इन दिनों माथा-पच्ची में लगा हूं कि क्या होगी उपर वाले की लैंग्वेज. हिन्दू भाई के भगवान ने सृष्टि रची, मुस्लिम भाई के अल्लाह ने जहाँ बनाया, और इसाई दोस्तों के जीसस ने अर्थ को क्रिएट किया. घूम-फिर कर मैं यहाँ तक पहुंचा कि भैया धरती तो पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ग्रह ही है. और जब धरती एक है तो स्वर्ग-नर्क, जन्नत-जह्हनुम, और हैवेन-हेल भी एक ही होगा. मानने वाली बात होती अगर यह कहा जाता कि सारे धर्म के मुखिया ने मिलकर एक मीटिंग की और विचार-विमर्श के बाद निर्माण कार्य शुरु किया. मगर कोई ऐसा कहता नहीं मिलता!
जहाँ तक मेरा दिमाग चला कि इनमें से किसी एक ने ही इसे बनाया है. या यह भी हो सकता है कि जिस एक ने इसे बनाया उसे ही हम अलग अलग नामों से पुकारते हैं. तो जहाँ पहुंच कर मेरा माथा काम करना बंद कर देता है वो है लैंग्वेज. जैसा कि पुरोहित फ़रमाते हैं, पुन्य करोगे तो मरने के बाद स्वर्ग में जाओगे जहाँ ऐशो-आराम होगा, और पाप करने पर नर्क चले जाओगे. उसी तरह मौलवी साहब इंसान को जन्नत-जहन्नुम के बारे में बताते हैं और इसी तर्ज पर हैवेन-हेल की कहानी है. अब जैसा कि पहले ही तय हो चुका है यह सब एक ही चिड़िया के अलग-अलग नाम हैं.
सवाल यह है कि इस एक धरती पर कई देश हैं. और हर देश की अलग-अलग भाषाएं. नज़ीर के तौर पर सिर्फ़ भारत की बात करें तो यहां १२ मुख्य भाषाओं के साथ-साथ हज़ारों बोलियों का चलन है. अंदाज़ा लगा लें कि समूची दुनिया में कितनी भाषाएं होगी. अब अगर अमेरिका का कोई दोस्त मरता है और उपर पहुंचता है तो वो बेचारा अंग्रेजी में बात करता होगा क्युंकि उसे तो सिर्फ़ अंग्रेजी आती है. सऊदी-अरब के किसी शाह का इंतकाल होगा तो वो जनाब भी सिर्फ़ अरबी मे ही बात करते होंगे. और तो और भारत में तो इतनी भाषाएं हैं कि मरने पर वो अपने भगवान से तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, हिंदी, पंजाबी, उर्दू, बंगला, उड़िया और नाजाने कितनी और लैंग्वेजों में बात करते होंगे.
गोया ऐसा तो है नहीं कि उपर जाकर उनकी बोली बदल जायेगी, या वो मौन धारण कर लेंगे. तो फिर कौन सी लैंग्वेज में बात करते होंगे ये सब? चुंकि उपर बैठा मालिक तो एक ही है, उसकी भाषा क्या होगी? क्या वो बहु-भाषाविद है? क्या वो समय के साथ-साथ अपनी भाषा को अपडेट करते होंगे? क्या उन्होनें स्वर्ग-नर्क में दुभाषियों को रोज़गार दिया हुआ है? ऐसे बहुत सारे प्रश्नवाचक चिन्ह हैं जिसने माथे पर उभरती रेखाऒं को और गहरा कर दिया है.
मसला यहां ख़त्म हो जाता और मैं इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता था कि उपर वाले बहुत बड़े विद्वान थे और सारी भाषाऒं को बोलने में माहिर थे. लेकिन ताज्जुब की बात तो यह है कि इन भाषाओं के इतिहास पर गौर किया जाये तो यही कोई ८-१०वीं सदी की बात होगी जब भाषाओं का विकास होना शुरु हुआ. उससे पहले बहुत कम भाषाएं अस्तित्व में थी. जबकि अल्लाह-ताला, भगवान्, और जीसस जी के इतिहास की कल्पना करना भी पाप है. फिर उनका मोड ऑफ़ कम्युनिकेशन क्या था? उनके समय में तो किसी भाषा का जन्म ही नहीं हुआ था. जब धरती का अस्तित्व सामने आया था उस वक्त तो सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल होता था. फिर भगवान् हिंदी और संस्कृत कैसे बोलने लगे? जीसस को अंग्रेजी कैसे आयी, अल्लाह ने अरबी कहाँ से सीखी? और अगर उन्हे भाषा और बोली आती ही नहीं थी तो वो हमारी इस दुनिया को बगैर संवाद कैसे चलाते आ रहे हैं? चलाते हैं भी या नहीं? वो हैं भी या नहीं? लगा हूं इसी माथा-पच्ची में.
लेखक राहुल कुमार प्रतिभाशाली पत्रकार और लेखक हैं.