शाम की बीयर के साथ, टीवी खोलता हूँ
देखता हूँ
साधुओं को लड़ते हुए
माफिया को रोते हुए
और इस बीच पता हूं सबको कुछ न कुछ बेचते हुए
माजा का सत्य, कोक का दम और यूपी का जुर्म
इराक का न्याय, अफगान सुधार
जेरुसलम में शांति
फ्रिज की ठण्ड से बढती ग्लोबल वार्मिंग
युद्धों का इतिहास और भविष्य के युद्ध
जीवन संघर्ष में शिकार और शिकारी की मनःस्थिति
एक बीयर और पीता हूं, नींद की कुछ गोलियां
जल्दी सोना चाहता हूं. कल फिर जीना चाहता हूं
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता की मेरी कंपनी क्या करती है
दवाइयां बनाती है या हथियारों की दलाली करती है
पार्टियों का चुनाव मैनेज करती है या एक मुखी रुद्राक्ष बेचती है
जीवन की सुख शांति के लिए.
मुझे तो बस अपनी किश्तें चुकानी हैं
और अपने बच्चे का बीमा करना है
क्योंकि बाजारूपन में जीना इसी का नाम है.
-शैलेंद्र राय