प्रभाष जी युवाओं को दे गए हैं लोकत्रत और पत्रकारिता को बचाने की जिम्मेदारी : लखनऊ : मूर्धन्य सम्पादक प्रभाष जोशी जी का जाना देश के साथ साथ उत्तर प्रदेश के पत्रकरों को भी बेहद आहत कर गया है। पत्रकारिता की दशा और दिशा पर गहरी होतीं उनकी चिंताओं में साझेदारी ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। जोशी जी 8 और 9 अगस्त को जयपर में हुए एनयूजे के यूनियन काउन्सिल सम्मेलन में हम सभी के बीच थे। उस सम्मेलन में उनकी गहरी चिंताएं उभरी थीं। वे बेहद आहत थे गत लोकसभा चुनाव में पैकेज पत्रकारिता को लेकर उन्होंने इसे लोकतंत्र के लिए घातक बताया था। वे इस बात से बहुत दुखी थे कि युवा पत्रकारों के सपने टूट रहे हैं। इस संक्रमण काल से पत्रकारिता को उबारने की जिम्मेदारी वे युवाओं पर डाल गए हैं। उन्होंने वहां कहा था कि पत्रकारिता बचेगी तो लोकतंत्र बचेगा। जोशी जी दिल्ली से सड़क मार्ग से जयपुर पहुंचे थे और सीधे ही सम्मेलन स्थल आये थे ताकि समय पर पहुंच कर देश भर के पत्रकारों से संवाद स्थापित कर सकें। इस सम्मेलन में उन्होंने जो कुछ कहा वह नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है—-
पत्रकारिता बचेगी तो लोकतंत्र बचेगा- प्रभाष जोशी
देश के जाने माने पत्रकार प्रभाष जोशी ने सम्मेलन में आये पत्रकारों से समाचार की अस्मिता बचाने के लिये आगे आने का आह्वान किया। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ करने की ललक लेकर आये युवा पत्रकारों के बिखरते सपनों पर चिंता व्यक्त की। श्री जोशी ने कहा कि देशभर के युवा पत्रकार समाचार पत्रों की व्यवसायिकता के चलते निराश हो रहे हैं। युवा पत्रकार कहते हैं क्या करने निकले थे? और क्या कर रहे हैं? कोई चैनल ऐसा नहीं है जिसके युवाओं की जुवां पर सवाल नहीं हों। समाचार पत्रों और उनके घरानों की व्यवसायिकता इतनी अधिक बढ़ गई है कि अब ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना पुण्य के समान है। हाल ही में सम्पन लोकसभा चुनावों में समाचार पत्रों की भूमिका का जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्री जोशी ने कहा कि अब विज्ञापन खबरों के रूप में छापे जाने लगे हैं।
समाचार पत्रों की गौरवशाली परम्परा और इतिहास रहा है, किन्तु कुछ समाचार पत्रों ने इसे भुला दिया। लोक सभा चुनावों में अखबारों ने अपनी पवित्र जगह पर खबरों की बजाय झूठे विज्ञापनों को खबर बनाकर छापा। यह सब पैकेज के नाम पर हुआ। इस तरह के पैकेज केवल देश के भाषायी अखबारों ने ही नहीं बेचे बल्कि 150 से 200 साल का इतिहास रखने वाले राष्ट्रीय स्तर के अखबारों ने भी यही किया। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पार्टियों से सीधे डील किया और पैकेज बेचे। स्थिति यह थी कि सम्पादक को मालूम ही नहीं कि पहला पेज किसे बेच दिया गया है। यह पाठकों के साथ और मतदाता के साथ जो कि देश का असली मालिक है उसके साथ धोखाधड़ी है। यह सब ऐसा है कि अवर्णननीय है। ऐसे माहौल में पत्रकार अखबारों के विज्ञापन एजेण्ट होंगे। श्री जोशी ने एनयूजे(आई) नेतृत्व से प्रश्न किया कि तब आपकी संस्था क्या करेगी? उन्होंने कहा कि पत्रकारिता लोकतंत्र के बाकी तीनों स्तम्भों पर नजर रखता है तथा उन्हें ठीक रखने का प्रयास करता है। किन्तु अब तो प्रश्न यह है कि लोकतंत्र की सेवा करने वाली पत्रकारिता कैसे बचेगी? यह लोकतंत्र के उपकरण का सवाल है, जिसके बिना लोकतंत्र नहीं चलेगा। लोकतंत्र बचाने के लिए आन्दोलन चलाना पडेगा। लोकतंत्र नहीं बचेगा तो देश का क्या होगा?