महत्वपूर्ण कवि, गद्यकार और अनुवादक श्री नीलाभ का निधन हिंदी के संसार के लिए एक बड़ी क्षति है. वे 72 वर्ष के थे और अपनी व्यक्तिगत परेशानियों के बावजूद उनकी साहित्यिक-वैचारिक सक्रियता लगातार बनी हुई थी. उनकी कविताओं के अनेक संग्रहों में से ‘संस्मरणारम्भ’, ‘अपने आप से लम्बी बातचीत’, ‘चीज़ें उपस्थित हैं’, ‘शब्दों से नाता अटूट है’, ‘शोक का सुख’, ‘ख़तरा अगले मोड़ के उस तरफ़ है’, ‘ईश्वर को मोक्ष’ चर्चित रहे हैं. ‘प्रतिमानों की पुरोहिती’ और ‘पूरा घर है कविता’ में उनका गद्य संकलित है.
अनुवादक के रूप में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण रहा. उन्होंने शेक्सपियर, ब्रेख्त और लोर्का के नाटकों, जीवानंद दास, सुकांत भट्टाचार्य, तदेयुश रोज़ेविच, एजरा पाउंड, नाजिम हिकमत, पाब्लो नेरुदा, अर्नेस्तो कार्देनाल, आंद्रे वज्निसेंसकी आदि की कविताओं तथा अरुंधती रॉय और लेर्मोंतोव के उपन्यासों का हिन्दी में उम्दा अनुवाद किया. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के लिए दो खण्डों में ‘हिन्दी साहित्य का मौखिक इतिहास’ लिखकर उन्होंने हिन्दी जगत को अपने तरह की एक अनोखी चीज़ दी. जनवादी आन्दोलन के पक्ष में उनकी अनवरत सक्रियता अंत-अंत तक बनी रही. प्रो. कलबुर्गी की हत्या के बाद के दिनों में वे हर प्रतिरोध कार्यक्रम में उपस्थित रहते थे और अपने चिरपरिचित तल्ख़ अंदाज़ में अपनी बात रखते थे. नीलाभ का न रहना अप्रत्याशित और दुखद है. जनवादी लेखक संघ उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित करता है.
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह (महासचिव)
संजीव कुमार (उप-महासचिव)
जनवादी लेखक संघ