मुंबई : कारगिल विजय दिवस पर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान प्राप्त शूरवीरों की गौरवगाथा पर लिखी मंजू लोढ़ा की पुस्तक ‘परम वीर’ का विमोचन किया। नई दिल्ली में साउथ ब्लॉक स्थित रक्षा मंत्रालय के सभागार में आयोजित एक विशेष समारोह में ‘परम वीर’ के इस विमोचन समारोह में थलसेना अध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह सुहाग, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव रामलाल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहकार्यवाह सुरेश सोनी, केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह, रक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष भामरे, इंटरनेशनल कोर्ट के जज डॉ. जस्टिस दलबीर भंडारी, राजस्थान के महाधिवक्ता एनएम लोढ़ा, महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष सांसद रावसाहब दानवे एवं महाराष्ट्र के विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा सहित कई अन्य प्रमुख लोग विशेष रूप से उपस्थित थे।
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने इस अवसर पर कहा कि देश की रक्षा के लिए अपनी जान लुटा देनेवाले परमवीरों की गौरवगाथा की यह पुस्तक देश के हर स्कूल तक पहुंचनी चाहिए। जिससे हमारी आनेवाली पीढ़ी को शूरवीरों की देश के प्रति भावना का अहसास हो सके। भारतीय सेना के जवानों को श्रद्धांजली स्वरूप लिखी ‘परम वीर’ में श्रीमती लोढ़ा ने अब तक परमवीर चक्र सम्मान प्राप्त सभी 21 शूरवीरों के शौर्य कथाओं की मार्मिक प्रस्तुति की है। इसके साथ ही विश्व के सबसे बर्फीले व सर्वाधिक दुर्गम युद्ध स्थल सियाचीन में देश की रक्षा कर रहे सैनिकों की मुश्किल जिंदगी का भी भावपूर्ण चित्रण पेश किया है। परमवीर की लेखिका श्रीमती लोढ़ा ने रक्षा मंत्री को एक लाख रुपए का चेक डिफेंस फंड में योगदान स्वरूप भेंट किया साथ ही परमवीर पुस्तक की प्रति भी रक्षामंत्री को अर्पित की।
अंग्रेजी में प्रकाशित ‘परम वीर’ के विमोचन समारोह के मौके पर श्रीमती लोढ़ा ने कहा कि सभी लोग तो सीमा पर जाकर देश की रक्षा भले ही नहीं कर सकते, लेकिन हमें हर पल देश सेवा की भावना रखनी होगी। देश की रक्षा में जुटे हमारे असली नायकों की याद में लिखी यह पुस्तक बदलते दौर में भी आनेवाली पीढ़ियों को हमारे सैनिकों के त्याग, समर्पण और शौर्य की याद दिलाएगी और नई पीढ़ी शहीदों का सम्मान करेगी, श्रीमती लोढ़ा ने यह विश्वास व्यक्त किया।
परमवीर में उन्होंने आजादी के बाद सन 1947 से लेकर 1999 का कारगिल तक के सभी युद्धों का भी सारगर्भित विवरण पेश किया है। साथ ही सन 1971 में सिर्फ आधे घंटे में ही किस तरह से कुल 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डालकर आत्मसमर्पण किया, उस बारे में भी प्रकाश डाला है। इस पुस्तक में युद्धकाल के लिए दिए जानेवाले परमवीर चक्र के अलावा महावीर चक्र एवं वीर चक्र सहित शांतिकाल के लिए प्रदान किए जानेवाले अशोक चक्र सम्मान के विजेताओं के बारे में भी इस पुस्तक में काफी सामग्री संजोयी गई है।