Connect with us

Hi, what are you looking for?

राजनीति-सरकार

मोदी ने ये किसका पैर छूकर लिया आशीर्वाद!

आज़मगढ़। कभी नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ रहे 117 वर्षीय कर्नल निजामुद्दीन को आज तक स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं मिल पाया है। ये वही निजामुद्दीन  है जिनका लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में अपना भाषण शुरू करने से पहले  पैर छूकर आशीर्वाद लिया था. पूर्वी उत्तर प्रदेश के  बहुचर्चित जनपद आज़मगढ़ के मुबारकपुर के पास ढकवा गाँव के रहने वाले है निजामुद्दीन। 117 वर्ष की उम्र भले ही हो गई हो लेकिन आज भी उन्हें नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की यादें ताजा है. उम्र के साथ ही साथ अब शरीर भी साथ नहीं देता।लगभग एक दर्जन भाषाओँ के जानकर निजामुद्दीन के पिता इमाम अली सिंगापुर में व्यापारी थे. २४ वर्ष की उम्र में निजामुद्दीन अपने गाँव से सिंगापुर चले गए.

आज़मगढ़। कभी नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ रहे 117 वर्षीय कर्नल निजामुद्दीन को आज तक स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं मिल पाया है। ये वही निजामुद्दीन  है जिनका लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में अपना भाषण शुरू करने से पहले  पैर छूकर आशीर्वाद लिया था. पूर्वी उत्तर प्रदेश के  बहुचर्चित जनपद आज़मगढ़ के मुबारकपुर के पास ढकवा गाँव के रहने वाले है निजामुद्दीन। 117 वर्ष की उम्र भले ही हो गई हो लेकिन आज भी उन्हें नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की यादें ताजा है. उम्र के साथ ही साथ अब शरीर भी साथ नहीं देता।लगभग एक दर्जन भाषाओँ के जानकर निजामुद्दीन के पिता इमाम अली सिंगापुर में व्यापारी थे. २४ वर्ष की उम्र में निजामुद्दीन अपने गाँव से सिंगापुर चले गए.

उसी समय नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आजाद हिन्दू फ़ौज में  भर्ती के लिए अभियान चला रहे थे देश की सेवा करने का जज्बा बचपन से ही था जिसके कारण  निजामुद्दीन आजाद हिन्द फ़ौज में भर्ती हो गए. नेता जी के साथ कई गोपनीय अभियानों में साथ रहे.पत्नी अंजबुन निशा से उनकी मुलाकात बर्मा में हुई जो आज उनके आजमगढ़ में रह रही है.आज भी निजामुद्दीन के पास आजाद हिन्द फ़ौज का परिचय पत्र और ड्राइविंग लाइसेंस मौजूद है.

देश आजादी के बाद आजाद हिन्द फ़ौज के सेनानियों के साथ क्या हुआ ये पूरा देश जनता है निजामुद्दीन के बेटे शेख अकरम कहते हैं कि अब्बू को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा मिलने के लिएआज तक बस आश्वासन ही मिला है अधिकारियों के चक्कर काटते काटते कितने साल बीत गए की अब उम्मीद भी कोई  नहीं बची थी. कई बार कागजी कार्यवाही की गई लेकिन अभी तक स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं मिला।

निजामुद्दीन को पहली बार उनके घर जाकर वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के तत्कालीन कुलपति प्रो सुन्दर लाल ने  सम्मान पत्र ,मेडल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया था. न्यूरो सर्जन डॉ अनूप सिंह यादव ने निजामुद्दीन और उनकी पत्नी के निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा का जिम्मा अपने ऊपर ले रखा हैं वही एक अलग पहचान रखने वाले विधायक आलमबदी ने आर्थिक सहायता की थी. व्यक्तिगत स्तर पर लोगों ने आज़मगढ़ में सदैव निजामुद्दीन को सर आँखों पर रखा लेकिन देश के एक अनमोल रत्न को आज तक कोई सरकारी मदद  न मिलना इस देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही है.नेता जी की परपौत्री भी कर्नल निजामुद्दीन के  घर पहुँच कर नेता जी की यादें ताजा कर चुकी है।

एक बार एक कार्यक्रम में निजामुद्दीन ने कहा था कि अगर नेता जी होते तो देश का बंटवारा नहीं होता। आज सोचता हूँ कि क्या खोया क्या पाया पता नहीं। उन्होंने कहा कि पता चलता हैं कि आज लोग काम के लिए घूस मांगते हैं। कितना दुखद है, इसलिए आजादी नहीं मिली थी। इसके बाद उनकी आखे नम हो गई थी। वाराणसी में मोदी से मिलकर उन्हें जरूर ख़ुशी हुई थी लेकिन उनके मन में कोई चाह नहीं।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

मेरी भी सुनो

अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाने के लिए पहले रेडियो, अखबार और टीवी एक बड़ा माध्यम था। फिर इंटरनेट आया और धीरे-धीरे उसने जबर्दस्त लोकप्रियता...

साहित्य जगत

पूरी सभा स्‍तब्‍ध। मामला ही ऐसा था। शास्‍त्रार्थ के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्रश्‍नकर्ता के साथ ऐसा अपमानजनक व्‍यवहार...

समाज-सरोकार

रूपेश कुमार सिंहस्वतंत्र पत्रकार झारखंड के बोकारो जिला स्थित बोकारो इस्पात संयंत्र भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का इस्पात संयंत्र है। यह संयंत्र भारत के...

मेरी भी सुनो

सीमा पर तैनात बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव ने घटिया खाने और असुविधाओं का मुद्दा तो उठाया ही, मीडिया की अकर्मण्यता पर भी निशाना...

Advertisement