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गुजरात में दलितों के बंद ने दलित नेताओं का मुंह बंद करा दिया?

फैक्स और ई-मेल आने से बहुत पहले ज्यादातर नेताओं का एक चेला होता था। जो रोज दोपहर बाद तीन बजे से शाम पांच-छह बजे तक अखबारों के दफ्तरों में नेताजी के बयान (प्रेस विज्ञप्ति) बांटता था। इसमें पीआर एजेंसी वाले और राज्यों के सूचना विभाग के लोग भी शामिल होते थे। विज्ञप्ति देने आने वाले कद-काठी, चाल-ढाल से लेकर पहनावे और व्यवहार के लिहाज से भिन्न किस्म के होते थे और सबकी अपनी ठसक होती थी। इसमें भारी विविधता भी थी। पर ये लोग जिसके लिए काम करते थे उससे कोई संबंध नहीं होता था।

फैक्स और ई-मेल आने से बहुत पहले ज्यादातर नेताओं का एक चेला होता था। जो रोज दोपहर बाद तीन बजे से शाम पांच-छह बजे तक अखबारों के दफ्तरों में नेताजी के बयान (प्रेस विज्ञप्ति) बांटता था। इसमें पीआर एजेंसी वाले और राज्यों के सूचना विभाग के लोग भी शामिल होते थे। विज्ञप्ति देने आने वाले कद-काठी, चाल-ढाल से लेकर पहनावे और व्यवहार के लिहाज से भिन्न किस्म के होते थे और सबकी अपनी ठसक होती थी। इसमें भारी विविधता भी थी। पर ये लोग जिसके लिए काम करते थे उससे कोई संबंध नहीं होता था।

ऐसे में जिसका चेला जितना तेज उसका नाम अखबार में उतना ज्यादा। और यह काम करने के लिए नेताजी लोग तेज-तर्रार भूतपूर्व-भावी हर तरह के पत्रकारों की सेवा भी लेते थे। और खबर छपवाने के लिए ये लोग भी कोई कसरत नहीं छोड़ते थे। नेताजी का चेला दफ्तर से चला गया यानी आज कोई बयान जारी हुआ है। जिसकी दिलचस्पी होती थी वह देख लेता था और इससे देश-विदेश की घटनाओं का भी पता चलता था। 2002 में जब मैंने जनसत्ता छोड़ा तब तक डेस्क पर टेलीविजन नहीं होता था। ऐसे में खबर देने वालों की खबर की भूख का अंदाजा आप लगा सकते हैं।

अब ट्वीटर, ई-मेल के जमाने में वो चेला तो गायब हो ही गया है। नेताओं के बयान भी कम आते हैं या कहिए ज्यादा ही ट्वीट होते हैं। पहले रोज एक का औसत नहीं बैठता था। अब 24 घंटे में 24 का औसत भी चला जाता है। जन्म दिन से पहले बधाई देना और कोई मर जाए तो प्रेस विज्ञप्ति के रूप में शोक संदेश मरने वाले के बेटे को भेज देना। यानी इंतजार करो तो गजब का सन्नाटा छा जाता है।

मैं सोच रहा हूं कि आज जनसत्ता डेस्क पर होता तो देखता किसके-किसके बयान आए हैं। फेसबुक की सूचनाओं को विज्ञप्ति मानूं तो पप्पू यादव ने संसद में कुछ कहा है और लालू यादव ने भी। बाकी भाजपा के दलित नेता गण चुप्पी साधे बैठे हैं। गुजरात में दलितों ने बंद कराया है और दलित नेताओं ने मुंह बंद कर लिया। ऐसा डिजिटल इंडिया हुआ है कि गुजरात मॉडल के देश भर में हावी होने के बाद अगले चरण (दलितों के बंद) की खबर दिल्ली में इंडियन एक्सप्रेस के पहले पेज पर है और कोलकाता के टेलीग्राफ में लीड है। बाकी जगह सब सन्नाटा। मरी हुई गो माता का हाल पूछने-बताने वाला कोई नहीं। ये तो गजबे विकास हुआ है। एकदम सन्नाटेदार विकास।

लेखक संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं. संपर्क : [email protected]

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