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कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र शीला दीक्षित, तीर एक निशाने पांच

पश्चिमी यूपी में कहावत हैं की ‘हाथी के पाँव में सबका पाँव’ जिसका सीधा साधा मतलब होता हैं की किसी सभा में सम्मानित लोगों में से सबकी सहमती से किसी एक का चयन करके उसका सम्मान कर देना या उससे सम्मान करवाना। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 का शंखनाद जब किया तो मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर दिल्ली की 3 मर्तबा मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित का नाम मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश किया। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता लगभग 15% हैं और अभी तक बने कुल 19 मुख्यमंत्रियों में 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण समाज के रहे हैं। वास्तव में ब्राह्मणों की ताकत सिर्फ 15% वोट तक ही नहीं सिमटी हुई है. ब्राह्मणों का प्रभाव समाज में इससे कहीं अधिक है, स्थानीय मीडिया में, चाय की दुकान पर और बढ़-चढ़ कर बातें करने वाले वर्ग में ब्राह्मण राजनीतिक हवा बनाने में सक्षम है। शीला दीक्षित का नाम इतना भारी भरकम है की उनकी उम्मीदवारी के बाद राजनैतिक क्षत्रपों ने यूपी के संग्राम को दिलचस्प होने का संकेत दिया।

<p>पश्चिमी यूपी में कहावत हैं की 'हाथी के पाँव में सबका पाँव' जिसका सीधा साधा मतलब होता हैं की किसी सभा में सम्मानित लोगों में से सबकी सहमती से किसी एक का चयन करके उसका सम्मान कर देना या उससे सम्मान करवाना। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 का शंखनाद जब किया तो मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर दिल्ली की 3 मर्तबा मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित का नाम मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश किया। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता लगभग 15% हैं और अभी तक बने कुल 19 मुख्यमंत्रियों में 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण समाज के रहे हैं। वास्तव में ब्राह्मणों की ताकत सिर्फ 15% वोट तक ही नहीं सिमटी हुई है. ब्राह्मणों का प्रभाव समाज में इससे कहीं अधिक है, स्थानीय मीडिया में, चाय की दुकान पर और बढ़-चढ़ कर बातें करने वाले वर्ग में ब्राह्मण राजनीतिक हवा बनाने में सक्षम है। शीला दीक्षित का नाम इतना भारी भरकम है की उनकी उम्मीदवारी के बाद राजनैतिक क्षत्रपों ने यूपी के संग्राम को दिलचस्प होने का संकेत दिया।</p>

पश्चिमी यूपी में कहावत हैं की ‘हाथी के पाँव में सबका पाँव’ जिसका सीधा साधा मतलब होता हैं की किसी सभा में सम्मानित लोगों में से सबकी सहमती से किसी एक का चयन करके उसका सम्मान कर देना या उससे सम्मान करवाना। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 का शंखनाद जब किया तो मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर दिल्ली की 3 मर्तबा मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित का नाम मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश किया। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता लगभग 15% हैं और अभी तक बने कुल 19 मुख्यमंत्रियों में 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण समाज के रहे हैं। वास्तव में ब्राह्मणों की ताकत सिर्फ 15% वोट तक ही नहीं सिमटी हुई है. ब्राह्मणों का प्रभाव समाज में इससे कहीं अधिक है, स्थानीय मीडिया में, चाय की दुकान पर और बढ़-चढ़ कर बातें करने वाले वर्ग में ब्राह्मण राजनीतिक हवा बनाने में सक्षम है। शीला दीक्षित का नाम इतना भारी भरकम है की उनकी उम्मीदवारी के बाद राजनैतिक क्षत्रपों ने यूपी के संग्राम को दिलचस्प होने का संकेत दिया।

राज्य में 2014 की मोदी लहर जैसे हालात अब नहीं हैं। उस वक्त बीजेपी को मुसलमानों को छोड़कर राज्य के सभी तबकों का समर्थन हासिल हुआ था। इसलिए वे 80 सीटों में से 71 पर जीत हासिल कर पाए थे। उत्तर प्रदेश में बीजेपी तभी जीत सकती है जब वो ब्राह्मणों को पहले नंबर पर तरजीह दे। बीजेपी ने ओबीसी को आगे लाकर ब्राह्मणों को कुछ नाराज़ किया है, ओबीसी में भी बीजेपी ने यादवों, जाटों को नज़रअंदाज़ किया है। मायावती के पास दलित वोट और समाजवादी पार्टी के पास यादव वोट और रालोद के पास जाट वोट बैंक है और ऐसे ही ब्राह्मण समाज को कांग्रेस का वोटर माना जाता हैं। बिना बेस वोट के कोई भी दल सीटें निकालने और सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होता हैं। इस दशा में किसी जाति विशेष से पार्टी का जुड़ाव होना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां से शुरुआत होगी। दूसरे समुदाय, यानी मुसलमान, तभी आपके राजनीतिक गंठबंधन की तरफ रुख कर सकते हैं, जब उन्हें लगेगा कि आपकी पार्टी की जीतने की कोई उम्मीद हैl दलित मायावती और मोदी में बटेगा और कांग्रेस व सपा भी दलित समाज के नेताओं और नीतियों से दलित वोट ले जायेंगे , अतिपिछड़ों की वोट भी सबमें बटेगी, इसीलिए कांग्रेस को अपने परंपरागत वोट बैंक ब्राह्मण और मुस्लिम समुदाय पर फोकस करेगी।

2007 में बसपा को कुल वोटों के 23% ब्राह्मण वोट मिले और बसपा की सरकार बनी और 2012 में ब्राह्मणों के कुल वोटों के 19% वोट समाजवादी पार्टी को मिलेl सपा की सरकार भी बनी। 1990 के बाद से ब्राह्मण वोटों पर राज करने वाली बीजेपी इस बार अपना पूरा जोर दलितों को लुभाने में लगा रही है और मोदी लहर का असर भी यूपी में फीका हो चला है। इन्हीं बातों ने कांग्रेस में उम्मीद जगायी है कि भाजपा से टूटे हुए ब्राह्मण एक बार फिर कांग्रेस को सपोर्ट कर सकते हैं। यूपी की सत्ता से 27 साल दूर रही कांग्रेस को ब्राह्मण वोटों में उम्मीद की किरण नजर आ रही है। शीला दीक्षित को मैदान में उतारना इसी रणनीति का एक हिस्सा कहा जा सकता है। इस रणनीति का लाभ होता हुआ भी चुनाव में दिखाई देगा।

कांग्रेस के लिए एक अच्छी बात ये है कि लगभग हर जिले में बचे हुए बड़े कांग्रेसी नेता ब्राह्मण ही हैं। जिलों के अस्तित्वहीन हो चुके ब्राह्मण कांग्रेसी नेता फिर से चमकने लगे हैं। शीला दीक्षित को जब कांग्रेस ने यूपी से मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया तभी से बसपा, सपा, भाजपा ब्राह्मणों को रिझाने के लिए ब्राह्मण सम्मेलन करने में लग गयी थी। यहाँ तक की राहुल गाँधी जी की खाट सभा के दौरान कुछ जिलों में राहुल गाँधी का नाम पोस्टर में पंडित राहुल गाँधी के नाम से लिखा जाने लगा। यह कहीं ना कहीं ब्राह्मण समाज का झुकाव फिर कांग्रेस की तरफ होने का सन्देश देता हैं।
जिस तरह समाजवादी पार्टी  के अन्दर यूपी के मुलायम सिंह यादव परिवार के बीच का झगड़ा सड़कों पर आ गया हैं और कुछ दिनों से प्रदेश भर में इन्हीं के झगड़ों को लेकर अलग अलग चर्चाएँ चल रही हैं। जनता के बीच में सरकार और समाजवादी पार्टी की छवि धूमिल हुई हैं।

संभव है कि मुलायम सिंह यादव गुट और अखिलेश यादव गुट विधानसभा चुनाव अलग अलग लड़ें और समाजवादी पार्टी का नाम और चुनाव सिंबल साइकिल भी चुनाव आयोग द्वारा फ्रीज़ कर दिया जायेl बिना चुनाव सिंबल साइकिल के साथ चुनाव लड़ना एक चुनौती होगी और जनता को नए सिंबल की पहचान इतनी जल्दी नहीं हो सकेगी। ऐसी सूरत में कांग्रेस को  मुलायम सिंह यादव गुट व अखिलेश गुट में से किसी से भी गटबंधन ना करके छोटे दलों से गटबंधन करके यूपी विधानसभा के चुनावी मैदान में शीला दीक्षित के नेतृत्व में उतरना चाहियेl अगर समाजवादी पार्टी परिवार झगड़ा ख़त्म कर एक हो भी जाये और तो ऐसी सूरत में भी कांग्रेस को शीला दीक्षित को गटबंधन का चेहरा रखना चाहिये।

शीला दीक्षित के नाम से उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने से कांग्रेस को पंजाब, मणिपुर, उत्तराखंड और गोवा के 5 राज्यों के चुनावों में ब्राह्मणों मतों को साधने में कामयाबी मिलेगी और सरकार बनाने में लाभ मिलेगा और साथ ही दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल सरकार को भी चुनौती अगले विधानसभा चुनाव में दी जा सकेगी और शीला दीक्षित के नाम से  दिल्ली में भी कांग्रेस की सरकार बनाई जा सकेगी।

अभिमन्यु त्यागी स्वतंत्र लेखक हैं और आप उनसे उनकी ईमेल आईडी [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं।

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