Connect with us

Hi, what are you looking for?

तेरा-मेरा कोना

नारी अपमान का बदला नारी अपमान से?

सन्तोष देव गिरि

कहते है राजनीत जो ना करा दे। राजनीत में कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता है। जैसा कि इन दिनों उत्तर प्रदेश में हो रहा है। एक नारी जो अपने को ‘‘देवी’’ कहने से भी गुरेज नहीं करती है। उन पर एक भाजपा नेता की टिप्पणी ने ऐसा तुफान खड़ा किया कि न केवन उन जनाब को अपनी ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखला दिया गया, बल्कि उन्हें भूमिगत भी होना पड़ गया है। तुफान यहीं खत्म नहीं होता है अब देखिए इसी देवी के अनुयायी (पार्टी के कार्यकर्ता) सूबे की राजधानी में भारी संख्या में जुटते है और सभा के बहाने नारी अपमान का बदला नारी का अपमान करते हुए लेते है। वह भी चिल्ला-चिल्ला कर एक के बदले पूरे परिवार….. का नाम लेते हुए।

<p><strong>सन्तोष देव गिरि</strong></p> <p>कहते है राजनीत जो ना करा दे। राजनीत में कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता है। जैसा कि इन दिनों उत्तर प्रदेश में हो रहा है। एक नारी जो अपने को ‘‘देवी’’ कहने से भी गुरेज नहीं करती है। उन पर एक भाजपा नेता की टिप्पणी ने ऐसा तुफान खड़ा किया कि न केवन उन जनाब को अपनी ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखला दिया गया, बल्कि उन्हें भूमिगत भी होना पड़ गया है। तुफान यहीं खत्म नहीं होता है अब देखिए इसी देवी के अनुयायी (पार्टी के कार्यकर्ता) सूबे की राजधानी में भारी संख्या में जुटते है और सभा के बहाने नारी अपमान का बदला नारी का अपमान करते हुए लेते है। वह भी चिल्ला-चिल्ला कर एक के बदले पूरे परिवार..... का नाम लेते हुए।</p> <p>

सन्तोष देव गिरि

कहते है राजनीत जो ना करा दे। राजनीत में कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता है। जैसा कि इन दिनों उत्तर प्रदेश में हो रहा है। एक नारी जो अपने को ‘‘देवी’’ कहने से भी गुरेज नहीं करती है। उन पर एक भाजपा नेता की टिप्पणी ने ऐसा तुफान खड़ा किया कि न केवन उन जनाब को अपनी ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखला दिया गया, बल्कि उन्हें भूमिगत भी होना पड़ गया है। तुफान यहीं खत्म नहीं होता है अब देखिए इसी देवी के अनुयायी (पार्टी के कार्यकर्ता) सूबे की राजधानी में भारी संख्या में जुटते है और सभा के बहाने नारी अपमान का बदला नारी का अपमान करते हुए लेते है। वह भी चिल्ला-चिल्ला कर एक के बदले पूरे परिवार….. का नाम लेते हुए।

सवाल उठता है कि क्या यही एक मात्र रास्ता और विचार था बदला लेने या कार्रवाई का? आखिरकार समाज को खासकर जिस समाज की वह रहनुमा बनने का दावा करती है उस समाज को यह देवी क्या संदेश देना चाहती है? शायद किसी को नहीं पता, लेकिन इतना सभी जानते है कि इसके पीछे मकसद साफ है। वह है हाल के दिनों में पार्टी और अपनी छवि को लेकर हो रही भद्द और जिस समाज की वह रहनुमा बनती है उसमें कमजोर होती पैठ और दूसरे दल द्वारा तेजी से किए जा रहे सेंधमारी/जनसम्पर्क/बदलाव की बयार से घबराहट की आहट साफ झलकती है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि कोई न कोई तो ऐसे मुद्दा चाहिए ही जो कुछ दिनों तक फिजा में तैरता रहे, मीडिया की सुर्खियों में बना रहे। भाग्य से मुद्दा हाथ लग भी गया। जिसे भुनाने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसी बहाने बटोरने का जिसे बैठे-बिठाए देने का काम किया उक्त भाजपा नेता ने जो इन दिनों खुद अपने को बचते-बचाते फिर रहे है और उनके परिवार की मां, बेटी, बहन, पत्नी और भाई तमाम प्रकार की मानसिक पीड़ाओं से रूबरू हो रहे है।

अहम सवाल यह भी है कि यह जो स्वयं घोषित ‘‘देवी’’ है उन सैकड़ों दलित बहन-बेटियों और माताओं की उपेक्षा और अपमान पर कितना कठोर  होती है जिन्हें आज भी जलालत भरा जीवन गुजारना पड़ रहा है, जिन्हें देश के हर उस भाग में देखा जा सकता है जहां पिछड़ेपन की लकीर आज भी खिंची हुई है। जिनकी रोजमर्रा की जिंदगी आज भी वैसी की वैसी ही ह,ै जैसे आज से तीन-चार दशक पूर्व हुआ करती थी। क्या वहां जाकर इस ‘‘देवी’’ ने उनका हाल जानने का प्रयास किया है। बात करे महिला मान सम्मान और स्वाभिमान की तो कहीं डायन के नाम पर तो कहीं भूत-प्रेत, चुढैल के नाम पर उस समाज (जिस समाज की यह देवी रहनुमाई करती है) की महिलाओं का कहीं सामाजिक तो कहीं शाररीक शोषण किया जाता है।

देश के आदिवासी, पिछड़े इलाकों में मसलन उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल से लगाय बिहार, झारखंड़, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान आदि राज्यों में इस प्रकार की घटनाएं आए दिन सुनने व पढ़ने को मिल जाया करती है। शायद इनकों मुद्दा बनाकर यह ‘‘देवी’’ संघर्ष का बिगुल फूंकती तो कितना अच्छा होता होता, लेकिन शायद इससे उनके वोट बैंक को कोई खास फायदा नहीं दिखता है कारण कि देश के आदिवासी और पिछड़े बाहुल्य इलाकों में निवास करने वाली कई ऐसी जातियां है जिनको आज भी वोट देने का अधिकार नहीं मिल पाया है। मिला भी है तो उन्हें पता ही नहीं है या वह बूथ तक पहुंच ही नहीं पाते है।

सवाल और भी ढेरों है जिनका शायद ही उत्तर मिल पाए। लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि आखिरकार कब तक बहन-बेटियां राजनीत का हिस्सा बनकर घिसटती रहेगीं जैसा कि इन दिनों उत्तर प्रदेश में हो रहा है। विचार करने योग्य बात है कि इस देवी की टकराहट उस भाजपा नेता से था जिसने इन पर अशोभनीय टिप्पणी कि थी। बेशक भाजपा नेता की टिप्पणी आशोभनीय ही नहीं बेहद निंदनीय भी है, लेकिन यह कहां से उचित कहा जाएगा जो इस देवी के कार्यकर्ताओं ने सरेराह सार्वजिक रूप से कह डाला जिन्हें एक बूढ़ी मां और एक मासूम 12 बर्षीय की बेटी-बहन पर भी अर्मायादित टिप्पणी करते हुए शर्म नहीं आई। क्या विरोध और बदला लेने का यहीं तरीका उचित कहां जा सकता है? शायद कदापि नहीं, लेकिन राजनीत है जो ना करा दे!

‘‘नारी अपमान का बदला, नारी अपमान से’’ इसे क्या कहेगें स्वाभिमान या अभियान? बहरहाल प्रदेश में सियासत गर्म हो उठी है। देखना अब यह है कि इसमें कानून का क्या अहम रोल होता है। क्योंकि यदि ऐसा ही कुछ किसी आम परिवार या साधारण जन के साथ हुआ होता तो शायद इतना हो हल्ला नहीं मचता जितना अब मचा हुआ है। ना ही कोई दल या नेता सड़क पर उतरता।

सन्तोष देव गिरि
स्वतंत्र लेखक/पत्रकार
नालापार, केराकत, जौनपुर-222142
(उत्तर प्रदेश)
मोबाइल-09455320722
ईमेल- [email protected]

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

मेरी भी सुनो

अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाने के लिए पहले रेडियो, अखबार और टीवी एक बड़ा माध्यम था। फिर इंटरनेट आया और धीरे-धीरे उसने जबर्दस्त लोकप्रियता...

साहित्य जगत

पूरी सभा स्‍तब्‍ध। मामला ही ऐसा था। शास्‍त्रार्थ के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्रश्‍नकर्ता के साथ ऐसा अपमानजनक व्‍यवहार...

मेरी भी सुनो

सीमा पर तैनात बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव ने घटिया खाने और असुविधाओं का मुद्दा तो उठाया ही, मीडिया की अकर्मण्यता पर भी निशाना...

समाज-सरोकार

रूपेश कुमार सिंहस्वतंत्र पत्रकार झारखंड के बोकारो जिला स्थित बोकारो इस्पात संयंत्र भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का इस्पात संयंत्र है। यह संयंत्र भारत के...

Advertisement