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सरकार, 15 से 18 साल के बच्चों का क्या होगा?

माननीय प्रधानमंत्री के नाम पत्र : सरकार ने इस साल शिक्षा के अधिकार के लिए एक अहम एक्ट मंजूर किया है। मगर यह एक्ट 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए ही है। फिर भी इसे सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने के नजरिए से एक जरूरी कानूनी कदम ठहराया जा रहा है। जबकि भारत में 6 से 18 साल तक के 40 करोड़ बच्चों में से आधे बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। ऐसे में आपको नहीं लगता कि इस एक्ट का असर सीमित रहेगा? ”चाइल्ड राईट्स एंड यू” के मुताबिक एक तो इस एक्ट को जिस रूप में मंजूर किया गया है उसमें सभी बच्चों के हक शामिल नहीं हुए हैं। दूसरा, शिक्षा पर उम्मीद से बहुत कम पैसा रखा गया है। इसमें बच्चों के स्कूल नहीं जाने के मुख्य कारणों जैसे कि शिक्षण की खराब गुणवत्ता या घर से स्कूल की दूरी आदि के बारे में रखे गए प्रावधान भी काफी सीमित हैं। इसलिए संस्था ने 18 राज्य के 6700 समुदाय के साथ मिलकर ‘राईट आफ चिल्ड्रन टू फ्री एण्ड कम्पलसरी एजुकेशन एक्ट, 2009’ को असरदार बनाने के लिए एक मुहिम छेड़ने का फैसला लिया है।

माननीय प्रधानमंत्री के नाम पत्र : सरकार ने इस साल शिक्षा के अधिकार के लिए एक अहम एक्ट मंजूर किया है। मगर यह एक्ट 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए ही है। फिर भी इसे सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने के नजरिए से एक जरूरी कानूनी कदम ठहराया जा रहा है। जबकि भारत में 6 से 18 साल तक के 40 करोड़ बच्चों में से आधे बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। ऐसे में आपको नहीं लगता कि इस एक्ट का असर सीमित रहेगा? ”चाइल्ड राईट्स एंड यू” के मुताबिक एक तो इस एक्ट को जिस रूप में मंजूर किया गया है उसमें सभी बच्चों के हक शामिल नहीं हुए हैं। दूसरा, शिक्षा पर उम्मीद से बहुत कम पैसा रखा गया है। इसमें बच्चों के स्कूल नहीं जाने के मुख्य कारणों जैसे कि शिक्षण की खराब गुणवत्ता या घर से स्कूल की दूरी आदि के बारे में रखे गए प्रावधान भी काफी सीमित हैं। इसलिए संस्था ने 18 राज्य के 6700 समुदाय के साथ मिलकर ‘राईट आफ चिल्ड्रन टू फ्री एण्ड कम्पलसरी एजुकेशन एक्ट, 2009’ को असरदार बनाने के लिए एक मुहिम छेड़ने का फैसला लिया है।

आदरणीय प्रधानमंत्री जी

क्योंकि मानवीय हक हर इंसान के बुनियादी हक हैं इसलिए नागरिकों को जो निःशुल्क सुविधाएं मिलने का हक है, आप उसे खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। आपसे गुजारिश है कि ‘राईट आफ चिल्ड्रन टू फ्री एण्ड कम्पलसरी एजुकेशन एक्ट, 2009’ को असरदार बनाने के लिए उसमें कुछ फेरबदल किया जाए। एक समान, मुफ्त और बेहतर शिक्षा देने के मद्देनजर आपके सामने 3 मागें हैं :

1)  6 साल से नीचे और 15 से 18 साल तक के बच्चों को भी एक्ट के मुख्य प्रावधान में लाएं : 8वीं कक्षा पास करने वाले बच्चे इतने योग्य नहीं माने जाते कि वह आगे जाकर रोजगार या जिंदगी की मुश्किलों को सुलझा सकें। इसी के साथ, आंगनबाड़ी शिक्षा की नींव मानी जाती है। एक तरफ 6 साल से छोटे बच्चों की पढ़ाई और देखभाल छूटने, दूसरी तरफ 15 से 18 साल के बच्चों की भी पढ़ाई छूटने से बहुत सारे बच्चों के शिक्षा के हक सीमित हो जाते हैं। बच्चों की बड़ी संख्या में स्कूल छोड़ने की समस्या भारतीय शिक्षण व्यवस्था के सामने बहुत बड़ी चुनौती है। लिहाजा कानून में ऐसा प्रावधान जरूरी है जिससे बच्चे, खास तौर पर लड़कियां स्कूल से न छूट जाएं।

2) हर बस्ती से 1 किलोमीटर के भीतर योग्य शिक्षक और सुविधायुक्त स्कूल हो :  इस एक्ट में कोई न्यूनतम मापदण्ड नहीं बतलाये गए हैं, न तो शिक्षकों के बारे में और न ही बुनियादी सुविधाओं जैसे पीने के पानी, शौचालय, कक्षा के कमरे, शिक्षक-छात्रों के अनुपात इत्यादि को लेकर। जबकि यह साबित हो चुका है कि बच्चा घर में बोली जाने वाली भाषा में सबसे जल्दी सीखता है मगर एक्ट में मातृभाषा में शिक्षा देने या अन्य भाषा को भी रखने के बारे में साफ नहीं किया गया है। साथ ही इस अहम तर्क हो भी अनदेखा किया गया है कि स्कूली पाठयक्रम बच्चों की पहचान और उनकी रहने की जगह के हिसाब से होना जरूरी है। शिक्षक, बच्चे को सीखाने में खास भूमिका निभाते हैं। इसलिए उनकी योग्यता और क्षमताओं को इस तरह से सुधारा जाए कि वो सभी बच्चों के सामने बराबरी से पेश आएं। शिक्षक का समुदाय से अटूट रिश्ता होता है इसलिए सम्मान के लिहाज से उन्हें कम समयावधि या अनुबंध के तौर पर रखना सही नहीं है।

3) सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च हो : फिलहाल 38 प्रतिशत भारतीय गरीबी रेखा के नीचे है। जब तक सरकार शिक्षा में और अधिक आर्थिक निवेश नहीं करेगी तब तक गरीबी ज्यों की त्यों बनी रहेगी। दुनिया का कोई भी देश स्कूलों को सरकारी मदद दिये बगैर सार्वभौमिक शिक्षा के लक्ष्य तक नहीं पहुंच सका है। मगर अपने यहां 40 करोड़ बच्चों की शिक्षा पर सरकारी खर्च पिछले साल से घटा है। केन्द्रीय बजट 2008-09 में यह खर्च 3.84 प्रतिशत था, जो 2009-10 में घटकर 3.03 हो गया। देश की 40 प्रतिशत आबादी को देखते हुए एक्ट में सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले शिक्षा पर खर्च होने वाला पैसा बहुत कम है। जब तक सरकार शिक्षा पर उचित खर्च नहीं करेगी तब तक एक्ट कागजी शेर ही बना रहेगा। ”चाइल्ड राईट्स एंड यू” का मानना है कि शिक्षा का हक मानव विकास की बुनियाद है। यह व्यक्ति को चुनने, सोचने, सवाल करने और फैसला लेने के योग्य बनाता है। यह आत्मविश्वास और आत्मसम्मान पाने के रास्ते में पहला कदम है। अगर शिक्षा का हक हो तो दूसरे हक भी मिलने में आसानी रहती है। बच्चों और समाज के विकास पर शिक्षा के हक का गहरा असर होता है। मगर आजाद भारत के सबसे अहम कहे जाने वाले इस एक्ट में से आधे बच्चे अपने बुनियादी हकों से दूर हैं।

चलते-चलते : 18 साल से नीचे के हर इंसान को कुछ बुनियादी हक हैं यह बाल हक सबके लिए हैं, चाहे वह किसी भी लिंग, वर्ग, जाति या वंश के हों। यह हक हैं – 1 जीने : जीवन, स्वास्थ्य, पोषण, नाम और राष्ट्रीयता से जुड़े हुए हक। 2 विकास : शिक्षा, देखभाल, अवकाश और मंनोरंजन से जुड़े हुए हक। 3 संरक्षण : शोषण, अनुचित व्यवहार या अनदेखा करने से जुड़े हुए हक। 4 सहभागिता : बोलने, सोचने, जानकारी, उपेक्षा और धर्म की आजादी से जुड़े हुए हक।

लेखक शिरीष खरे ‘चाईल्ड राईटस एण्ड यू’ के ‘संचार-विभाग’ से जुड़े हैं।
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