करना चाहो तो ‘नईदुनिया’ के समृद्ध वाचनालय का उपयोग कर सकती हो। ‘नईदुनिया’ की वर्तमान दशा देखकर लगता है कि ‘नईदुनिया’ का वाचनालय अब सूना ही रहता होगा।

इच्छा तो थी कि इन्दौर आकर, तुम्हारे सामने बैठकर, तुम्हारे साथ चाय पीते हुए ही तुम्हें यह सब कहता। किन्तु स्वास्थ्य मेरा साथ नहीं देता, यात्रा करना अत्यधिक कष्टदायक होने लगा, इसलिए यह पत्र लिखकर ही सन्तोष कर रहा हूँ।

मैं ‘एकोऽहम्’ शीर्षक से हिन्दी ब्लॉग भी लिखता हूँ जिसे http://akoham.blogspot.com लॉग ऑन कर पढ़ा जा सकता है। तुम्हें लिखा यह पत्र मैं अपने इसी ब्लॉग पर, दिनांक 04 मई 2010 को प्रकाशित कर रहा हूँ – यह पत्र डाक के डिब्बे में डालने के बाद। इच्छा और सुविधा हो तो पढ़ने की कोशिश करना।

इस अपरिचित की ईश्वर से यही याचना है कि तुम हिन्दी में लिखो, खूब लिखो, इतना और ऐसा लिखो कि तुम हिन्दी की पहचान बनो और हिन्दी तुम पर गर्व करे।

विनम्र,

विष्णु बैरागी

 

प्रतिष्ठा में,

सुश्री गायत्री शर्मा,

Advertisement. Scroll to continue reading.

(जिन्होंने, मिस इण्डिया इण्टरनेशनल नेहा हिंगे के पिता श्रीयुत दिलीप हिंगे से, ‘नईदुनिया’ के लिए खास बातचीत की)

द्वारा – नईदुनिया, 60/1, बाबू लाभचन्द छजलानी मार्ग, इन्दौर – ४५२००९

प्रतिलिपि –

– श्रीयुत डॉक्टर जयकुमारजी जलज, 30 इन्दिरा नगर, रतलाम

– श्रीयुत प्रोफेसर सरोजकुमार, ‘मनोरम्’, 37 पत्रकार कॉलोनी, इन्दौर

– श्रीयुत जयदीप कर्णिक, द्वारा – नईदुनिया, 60/1, बाबू लाभचन्द छजलानी मार्ग, इन्दौर – ४५२००९

की सेवा में प्रेषित कर करबद्ध, सानुरोध, साग्रह निवेदन है कि यदि कभी सुश्री गायत्री शर्मा आपसे उपरोक्त सन्दर्भ में सम्पर्क करें तो कृपया उदारमना और मुक्त-हस्त भाव से उन्हें सहायता उपलब्ध कराएँ। यह आप सबका , मुझ पर, व्यक्तिगत उपकार होगा।

विष्णु बैरागी

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

मेरी भी सुनो

अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाने के लिए पहले रेडियो, अखबार और टीवी एक बड़ा माध्यम था। फिर इंटरनेट आया और धीरे-धीरे उसने जबर्दस्त लोकप्रियता...

साहित्य जगत

पूरी सभा स्‍तब्‍ध। मामला ही ऐसा था। शास्‍त्रार्थ के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्रश्‍नकर्ता के साथ ऐसा अपमानजनक व्‍यवहार...

मेरी भी सुनो

सीमा पर तैनात बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव ने घटिया खाने और असुविधाओं का मुद्दा तो उठाया ही, मीडिया की अकर्मण्यता पर भी निशाना...

समाज-सरोकार

रूपेश कुमार सिंहस्वतंत्र पत्रकार झारखंड के बोकारो जिला स्थित बोकारो इस्पात संयंत्र भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का इस्पात संयंत्र है। यह संयंत्र भारत के...

Advertisement