Abhishek Parashar : 2015 में माननीय मुलायम सिंह यादव ने मायावती के चरित्र को लेकर कहा था, ‘मैं उसे कुंवारी कहूं, श्रीमती कहूं, या बहन कहूं.’ इसके बाद मायावती ने यादव को दिमागी तौर विक्षिप्त करार दिया था. निश्चित तौर पर ऐसा कोई बयान दिमागी तौर पर दिवालिया ही दे सकता था. बात यहीं खत्म नहीं हुई.
मायावती का बयान सपा को रास नहीं आया और फिर शिवपाल सिंह यादव ने एक कदम आगे बढ़ते हुए यह कहा, ‘हर कोई बीएसपी नेता कांशीराम और मायावती के रिश्तों के बारे में जानता है. हर कोई उसके चरित्र के बारे में जानता है. कैसे वह यहां तक पहुंची और क्यों कांशीराम ने उसे यह कुर्सी दी.’ इसके पहले उत्तर प्रदेश महिला कल्याण निगम की चेयरमैन लीलावती कुशवाहा ने मयावती को कौमार्य परीक्षण कराए जाने की सलाह दी थी ताकि यह पता चल सके कि वह कुंवारी हैं या शादी शुदा. किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने भी मायावती के खिलाफ बयान दिया था. टिकैत समर्थकों ने उत्तर प्रदेश पुलिस को घुटने टिका दिए थे.
कहने का मतलब है फर्क इस बात से पड़ता है कि बोलने वाला कौन है और उसकी जातीय हैसियत क्या है? इससे ही तय होता है कि किस मुद्दे को संसद में किसका समर्थन मिलेगा. मुलायम सिंह के बयान के बाद मुझे संसद में किसी समान विचारधारा वाली सेक्युलर पार्टी का कोई हंगामा याद नहीं आता है.
पत्रकार अभिषेक पाराशर की एफबी वॉल से.