Connect with us

Hi, what are you looking for?

संगीत-सिनेमा

करण जौहर – रफ़ी विवाद विशेष : न फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया…

अर्पण जैन ‘अविचल’

सस्ती लोकप्रियता और बालीवूड का बहुत पुराना नाता हैं , किंतु जब फन को लेकर निम्‍न स्तर उतर कर कोई बात कही जाती है इन बातों से व्यक्ति की मानसिक स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं | बॉलीवुड में अपनी अदभुत आवाज़ के रंग बिखेरने वाले प्रख्यात पार्श्वगायक मोहम्मद रफी को लेकर करण जौहर द्वारा निर्देशित हालिया फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ रफ़ी साहब के फन पर संदेह का गोलघेरा लगाते हुए एक संवाद लिया गया हैं| फिल्म में अभिनेत्री अनुष्का शर्मा कहती हैं, “मोहम्मद रफी गाते नहीं, रोते थे.”

<p><strong>अर्पण जैन 'अविचल'</strong><br /><br />सस्ती लोकप्रियता और बालीवूड का बहुत पुराना नाता हैं , किंतु जब फन को लेकर निम्‍न स्तर उतर कर कोई बात कही जाती है इन बातों से व्यक्ति की मानसिक स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं | बॉलीवुड में अपनी अदभुत आवाज़ के रंग बिखेरने वाले प्रख्यात पार्श्वगायक मोहम्मद रफी को लेकर करण जौहर द्वारा निर्देशित हालिया फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ रफ़ी साहब के फन पर संदेह का गोलघेरा लगाते हुए एक संवाद लिया गया हैं| फिल्म में अभिनेत्री अनुष्का शर्मा कहती हैं, “मोहम्मद रफी गाते नहीं, रोते थे.”</p>

अर्पण जैन ‘अविचल’

सस्ती लोकप्रियता और बालीवूड का बहुत पुराना नाता हैं , किंतु जब फन को लेकर निम्‍न स्तर उतर कर कोई बात कही जाती है इन बातों से व्यक्ति की मानसिक स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं | बॉलीवुड में अपनी अदभुत आवाज़ के रंग बिखेरने वाले प्रख्यात पार्श्वगायक मोहम्मद रफी को लेकर करण जौहर द्वारा निर्देशित हालिया फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ रफ़ी साहब के फन पर संदेह का गोलघेरा लगाते हुए एक संवाद लिया गया हैं| फिल्म में अभिनेत्री अनुष्का शर्मा कहती हैं, “मोहम्मद रफी गाते नहीं, रोते थे.”

इस फिल्म को लेकर पुराना विवाद अभी थमा भी नहीं कि एक और विवाद खडा हो गया है | हिंदी सिनेमा के लीजेंडरी सिगर मोहम्मद रफ़ी को लेकर करण की फ़िल्म में कमेंट किया गया है। फ़िल्म में रणबीर का किरदार सिंगर बनना चाहता है और वो इसके लिए मोहम्मद रफ़ी को अपना आइडल मानता है। इस पर अनुष्का शर्मा का किरदार उलाहना देता है कि मोहम्मद रफ़ी गाते कहां थे। वो तो रोते थे।

इस डायलॉग की वजह से मोहम्मद रफी का परिवार गुस्से में है. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में मोहम्मद रफी के बेटे शाहिद रफी ने कहा है, “इस डायलॉग की वजह से ना फिल्म को कोई फायदा हुआ है ना ही नुकसान… अगर ऐसा ही है तो फिर फिल्म में इसकी क्या आवश्यकता है. और ये डायलॉग लिते समय उन्हें ये एहसास भी नहीं हुआ कि वे किसके बारे में लिख रहे हैं.”
अपने पिता की महानता का गुणगान करते हुए शाहिद रफी कहते हैं, “मोहम्मद रफी इतने महान गायक है और मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहा कि क्योंकि वो मेरे पिता है. उनकी मौत के 36 साल बाद भी उनकी फैन फॉलोइंग इतनी है कि जितनी आज के बड़े सिंगर्स की भी नहीं है.”

शाहिद ने आगे कहा, “इस इंडस्ट्री में उनके बारे में कोई भी बुरा नहीं बोलता है. ये उनका अपमान है. ये बेवकूफी भरा है. जिसने भी ये डायलॉग लिखा है वो बेवकूफ है. मेरे पिता ने शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार, जोय मुखर्जी, विश्वजीत सिंह के लिए गाने गाए हैं. लव सॉन्ग से लेकर कौव्वाली तक हर तरह के गीत उन्होंने गाए. इस फिल्म में जो कुछ भी कहा गया है वो हास्यास्पद है.”
बात फन और फनकार के अपमान की है तो निश्चित तौर पर जिस भी व्यक्ति ने ये संवाद लिखा है वे निश्चित तौर पर या तो रफ़ी साहब के फन को नहीं समझ पाए या जान बुझ कर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के चक्कर में एक हस्ती का अपमान कर बैठे…

रफ़ी साहब बालीवुड के उन महानायकों में शुमार है जिसने संगीत को अपने दौर में सॅंजोकर परोसा और जनमानस पर अंकित करने में महती भूमिका निभाई | रफी साहब हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में से एक थे। अपनी आवाज के माधुर्य के लिए इन्होंने अपने समकालीन गायकों के बीच अलग पहचान बनाई। इन्हें ”शहंशाह-ए-तरन्नुम” भी कहा जाता था। 40 के दशक से आरंभ कर 1980 तक इन्होने कुल 26,000 गाने गाए। मोहम्मद रफी स्वर को एक बेमिसाल ऊंचाई तक भी पूरे नियंत्रण में गाने वाले स्वर सम्राट थे। मो. रफी ऐसे फनकार थे जिन्हें गायन कला विरासत में नहीं मिली थी। 1965 में उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से नवाज़ा गया। उनके सुर दिलों को उद्वेलित करते थे।

गीतकारों में भी रफी साहब का दबदबा ऐसा बना कि उनके स्वर को आदर्श मानकर गीत लिखे जाने लगे। शकील बदायूनी, मजरूह सुल्तानपुरी, हसरत जयपुरी, कैफी आजमी, साहिर लुधियानवी, शैलेन्द्र, और प्रेम धवन तक ने रफी को ध्यान में रखकर गीत लिखे। रफी ने हजारों ऐसे गीत और गजल गए हैं कि उनकी मृत्यु के दो दशकों बाद भी ये गीत बरबस जबान पर आकर दिल में उतर जाते हैं। रफी ने एक से बढ़कर एक और विविधता भरे ऐसे-ऐसे गीत गाए हैं कि उन्हें गीतों का ‘बेताज बादशाह’और ‘स्वर सम्राट’जैसे विशेषण देना कई अतिशयोक्ति भरा नहीं लगता।

24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर, के पास कोटला सुल्तान सिंह में जन्मे मोहम्मद रफ़ी कम उम्र में ही वक़्त की ठोकरों से गुजर कर जीवन तराशने में लग गये थे | इनका परिवार लाहौर से अमृतसर आ गया।  घर में साधारण सा गायन का माहौल था वो भी वह ज्यादा प्रेरक न था, हां, ईश्वर का दिया बेहतरीन सुर, स्वर व गला उनके पास था। रफ़ी की बड़े भाई की नाई की दुकान थी वही रफ़ी साहब का ज़्यादा वक़्त गुज़रता था और वह दुकान ही रियाज़ घर बन गई थी |  कहा जाता है कि रफ़ी जब सात साल के थे तो वे अपने बड़े भाई की दुकान से होकर गुजरने वाले एक फकीर का पीछा किया करते थे जो उधर से गाते हुए जाया करता था। उसकी आवाज रफ़ी को पसन्द आई और रफ़ी उसकी नकल किया करते थे। उनकी नकल में अव्वलता को देखकर लोगों को उनकी आवाज भी पसन्द आने लगी। लोग नाई दुकान में उनके गाने की प्रशंसा करने लगे। लेकिन इससे रफ़ी को स्थानीय ख्याति के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिला। इनके बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने इनके संगीत के प्रति इनकी रुचि को देखा और उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत शिक्षा लेने को कहा। एक बार आकाशवाणी (उस समय ऑल इंडिया रेडियो) लाहौर में उस समय के प्रख्यात गायक-अभिनेता कुन्दन लाल सहगल अपना प्रदर्शन करने आए थे। इसको सुनने के लिए मोहम्मद रफ़ी और उनके बड़े भाई भी गए थे। बिजली गुल हो जाने की वजह से सहगल ने गाने से मना कर दिया। रफ़ी के बड़े भाई ने आयोजकों से निवेदन किया की भीड़ की व्यग्रता को शांत करने के लिए मोहम्मद रफ़ी को गाने का मौका दिया जाय। उनको अनुमति मिल गई और 13 वर्ष की आयु में मोहम्मद रफ़ी का ये पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था। प्रेक्षकों में श्याम सुन्दर, जो उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार थे, ने भी उनको सुना और काफी प्रभावित हुए। उन्होने मोहम्मद रफ़ी को अपने लिए गाने का न्यौता दिया। मोहम्मद रफ़ी का प्रथम गीत एक पंजाबी फ़िल्म गुल बलोच के लिए था जिसे उन्होने श्याम सुंदर के निर्देशन में 1944 में गाया। सन् 1946 में मोहम्मद रफ़ी ने बम्बई आने का फैसला किया। उन्हें संगीतकार नौशाद ने पहले आप नाम की फ़िल्म में गाने का मौका दिया।

‘चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना’ आज भी दर्द का अहसास कराता है तो पत्थर के सनम फिल्म का‘पत्थर के सनम तुझे हमने मोहब्बत का खुदा जाना’दिल की गहराइयों से गाया गया गीत लगता है। रफ़ी के गाये गीत ”लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में, हजारों रंग के फसाने बन गए”,  ‘आजा तुझको पुकारे मेरे गीत रे, मेरे मीत रे ’बेहतरीन गीत हैं तो देश भक्ति भाव से भरा गीत ‘जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती हैं बसेरा’ रफी के स्वर की गहराई का अहसास कराता है। ‘वो जब याद आए, बहुत याद आए’ आज भी रफी की याद दिलाता है और उनकी कमी का अहसास कराता है। ‘हाथी मेरे साथी’में रफी का गाया‘नफरत की दुनियां को, छोड़ के प्यार की दुनियां में’आँखों में आंसू ले आता है । सचमुच सीमित साधनों और अपने ही बलबूते पर अपनी जमीन और आकाश खुद बनाने वाले रफी सचमुच ही इस गाने के माध्यम से अपनी अहमियत का अहसास कराते हैं। चाहे कोई मुझे जंगली कहे (जंगली), एहसान तेरा होगा मुझपर (जंगली), ये चांद सा रोशन चेहरा (कश्मीर की कली), दीवाना हुआ बादल (कश्मीर की कली), मैने पूछा चांद से (फ़िल्म – अब्दुल्ला), खिलौना जानकर तुम तो, मेरा दिल तोड़ जाते हो (फ़िल्म -खिलौना),चलो रे डोली उठाओ कहार (फ़िल्म – जानी दुश्मन),चाहूंगा में तुझे (फ़िल्म – दोस्ती) ,बहारों फूल बरसाओ (फ़िल्म – सूरज) , दिल के झरोखे में (फ़िल्म – ब्रह्मचारी), बाबुल की दुआएं लेती जा (फ़िल्म – नीलकमल), तेरी प्यारी प्यारी सूरत को (फ़िल्म – ससुराल),ओ दुनिया के रखवाले (बैजू बावरा-1952),नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुठ्ठी में क्या है,मैं जट यमला पगला,हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, (फिल्म-जागृति, 1954),अब तुम्हारे हवाले,ये देश है वीर जवानों का,बाबुल की दुआए उनके द्वारा गाये गये लोकप्रिय गानों में शामिल हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रफ़ी को न जानने वालों ने जिस तरह से अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए बनाई गई विवादों की श्रृंखला में रफ़ी को भी खींच लिया वो निहायती निचले किस्म की ‘प्रमोशन पालिसी’ का हिस्सा भर है | गायन के क्षेत्र के नक्षत्र के बारे में करण जौहर निर्देशित फिल्म में जिस तरह से संगीत के शहंशाह के बारे में टिप्पणी की गई वो घटिया के सिवा कुछ भी नहीं हैं | और क्यूँ ना भड़के रफ़ी साहब के चाहने वाले और उनके सुपुत्र भी ?

रफ़ी के बेटे शाहिद ने तो इस बात पर भी हैरानी ही प्रकट की है क़ि  करन जौहर ने इस डायलॉग को फिल्म में कैसे शामिल किया. शाहिद कहते हैं, ‘ये देखने के बाद मुझे संदेह है कि करन को ये पता भी है कि वो क्या कर रहे हैं. वो मेरे पिता की बेइज्जती कर रहे हैं. मैंने करन से ये उम्मीद नहीं की थी. जब उनके पिता यश जौहर ने 1980 में फिल्म दोस्ताना बनाई थी तो मेरे पिता ने उनके लिए मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया, सुना है कि तु बेवफा हो गया गाना गाया था. मुझे नहीं पता कि ये लाइन उन्होंने फिल्म में क्यों ली. शायद शोहरत सर ज्यादा चढ गई है. जब शोहरत ज्यादा चढ़ जाती है तो लोग मुंह पर तारीफ करते हैं और पीठ पीछे थू-थू करते हैं.”

शाहिद का कहना है कि वो इसे लेकर सीबीएफसी के चेयरमैन पंकज निहलानी से भी मिलेंगे. उन्होंने कहा है कि उन्हें इस डायलॉग को लेकर फैंस ने काफी संदेश भेजे हैं और एक्शन लेने की मांग की है. शाहिद ने कहा, “मैं निहलानी जी से बात करूंगा. मैं उन्हें अच्छे से जानता हूं. मैं देखूंगा कि वो मुझे एक्शन लेने के लिए क्या सलाह देते हैं. इस डायलॉग को सेंसर करना चाहिए.”

आख़िर लाखों भारतीयों के दिलों पर राज करने वाले फनकार मोहम्मद रफ़ी के बारे में करण जौहर की फिल्म में अपशब्द कहना केवल सस्ती लोकप्रियता पाना भर ही है| किसी भी कलाकार द्वारा अन्य कलाकार की तारीफ ना सही पर बुराई भी करना  गैर ज़िम्मेदाराना और बड़ा ही कायराना कदम लगता हैं | वर्तमान दौर में मूल्यों का हास झेलता फिल्म जगत इस तार की हरकतों पर उतर आए समझ से परे ही है |और जिन लोगो द्वारा इस तरह का कृत्य किया जा रहा है उन्हे तिरस्कार अर्पण करना ही रफ़ी साहब के चाहने वालों द्वारा करण को सच्चा सबक माना जाएगा | रफ़ी आज हमारे बीच नहीं हैं किंतु अमिताभ बच्चन ने फिल्म क्रोध में जो गीत फिल्माया ‘ ‘न फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया’ यथार्थ रूप से रफ़ी का तार्किक और भावनात्मक अवलोकन है | सही मायने में दूसरा रफ़ी हमारे बीच कोई नहीं आया | और उसी  रफ़ी के बारे में स्तरहीन संवाद रख कर करण जोहर ने घटिया मानसिकता का प्रदर्शन किया हैं | कुछ भी कहिये, लेकिन भला करण जौहर जैसे अनुभवी निर्देशक को एक महान गायक का मज़ाक बनाकर क्या हासिल होगा. अब भी यदि करण इस कृत्य के लिए माँफी नहीं माँगते है तो इसे करण की जानबूझकर की गई ग़लती ही मानी जाएगी |

अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं स्तंभकार
09893877455
[email protected]

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

मेरी भी सुनो

अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाने के लिए पहले रेडियो, अखबार और टीवी एक बड़ा माध्यम था। फिर इंटरनेट आया और धीरे-धीरे उसने जबर्दस्त लोकप्रियता...

साहित्य जगत

पूरी सभा स्‍तब्‍ध। मामला ही ऐसा था। शास्‍त्रार्थ के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्रश्‍नकर्ता के साथ ऐसा अपमानजनक व्‍यवहार...

मेरी भी सुनो

सीमा पर तैनात बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव ने घटिया खाने और असुविधाओं का मुद्दा तो उठाया ही, मीडिया की अकर्मण्यता पर भी निशाना...

समाज-सरोकार

रूपेश कुमार सिंहस्वतंत्र पत्रकार झारखंड के बोकारो जिला स्थित बोकारो इस्पात संयंत्र भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का इस्पात संयंत्र है। यह संयंत्र भारत के...

Advertisement