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मीडिया मंथन

उन्हें शांति न मिले जिनकी करनी अशोकजी को भुगतनी पड़ी

अशोक उपाध्याय जी के निधन से इतना दुखी हूं कि दो दिन से ठीक से पलक तक नहीं झपक पाई। अशोक जी हैदराबाद में मेरे उन दिनों के साथी थे, जब वो मिलाप में और मैं स्वतंत्र वार्ता में काम किया करता था। हम दोनों कई बार खेल की कवरेज के दौरान मिला करते थे। हम दोनों का स्वभाव एक जैसा… कम बोलना और गम खाना… मैं बराबर अशोक जी से कहा करता था..भाई सिगरेट कम पीया करो..बीवी-बच्चे हैं.. वो भी मुझे सलाह दिया करते.. आप भी गुटखा छोड़ दो..

<p align="justify">अशोक उपाध्याय जी के निधन से इतना दुखी हूं कि दो दिन से ठीक से पलक तक नहीं झपक पाई। अशोक जी हैदराबाद में मेरे उन दिनों के साथी थे, जब वो मिलाप में और मैं स्वतंत्र वार्ता में काम किया करता था। हम दोनों कई बार खेल की कवरेज के दौरान मिला करते थे। हम दोनों का स्वभाव एक जैसा... कम बोलना और गम खाना... मैं बराबर अशोक जी से कहा करता था..भाई सिगरेट कम पीया करो..बीवी-बच्चे हैं.. वो भी मुझे सलाह दिया करते.. आप भी गुटखा छोड़ दो.. </p>

अशोक उपाध्याय जी के निधन से इतना दुखी हूं कि दो दिन से ठीक से पलक तक नहीं झपक पाई। अशोक जी हैदराबाद में मेरे उन दिनों के साथी थे, जब वो मिलाप में और मैं स्वतंत्र वार्ता में काम किया करता था। हम दोनों कई बार खेल की कवरेज के दौरान मिला करते थे। हम दोनों का स्वभाव एक जैसा… कम बोलना और गम खाना… मैं बराबर अशोक जी से कहा करता था..भाई सिगरेट कम पीया करो..बीवी-बच्चे हैं.. वो भी मुझे सलाह दिया करते.. आप भी गुटखा छोड़ दो..

बाद में वो ईटीवी राजस्थान में बुलेटिन प्रोड्यूसर बने और मैं ईटीवी यूपी में बुलेटिन प्रोड्यूसर… जब मैं सहारा समय मध्य प्रदेश में नोएडा आया और फिर वहां से ज़ी न्यूज़ और फिर आज तक… तब भी वो फोन पर अक्सर यही करते थे.. परमेंद्र भाई… मैं भी दिल्ली आना चाहता हूं.. मैं बोलता था… अशोक भाई.. हैदराबाद छोटा शहर ज़रूर है, लेकिन सुरक्षित है.. हम यहां तनाव में जीते हैं… तनाव में काम करते हैं… आप क्यों फंसना चाहते हैं… लेकिन, वो आ गए.. वीओआई में… कुछ दिन पहले ही उनका फोन आया था… कह रहे थे कुछ हो तो बताना… लेकिन, काश हम इस हालात में होते, कि वाकई कुछ कर पाते…

आज अशोक भाई नहीं हैं… उनके इकलौते बेटे का चेहरा… भाभी का चेहरा नज़रों के सामने घूमता है… मेट्रो अस्पताल के गेट नंबर तीन के बाहर खड़े उन सैकड़ों पत्रकारों के चेहरे घूमते हैं, जो बेबसी के प्रतीक थे… तनाव ने अशोक जी की ज़िंदगी छीन ली… उस दोस्त को हमसे छीन लिया जिसकी जुबान से आज तक किसी ने भी किसी की शिकायत नहीं सुनी थी… जो कभी कुछ बोलता ही नहीं था… जो गम को सीने में छिपाए ज़िंदगी जीता था… ईमानदारी से काम करता था…

अशोक जी की मौत..एक अड़तीस साल के पत्रकार की मौत… हम सबके लिए सबक है… हम किसलिए एक-दूसरे की टांग खींचते हैं… किसलिए? क्यों काम के तनाव के अलावा किसी पर बेकार की राजनीति का तनाव डालते हैं… अगर औकात नहीं है तो क्यों चैनल खोलकर सपनों का कत्ल करते हैं? कौन देगा जवाब? अशोक जी के बच्चे, अशोक जी की पत्नी के आंसुओं का जवाब आखिर किसके पास है? भगवान उनकी आत्मा को शांति दें… लेकिन, दिल से यही मनाता हूं कि उन्हें कभी शांति नहीं मिले, जिनकी करनी की वजह अशोक जी को भुगतनी पड़ी.

लेखक परमेन्द्र मोहन ‘जी न्यूज’ में सीनियर प्रोड्यूसर पद पर कार्यरत हैं.

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