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राजनीति-सरकार

नोटा दबाओ, दलबदल़ुओं को सबक सिखाओ

राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर विशेष :  आज राष्ट्रीय मतदाता दिवस है। आने वाले महीनों में चुनाव होने हैं। हमें अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार लेकिन मजबरी नहीं है कि गुंडों-बदमाशों, लुच्चो-लफंगो, दलबदलुओं-अवसरवादियों व धनपशुओं मे से हम किसी को चुने ही। ज्यादातर पार्टियों ने इन्हीं में से अपना प्रत्याशी बनाया है। लगभग सभी बड़ी दलों ने नेता पुत्र, नेता-पुत्री, नेता के भाई-भतीजों को टिकट दिया है तो कुछ पार्टियों ने नेता की सखी को टिकट दिया है। अब इन पार्टियों की मजबूरी हो सकती है पर हमारी मजबूरी है क्या?

<p><strong>राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर विशेष</strong> :  आज राष्ट्रीय मतदाता दिवस है। आने वाले महीनों में चुनाव होने हैं। हमें अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार लेकिन मजबरी नहीं है कि गुंडों-बदमाशों, लुच्चो-लफंगो, दलबदलुओं-अवसरवादियों व धनपशुओं मे से हम किसी को चुने ही। ज्यादातर पार्टियों ने इन्हीं में से अपना प्रत्याशी बनाया है। लगभग सभी बड़ी दलों ने नेता पुत्र, नेता-पुत्री, नेता के भाई-भतीजों को टिकट दिया है तो कुछ पार्टियों ने नेता की सखी को टिकट दिया है। अब इन पार्टियों की मजबूरी हो सकती है पर हमारी मजबूरी है क्या? </p>

राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर विशेष :  आज राष्ट्रीय मतदाता दिवस है। आने वाले महीनों में चुनाव होने हैं। हमें अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार लेकिन मजबरी नहीं है कि गुंडों-बदमाशों, लुच्चो-लफंगो, दलबदलुओं-अवसरवादियों व धनपशुओं मे से हम किसी को चुने ही। ज्यादातर पार्टियों ने इन्हीं में से अपना प्रत्याशी बनाया है। लगभग सभी बड़ी दलों ने नेता पुत्र, नेता-पुत्री, नेता के भाई-भतीजों को टिकट दिया है तो कुछ पार्टियों ने नेता की सखी को टिकट दिया है। अब इन पार्टियों की मजबूरी हो सकती है पर हमारी मजबूरी है क्या?

अगर हमें कोई भी प्रत्याशी पसंद नही है तो भी हमारे पास विकल्प है। हम अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए भी दलबदलुओं, अवसरवादियों, बाहुबलियों, धनपशुओं व परिवारवादियों और इस प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने वालों को सबक सिखा सकते हैं। पहले विकल्प था नहीं और था भी तो बड़ा झंझटिया। कोई प्रत्याशी पसंद न होने पर सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद पीठासीन अधिकारी से आपत्ति दर्ज करानी पड़ती थी, तय फार्म भरना पड़ता था। कोई भी अधिकारी इन पचड़ों से बचना चाहता था। इसीलिए इच्क्षुक मतदाता इसका उपयोग नहीं करते थे।

पहले मतपत्र पर मुहर लगाना होता था। पिछड़े क्षेत्रों में बाहुबली के लठैत गरीब गुरबों को मतदान केंद्रों तक पहुंचने ही नहीं देते थे। खुद जबरन वोट डाल देते थे किंतु अब ऐसा संभव ही नहीं हझ। ईवीएम के अस्तित्व में आने के कुछ ही साल बाद नोटा (कोई प्रत्याशी पसंद नहीं है) का इस्तेमाल कर सकते हैं। बड़ी संख्या में लोग कर भी रहे हैं। बिहार जैसे पिछड़े कहे जाने वाले राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव में लगभग नौ लाख से ज्यादा मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना। 2014 के लोकसभा चुनाव में लगभग 60 लाख लोगों ने वोट डालने के दौरान नोटा का विकल्प चुना। एक सर्वे के दौरान 543 सीटों पर 1% मतदाताओं ने नोटा को चुना।

नोटा का विकल्प हम मतदाताओं को उपहार स्वरूप नहीं दिया गया। इस अधिकार को हासिल करने के लिए नगरिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले संगठनों ने समय समय पर आवाज बुलंद की है। पीयूसीएल ने ही 2004 से इसकी लड़ाई लड़ी है। 2014 के लोकसभा चुनाव से इसका प्रयोग शुरू किया गया। अब तक हुए विधानसभा चुनाओं में पांच लाख से अधिक मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। नोटा का इस्तेमाल करने से दलबदलुओं, अवसरवादी नेताओं को ही नहीं इन जैसे नेताओं को प्रश्रय देने वाली पार्टियों को भी सबक सिखायें।
नोटा का बटन सबसे नीचे गुलाबी रंग का होता है, सबसे अलग होता है।

मजबूत मतदाता बनो मजबूर नहीं।

अरुण श्रीवास्तव
पत्रकार व आरटीआई कार्यकर्ता
देहरादून।
8881544420 & 7017748031

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