यह कबूल करने के बाद कि 26/11 की साजिश पाकिस्तान की सरजमीं पर रची गयी थी, पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने यह माना कि पाकिस्तान को तालिबान से खतरा है और पाकिस्तान अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। अमेरिका और पाकिस्तान ने 1979 में रुस के कब्जे के बाद रुसी फौजों से लड़ने के लिए तालिबान का जो भस्मासुर पाला-पोसा था, वह भस्मासुर पाकिस्तान के वजूद के लिए ही खतरा बन गया है।
पाकिस्तान की मदद से ही अमेरिका ने तालिबान को हथियारों से मालामाल किया था और तालिबान रुसियों से लड़े थे। रुस को अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा। रुसी सेना अपने जो हथियार अफगानिस्तान में छोड़ कर भागी थी, उन पर तालिबान का कब्जा हो गया। अमेरिका ने यूज एंड थ्रो की नीति पर चलते हुऐ अपना मतलब निकल जाने के बाद खंडहर में तब्दील हो चुके अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ दिया।
एक वक्त वह भी आया कि पाकिस्तान में अमेरिका के सहयोग से आतंकियों की जो खेप तैयार हुई थी, उसकी कमान न सिर्फ पाकिस्तान के हाथों से निकल गयी बल्कि वे हथियार, जो जेहाद के नाम पर आतंकवादियों के हाथों में पकड़ाये गए थे, उन का रुख उन्हीं लोगों की तरफ हो गया, जो उनके पोषक रहे हैं। 9/11 के बाद अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ जंग के नाम पर पहले अफगानिस्तान पर हमला किया और उसके बाद दुनिया की सभी अपीलों और दलीलों को खारिज करके झूठी और मनघढ़ंत सूचनाओं को आधार बनाकर इराक पर हमला किया। लेकिन आतंकवाद खत्म नहीं हुआ, बल्कि आतंकवादियों को नए तर्क और बहाने मुहैया हो गए।
अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ तथाकथित जंग आज भी जारी है। लेकिन आतंकवाद कम होने के बजाय बढ़ता चला गया। यह कहा जा सकता है कि केवल किसी देश पर हमला बोल कर आतंकवाद को खत्म नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा होता तो अफगानिस्तान और इराक पर हमले के बाद आतंकवाद खत्म होने के बजाय बढ़ता नहीं।
अब सवाल यह है कि वजूद खोते पाकिस्तान पर यदि तालिबान का कब्जा हो गया तो क्या होगा ? यह सवाल हवा में नहीं है। इस सवाल के पीछे तथ्य हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि तालिबान ने अफगानिस्तान के एक बड़े हिस्से और अफगानिस्तान की सीमा से लगे पाकिस्तान के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है। पाकिस्तान के स्विटजरलैंड कहे जाने वाली स्वात घाटी में तालिबानियों का वर्चस्व है। स्कूल, कॉलेज, हैयर सैलून, म्यूजिक शॉप आदि तालिबान के फरमान के बाद बंद कर दिए गए हैं। अब तो यह खबर भी आयी है कि तालिबान ने लड़कों को भी स्कूलों में पढ़ने पर रोक का फरमान जारी कर दिया है। पाकिस्तान ने तालिबान के सामने हथियार डालते हुऐ स्वात घाटी सहित एक बड़े भाग में इस्लामी कानून लागू करने की मंजूरी दे दी है। तालिबान का इस्लाम कैसा है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। पाकिस्तान और अमेरिका की मदद से तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता का स्वाद चख चुके हैं। उन्हें सत्ता का चस्का लग चुका है। वे अब किसी भी कीमत पर दोबारा सत्ता चाहते हैं। अब तालिबान की नजर पाकिस्तान को कब्जाने की है। पाकिस्तान की फौज पर तालिबान भारी पड़ रहे हैं। या कह सकते हैं कि पाकिस्तान की फौज तालिबान से हमदर्दी के चलते अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रही है। इस बात को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि पाकिस्तान की आईएसआई और फौज का एक बड़ा हिस्सा तालिबान से हमदर्दी रखता है और पाकिस्तान में वही होता है, जो आईएसआई और फौज चाहती है। फौज कभी नहीं चाहती कि पाकिस्तान में लोकतन्त्र मजबूत हो। इसलिए लोकतन्त्र के नाम पर चुनकर आने वाले पाकिस्तानी हुक्मरानों का जोर कभी भी फौज पर नहीं चल सका है।
खुदा न करे यदि पाकिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया तो सबसे अधिक खतरा भारत को ही है। गम्भीर खतरा पाकिस्तान के परमाणु बमों को लेकर है। तालिबान पाकिस्तान के परमाणु बमों तक पहुंचने की कोशिश जरुर करेगा। यदि तालिबान की पहुंच परमाणु बम तक हो गयी तो भारत का ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया का वजूद खतरे में पड़ सकता है। ऐसे में जब आसिफ जरदारी पाकिस्तान के वजूद को खतरे में बताते हैं तो हम भारतीयों को खुश होने की जरुरत नहीं, बल्कि उस खतरे से सचेत होने की है, जो तालिबान के रुप में भारत के सामने आ सकता है। तालिबान के सफाए के नाम पर अमेरिका बमबारी करके बेकसूर लोगों की जान भी ले रहा है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अमेरिका की मौजूदगी को तालिबान ही नहीं तालिबान के विरोधी भी हजम नहीं कर पा रहे हैं। जब तक अमेरिका पाकिस्तान में मौजूद रहेगा, तालिबान को समर्थन मिलता रहेगा। पाकिस्तान के वजूद को बचाने के लिए यह बहुत जरुरी है कि अमेरिका के बगैर ही पाकिस्तान और भारत एक होकर तालिबान का मुकाबला करें।
लेखक सलीम अख्तर सिद्दीक़ी 170, मलियाना, मेरठ के रहने वाले हैं। उनसे संपर्क 09837279840 पर फोन करके या फिर उनकी मेल आईडी [email protected] पर मेल करके किया जा सकता है।