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एक दूसरे को बेइमान ठहराने में जुटी पार्टियां, पहाड़ के जेनुइन मुद्दे चर्चा से गायब

नैनीताल : पहाड़ में इस बार के विधानसभा चुनाव में आम जनता से सरोकार रखने वाले मुद्दे नदारत हैं। मौजूद वक्त  में उत्तराखण्ड की सत्ता में काबिज कांग्रेस और सत्ता की प्रबल दावेदार भारतीय जनता पार्टी में एक -दूसरे को खुद से ज्यादा भ्रष्ट और बेईमान ठहराने की होड़ में पहाड़ के आम लोगों से जुड़े असल मुद्दे मुरझा गए हैं। जल ,जंगल ,जमीन ,बेरोजगारी ,पलायन और स्थायी राजधानी आदि मुद्दे लगातार दुहराए जाने से अब बासी और लचर हो चुके हैं। पहाड़ की “पहाड़” जैसी समस्याओं के प्रति कतई असंवेदनशील कांग्रेस और भाजपा का एक मात्र राजनैतिक ध्येय सत्ता पाने तक ही सिमट गया है। इसके चलते पहाड़ के आम मतदाताओं में राजनैतिक पार्टियों और नेताओं के प्रति अरुचि का भाव दिखाई दे रहा है।
 

<p>नैनीताल : पहाड़ में इस बार के विधानसभा चुनाव में आम जनता से सरोकार रखने वाले मुद्दे नदारत हैं। मौजूद वक्त  में उत्तराखण्ड की सत्ता में काबिज कांग्रेस और सत्ता की प्रबल दावेदार भारतीय जनता पार्टी में एक -दूसरे को खुद से ज्यादा भ्रष्ट और बेईमान ठहराने की होड़ में पहाड़ के आम लोगों से जुड़े असल मुद्दे मुरझा गए हैं। जल ,जंगल ,जमीन ,बेरोजगारी ,पलायन और स्थायी राजधानी आदि मुद्दे लगातार दुहराए जाने से अब बासी और लचर हो चुके हैं। पहाड़ की "पहाड़" जैसी समस्याओं के प्रति कतई असंवेदनशील कांग्रेस और भाजपा का एक मात्र राजनैतिक ध्येय सत्ता पाने तक ही सिमट गया है। इसके चलते पहाड़ के आम मतदाताओं में राजनैतिक पार्टियों और नेताओं के प्रति अरुचि का भाव दिखाई दे रहा है।<br /> </p>

नैनीताल : पहाड़ में इस बार के विधानसभा चुनाव में आम जनता से सरोकार रखने वाले मुद्दे नदारत हैं। मौजूद वक्त  में उत्तराखण्ड की सत्ता में काबिज कांग्रेस और सत्ता की प्रबल दावेदार भारतीय जनता पार्टी में एक -दूसरे को खुद से ज्यादा भ्रष्ट और बेईमान ठहराने की होड़ में पहाड़ के आम लोगों से जुड़े असल मुद्दे मुरझा गए हैं। जल ,जंगल ,जमीन ,बेरोजगारी ,पलायन और स्थायी राजधानी आदि मुद्दे लगातार दुहराए जाने से अब बासी और लचर हो चुके हैं। पहाड़ की “पहाड़” जैसी समस्याओं के प्रति कतई असंवेदनशील कांग्रेस और भाजपा का एक मात्र राजनैतिक ध्येय सत्ता पाने तक ही सिमट गया है। इसके चलते पहाड़ के आम मतदाताओं में राजनैतिक पार्टियों और नेताओं के प्रति अरुचि का भाव दिखाई दे रहा है।
 

अबकी उत्तराखण्ड में चुनाव प्रक्रिया शुरू होते ही यहाँ के नेताओं की सभी सियासी पार्टियों के प्रति भावुकतापूर्ण मित्रता जगजाहिर हो गई। सत्ता मोह और सामयिक स्वार्थों के चलते सैकड़ों नेता और कार्यकर्ता अपने दल को छोड़ दूसरी पार्टियों में चले गए। आवत -जावत का यह सिलसिला अभी भी निरंतर  जारी है। इस मर्तवा पहाड़ में घात – प्रतिघात की सियासत चरम पर है। प्रतिपक्षी की ताकत को कम करने के लिए कोई भी पार्टी किसी भी किस्म का लिहाज करने को राजी नहीं है। सियासी विचारधारा ,सुचिता और उसूल बेमानी हो गए हैं। सभी पार्टियों की नीयत और सोच बदल गई है। नजीजतन कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों को कुमाऊँ की 29 विधानसभा सीटों में से ज्यादातर सीटों पर बागियों से मिल रही कड़ी चुनौतियों से दो – चार होना पड़  रहा है। पार्टी  के पुराने कद्दावर कार्यकर्ताओं की नाराजगी झेलनी पड़ है सो अलग।

खुद को सबसे हटकर और अनुशासित पार्टी बताने वाली भाजपा का भी अबकी अंदरूनी अनुशासन तार -तार हो गया है। कांग्रेस के दर्जन भर से ज्यादा बागियों को टिकट देने की वजह से चौतरफा आलोचना झेल रही भाजपा को अब अपनों से चुनावी लड़ाई भारी  पड़  रही है। कुमाऊँ में बागियों ने भाजपा के प्रदेश स्तर के सभी बड़े नेताओं का चुनावी गणित गड़बड़ा दिया है। रानीखेत सीट पर भाजपा के बागी उम्मीदवार प्रमोद नैनवाल ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट की नींद उड़ा  दी है। डीडीहाट में भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और मौजूद विधायक बिशन सिंह चुफाल के खिलाफ एक दौर में उनके खास सिपहसालार रहे  किशन सिंह भंडारी ने ताल ठोक  दी है। कालाढूंगी सीट में भाजपा  के बागी हरेंद्र सिंह ने पार्टी प्रत्याशी  पूर्व मंत्री बंशीधर भगत की जीत की राह में रोड़े अटका दिए हैं। वहीँ काशीपुर में पूर्व विधायक राजीव अग्रवाल ने भाजपा के उम्मीदवार को मुश्किल में डाल दिया है। इसके अलावा पार्टी नैनीताल और लालकुआँ समेत कई सीटों पर बगावत और कार्यकर्ताओं की नाराजगी से जूझ रही है। भीमताल ,नैनीताल और लालकुआँ बगैरा सीटों पर कांग्रेस को भी बगावत का सामना करना पड़ रहा है।

बेईमानी ,भ्रष्टाचार ,घोटाले और परिवारवाद आदि जिन मुद्दों पर प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर  पर भाजपा को सत्तारूढ़ कांग्रेस पर हमलावर होना था ,इन्हीं सब मुद्दों पर पार्टी खुद ही बचाव की मुद्रा नजर आ रही है।कांग्रेस और दूसरी सियासी पार्टियों से आए नेताओं को टिकट देने से विचारधारा के आधार पर भाजपा से जुड़े पुराने कार्यकर्ताओं पर नैतिक और मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है। ज्यादातर कार्यकर्ता खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं की इस मनोदशा का चुनाव प्रचार में भी असर दिखाई दे रहा है।  इन तमाम सियासी हलचलों के बीच फ़िलहाल पहाड़ का आम मतदाता निरपेक्ष भाव से सभी दलों की टोह ले रहा है।

नैनीताल से वरिष्ठ पत्रकार प्रयाग पाण्डे की रिपोर्ट.

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