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मीडिया मंथन

प्रभाषजी जैसे लोग बार-बार पैदा नहीं होते

मुंबई के पत्रकारों, चिंतकों, बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, कवियों और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लोगों ने भारतीय पत्रकारिता के महानायक प्रभाष जोशी को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। मुंबई में श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए आयोजित कार्यक्रम ‘हंस अकेला उड़ गया…’ में प्रभाषजी को भारतीय पत्रकारिता को नए आयाम देने वाले संपादक के रूप में याद किया गया। प्रेस क्लब ऑफ मुंबई में वरिष्ठ पत्रकार अनुराग त्रिपाठी, जनसत्ता के वरिष्ठ उप संपादक रहे राकेश दुबे और मीडिया विशेषज्ञ निरंजन परिहार द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती और मराठी सहित अन्य भाषाओं के पत्रकारों की उपस्थिति में एक यादगार श्रद्धांजलि बन गया। प्रभाष जी को श्रद्धांजलि देते हुए मराठी के वरिष्ठ पत्रकार और आईबीएन लोकमत के संपादक निखिल वागले ने कहा कि जनता की सोच को हमेशा प्रमुखता देने वाले प्रभाष जोशी नई पीढ़ी की हौसला अफजाई करने वाले पत्रकार थे।

मुंबई के पत्रकारों, चिंतकों, बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, कवियों और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लोगों ने भारतीय पत्रकारिता के महानायक प्रभाष जोशी को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। मुंबई में श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए आयोजित कार्यक्रम ‘हंस अकेला उड़ गया…’ में प्रभाषजी को भारतीय पत्रकारिता को नए आयाम देने वाले संपादक के रूप में याद किया गया। प्रेस क्लब ऑफ मुंबई में वरिष्ठ पत्रकार अनुराग त्रिपाठी, जनसत्ता के वरिष्ठ उप संपादक रहे राकेश दुबे और मीडिया विशेषज्ञ निरंजन परिहार द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती और मराठी सहित अन्य भाषाओं के पत्रकारों की उपस्थिति में एक यादगार श्रद्धांजलि बन गया। प्रभाष जी को श्रद्धांजलि देते हुए मराठी के वरिष्ठ पत्रकार और आईबीएन लोकमत के संपादक निखिल वागले ने कहा कि जनता की सोच को हमेशा प्रमुखता देने वाले प्रभाष जोशी नई पीढ़ी की हौसला अफजाई करने वाले पत्रकार थे।

वागले ने कहा कि प्रभाषजी को हमारे समय के नायक के रूप में याद किया जाएगा। ‘हंस अकेला उड़ गया…’ की अध्यक्षता करते हुए ‘नवनीत’ के संपादक विश्वनाथ सचदेव ने कहा कि प्रभाष जोशी ने भारतीय पत्रकारिता को मूल्यों, सिद्धांतों और आदर्शों का एक ऐसा नया स्वरूप दिया, जो बहुत ही प्रखर साबित हुआ। सचदेव ने कहा कि अपने काम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता बहुत गजब की थी।  नवभारत टाइम्स के संपादक शचींद्र त्रिपाठी ने पत्रकारिता को नई सोच, नया अंदाज और नए तेवर देने वाले नायक के रूप में प्रभाषजी को याद किया। गुजराती के प्रमुख दैनिक जन्मभूमि के संपादक कुंदन व्यास ने कहा कि प्रभाष जोशी ने मूल अंग्रेजी के पत्रकार होते हुए भी सभी भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता का नाम रोशन किया। व्यास ने कहा कि ऐसे लोग बार बार पैदा नहीं होते।

वयोवृद्ध पत्रकार और ‘नूतन सवेरा’ के संपादक नंदकिशोर नोटियाल ने कहा कि प्रभाषजी ने हमेशा अन्याय का विरोध किया और जिसका साथ दिया, वे भी जब गलत करने लगे, तो उनका भी भरपूर विरोध किया। मीडिया विशेषज्ञ निरंजन परिहार ने उन को देश का आखरी प्रखर संपादक बताते कहा कि हिंदी पत्रकारिता को देश में अंग्रेजी पत्रकारिता से भी ऊंचा खड़ा करने के लिए प्रभाषजी को सदैव याद किया जाता रहेगा। ‘दोपहर का सामना’ के संपादक प्रेम शुक्ल ने कहा कि पतनोन्मुख पत्रकारिता के युग में भी प्रभाषजी पैकेज पत्रकारिता के विरोध में चमकते सूरज की तरह खड़े दिखाई दिए।

मराठी दैनिक महानगर के संपादक युवराज मोहिते ने कहा कि पत्रकारिता में किसी मुद्दे पर मजबूती से अड़े रहनेवाले संपादक के रूप में प्रभाषजी को हमेशा याद किया जाएगा। समाजसेवी बद्रे आलम, टाइम्स ऑफ इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार विट्ठल नाडकर्णी, गांधीवादी पत्रकार जतिन देसाई और प्रेस क्लब मुंबई की सेक्रेटरी स्वाति देशपांडे ने कहा कि प्रभाषजी कमजोर वक्त में मजबूती देनेवाले पत्रकार थे, जिन्होंने मरते दम तक मीडिया की इज्जत को बचाए रखने का अपना आंदोलन जारी रखा। दैनिक भास्कर के इंदर जैन और वरिष्ठ पत्रकार राकेश दुबे ने एक दशक से भी ज्यादा वक्त तक प्रभाष जोशी के मार्गदर्शन में किए काम के अनुभव सुनाए। वरिष्ठ पत्रकार अनुराग त्रिपाठी ने इस मौके पर कहा कि अपनी शैली और अपने तेवर के जरिए भारतीय पत्रकारिता को नए आयाम देने वाले संपादक के रूप में प्रभाषजी हमेशा याद रहेंगे।

‘हंस अकेला उड़ गया…’ में वाग्धारा की संपादक सुमन सारस्वत, नई दुनिया के चंद्रकांत शिंदे, गोपाल शर्मा, फोकस टीवी के मुंबई प्रभारी हरिगोविंद विश्वकर्मा, अमरजीत मिश्र, सहित दैनिक जागरण के ब्यूरो चीफ ओम प्रकाश तिवारी, सोनू उपाध्याय, प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता निजामुद्दीन राईन, कांग्रेस के नेता योगेश दुबे, नवभारत टाइम्स के सिटी एटडीटर विमल मिश्र, मुंबई राजस्थान के संपादक ललित शक्ति, अश्विनी कुमार जोशी को अलावा करीब डेढ़ सौ से भी ज्यादा लोगों ने प्रभाषजी को श्रद्दांजली दी।

कवि लोचन सक्सेना ने इस मौके पर प्रभाषजी पर लिखी अपनी कविता सुनाई। सभी ने याद किया कि 21  साल पहले, 1988 में मुंबई से जब जनसत्ता का प्रकाशन शुरू हुआ, तो कैसे मेहनत करके प्रभाषजी ने इस शहर की आत्मा को जनसत्ता में उतारने की कोशिश की थी। और यह भी याद किया कि दिल्ली में रहने के बावजूद कैसे मुंबई के हर पत्रकारीय आंदोलन की आवाज को बुलंद करने में प्रभाषजी सक्रिय भूमिका निभाते थे।

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