देश में यह किस तरह का वातावरण तैयार किया जा रहा है, जिसमें एक व्यक्ति की सत्ता की हनक के आगे सभी नत-मस्तक नजर आ रहे हैं। एक-एक कर सारे प्रशासनिक नीति, नियम, कायदे-कानून, मर्यादाऐं, परंपराऐं पूरी निर्लज्जतापूर्वक ध्वस्त की जा रही हैं और एक आदमी के आगे सभी बेबस व बौने दिखाई दे रहे हैं। देश के प्रशासनिक अमले में सत्ता के शीर्ष पर विराजमान एक व्यक्ति का खौफ गहराता जा रहा है। यदि ऐसा नहीं है तो फिर क्यों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वर्ष 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा पास करने सम्बंधी रजिस्टर को सार्वजनिक करने का आदेश देने वाले सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु की भूमिका बदल दी गई? मुख्य सूचना आयुक्त आरके.
माथुर ने आचार्युलु से मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़े मामले वापस क्यों ले लिए? खादी और ग्रामोद्योग आयोग के वर्ष-2017 के कैलेंडर और डायरियों में अब तक केवल महात्मा गांधी के ही चित्र छपते रहे हैं, परन्तु यह पहला मौका है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चर्खा चलाते हुए तस्वीर इनमें छापी गई है और कमाल तो यह कि आयोग के अधिकारी और कर्मचारी भी इन कैलेंडर और डायरियों पर मोदी के छपे चित्र देख कर हैरत में पड़ गये। किस तरह देश में वित्तीय मामलों की सर्वोच्च स्वायत्तशासी संवैधानिक संस्था–रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को दर किनार कर प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा स्वयं कर डाली। वित्तमंत्री के अधिकारों का अतिक्रमण कर मोदी ने पहली जनवरी को वैसी तमाम घोषणाऐं कर डालीं जिस तरह अब तक अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री करते रहे हैं। देश में आये इस अधिनायकवादी निजाम की बदौलत ही सत्ता का केन्द्रीकरण होता जा रहा है और देश अघोषित आपात्काल की ओर बढ़ रहा है। जिससे इस प्रकार के बदलाव स्पष्ट देखे जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की शैक्षिक योग्यता आज भी संदेह के परे नहीं है और न ही उनकी मंत्रीमंडलीय सहयोगी स्मृति ईरानी के प्रकरण में स्थिति स्पष्ट हो पाई है। स्मृति का फर्जी डिग्री मामला दिल्ली सरकार के पूर्व कानून मंत्री जीतेन्द्र तोमर के ही समान होते हुए भी उनका किसी ने क्या बिगाड़ लिया। तोमर के खिलाफ आनन-फानन मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस द्वारा जगह-जगह, यहाँ तक कि उस कक्ष तक ले जाना जहाँ उन्होंने कथित तौर पर परीक्षा दी थी, क्या साबित करता है? यही कि जिसके हाथ में लाठी, भैंस वही हाँक ले जायेगा न?
लगभग आठ माह पहले नरेन्द्र मोदी की डिग्री का ब्यौरा सार्वजनिक करने का आदेश देने के बाद चर्चा में आये श्रीधर आचार्युलु ने हाल ही में फिर से दिल्ली विवि. को यह जानकारी देने का आदेश दिया है। उनके द्वारा वर्ष-1978 में दिल्ली विवि. से बीए पास करने वाले छात्रों के बारे में रिकॉर्ड सार्वजनिक करने का आदेश देने के तुरंत बाद मुख्य सूचना आयुक्त ने सूचना आयुक्तों के बीच कामों के बँटवारे में बदलाव वाला आदेश जारी करते हुए सम्बंधित उप-रजिस्ट्रार को आदेशित किया है कि वे आचार्युलु को लंबित सभी मामलों की सुनवाई के लिए जारी की गई फाइलों को सम्बंधित रजिस्ट्रार के पास हस्तांतरित करें। साथ ही इसे तत्काल प्रभाव से लागू करने का आदेश भी दिया।
यह आदेश हैरत में डालने वाला था क्योंकि केन्द्रीय सूचना आयोग में कार्यरत 10 सूचना आयुक्तों में आचार्युलु का रिकॉर्ड सबसे बेहतर है। वर्ष-2016 में सर्वाधिक 3,197 मामलों का निस्तारण करने वाले आचार्युलु ने भाजपा नेता विजेन्द्र गुप्ता की पत्नी का पेंशन घोटाला सुनवाई के दौरान ही पकड़ लिया था। राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार के अंतर्गत लाने के मामले की सुनवाई के दौरान इन्होंने ही सभी राष्ट्रीय दलों को केन्द्रीय सूचना आयोग में तलब करवाया था।
नोटबंदी के मामले में संसद की लोक लेखा समिति ने रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल से 30 दिसंबर को भेजे कारण बताओ नोटिस में अनेक सवाल पूछे। उनमें कहा गया था–“शक्तियों का दुरुपयोग करने के लिए क्यों न आप पर मुकदमा चलाया जाये और पद से हटा दिया जाये?” इसके साथ ही अन्य सवालों के अलावा यह भी पूछा गया कि क्या यह सब सरकार ने किया? 8 नवंबर की आपात बैठक के लिए रिजर्व बैंक बोर्ड सदस्यों को कब नोटिस भेजा? कौन-कौन बैठक में आया? बैठक का ब्यौरा क्या है? मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार नोटबंदी का फैसला रिजर्व बैंक के बोर्ड ने लिया था, सरकार ने सिर्फ़ सलाह पर कार्रवाई की, क्या आप सहमत हैं? अगर फैसला रिजर्व बैंक का ही था, तो यह कब तय किया गया कि नोटबंदी भारत के हित में है? ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि नोटबंदी करनी पड़ी?
पूछे गये सवालों के सात पृष्ठीय प्रत्त्युत्तर में रिजर्व बैंक ने स्पष्ट किया है कि नोटबंदी सरकार के कहने पर की गई थी। जबकि मोदी और उनके मंत्रीमंडलीय सहयोगी इसे रिजर्व बैंक का फैसला बताते रहे। इसमें कौन झूठा है और कौन सच्चा, यह अभी तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना तय है कि सत्ताधारियों ने देश में वित्तीय मामलों की सर्वोच्च स्वायत्तशासी संवैधानिक संस्था–रिजर्व बैंक की विश्वसनीयता से खिलवाड़ जरूर किया है।
देश का प्रधानमंत्री बनते ही जिस प्रकार मोदी ने पार्टी के लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, रामलाल, यशवंत सिन्हा, जसवंतसिंह आदि जैसे वरिष्ठ नेताओं को किनारे कर पार्टी पर अपरोक्ष रूप से कब्जा जमा कर अपने चहेते अमित शाह को अध्यक्ष बनवा लिया, उससे मोदी की दबंगई और एकछत्र नेता बनने की महत्वाकांक्षा का पता चल चुका था। निस्संदेह यह प्रकरण पार्टी का अंदरूनी मामला था और है भी, लेकिन जिस तरह मोदी पार्टी व सरकार में हर स्तर पर सत्ता का केन्द्रीकरण करते हुए एकला चलो की शैली में काम कर रहे हैं, उससे उनके अधिनायकवादी रवैये का पता चलता है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी तरह स्वीकार्य तो नहीं ही हो सकता है, बल्कि यह एक खतरे की घंटी भी है।
श्यामसिंह रावत
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