Connect with us

Hi, what are you looking for?

समाज-सरोकार

तू न समझेगा सियासत, तू अभी इंसान है..

चंद दिनों पहले बदजुबानी के मसले पर जो मायावती बड़े आंदोलन की चेतावनी दे रहीं थीं, अचानक उनके सुर बदल गए। अब चूंकि पार्टी सुप्रीमो के सुर बदले तो जाहिर सी बात है कार्यकर्ता भी थम से गए। हालिया मसले ने पार्टी में निश्चित तौर पर जान फूंकने का काम किया, लेकिन दलित और आधी आबादी के कार्ड को भुनाने में लगी पार्टी की उम्मीदें उसके कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के नेतृत्व में हवा हो गईं। बीएसपी के जबर्दस्त अटैक के बाद बीजेपी ने जिस तरह से बीएसपी के कथित रवैये को भुनाते हुए काउंटर अटैक किया वो काबिल ए तारीफ है। हालांकि इसका ये मतलब बिल्कुल भी नहीं कि वार-पलटवार की इन कारस्तानियों के बीच बीजेपी पाक-साफ है।

<p>चंद दिनों पहले बदजुबानी के मसले पर जो मायावती बड़े आंदोलन की चेतावनी दे रहीं थीं, अचानक उनके सुर बदल गए। अब चूंकि पार्टी सुप्रीमो के सुर बदले तो जाहिर सी बात है कार्यकर्ता भी थम से गए। हालिया मसले ने पार्टी में निश्चित तौर पर जान फूंकने का काम किया, लेकिन दलित और आधी आबादी के कार्ड को भुनाने में लगी पार्टी की उम्मीदें उसके कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के नेतृत्व में हवा हो गईं। बीएसपी के जबर्दस्त अटैक के बाद बीजेपी ने जिस तरह से बीएसपी के कथित रवैये को भुनाते हुए काउंटर अटैक किया वो काबिल ए तारीफ है। हालांकि इसका ये मतलब बिल्कुल भी नहीं कि वार-पलटवार की इन कारस्तानियों के बीच बीजेपी पाक-साफ है।</p> <p>

चंद दिनों पहले बदजुबानी के मसले पर जो मायावती बड़े आंदोलन की चेतावनी दे रहीं थीं, अचानक उनके सुर बदल गए। अब चूंकि पार्टी सुप्रीमो के सुर बदले तो जाहिर सी बात है कार्यकर्ता भी थम से गए। हालिया मसले ने पार्टी में निश्चित तौर पर जान फूंकने का काम किया, लेकिन दलित और आधी आबादी के कार्ड को भुनाने में लगी पार्टी की उम्मीदें उसके कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के नेतृत्व में हवा हो गईं। बीएसपी के जबर्दस्त अटैक के बाद बीजेपी ने जिस तरह से बीएसपी के कथित रवैये को भुनाते हुए काउंटर अटैक किया वो काबिल ए तारीफ है। हालांकि इसका ये मतलब बिल्कुल भी नहीं कि वार-पलटवार की इन कारस्तानियों के बीच बीजेपी पाक-साफ है।

इससे पहले एक समय ऐसा भी था जब बीजेपी को दलितों में अपनी छवि बिगड़ने का डर सताने लगा और पार्टी को ये आभास होने लगा कि रोहित वेमुला की मौत पर पीएम मोदी का लखनऊ में अंबेडकर छात्रों के सामने आंसू बहाने का हथकंडा कहीं बेकार न हो जाए, क्योंकि दलितों को अपने साथ करने की मुहिम के तहत मोदी साहब लखनऊ, बनारस समेत प्रदेश भर में ये मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं कि बीजेपी जाति विशेष की नहीं समाजिक तौर पर पिछड़ों की पार्टी है। 

वहीं बीएसपी को बीजेपी के काउंटर अटैक के बाद गैर दलित वोटरों को भी साधने की चिंता सताने लगी, क्योंकि महज 20-25 फीसदी दलित वोटरों को अपने साथ करने से सूबे की सत्ता पर दोबारा काबिज होने का सपना मुकमम्ल नहीं हो सकता और चुनावी काउंटडाउन के साथ ही अपनी रणनीतियों में बदलाव से ही 20 करोड़ की आबादी वाले प्रदेश की जनता को रिझाया जा सकता है तभी पार्टी ने वक्त की नजाकत को बखूबी समझते हुए बदजुबानी के मसले को थामकर आगे बढ़ने का फैसला किया है। दरअसल 21 अगस्त से पार्टी सुप्रीमो ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय‘ के अपने पुराने एजेंडे के तहत चुनावी बिगुल की असल शुरूआत तो करेंगी, लेकिन अब अगर कथित मसले की गूंज उठी है तो दूर तलक जाएगी मसलन इसका इस्तेमाल भगवा चोला आगामी चुनाव के मद्देनजर जरूर करेगा, कर भी रहा है। खासकर महिलाओं के मसले पर मायावती के दोहरे मापदंड के मद्देनजर एक तरफ तो पार्टी मायावती को आड़े हाथों लेने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही, वहीं उसकी इस मुहिम ने महिलाओं को भी अपने साथ आने के लिए उन्हें प्रभावी तौर पर आमंत्रित किया है। सूबे की जनता भी इस बात को बखूबी समझ रही है कि माया एक तरफ तो पूर्व भाजपाई नेता दयाशंकर सिंह की कथित बदजुबानी को महिलाओं के अपमान से जोड़ रही थीं, तो दूसरी तरफ दयाशंकर की बहन-बेटी को ‘पेश करो‘ के नारे के जरिए महिलाओं का अपमान। लोगों के अंदर इस बात को लेकर खासा रोष भी है।

हालांकि तमाम पहलुओ पर गौर फरमाते हुए इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि भगवा चोला धारी दयाशंकर क्या वाकई भाजपाई ही थे, बसपाई नहीं, क्योंकि यही भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी विडंबना है तो कुछ के लिए खूबसूरती कि जैसा दिखता है असलियत में वैसा नहीं होता। खैर इन सब के दरम्यान सबसे महत्वपूर्ण जनता का हित सर्वोपरि होना चाहिए, लेकिन अफसोस कि इस तरह के चुनावी हथकंडों में आम जनता, गरीब, महिला, कुपोषण, युवा, बेरोजगारी जैसे तमाम मुद्दों पर चुनावी मौसम में सियासत गरमाती है, सभी दल जनहित में काम किए जाने का दम भी भरते हैं, पर चुनाव बीतते ही ये मसले कहीं गुम हो जाते हैं, राजनीतिक स्वार्थ हिलोरें मारने लगता है और समाजहित पीछे छूट जाता है, रह जाता है तो सिर्फ स्वार्थ। जरूरत बस लोकतंत्र की असल ताकत को दिखाने की है, कुछ कलम थाम असाधारण से दिखने वाले लोग अपना कारोबार करते हैं, सत्ताधारी अपना, पैसे वाले अमीरुल उमरा की श्रेणी में आ जाते हैं और बेचारे गरीब हाथ में बीपीएल कार्ड थामे इस भूल में रहते हैं कि शायद अब सियासतदां उनकी सुध लें और मध्यम वर्ग की हालत तो आप जानते ही हैं सैंडविच के समान हो जाती है। खैर आज की सियासत पर दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां और बात खत्म..

मस्लहत आमेज होते हैं सियासत के कदम,
तू न समझेगा सियासत, तू अभी इंसान है..।

Ram Krishna Shukla
[email protected]
cont. 7844887033

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

मेरी भी सुनो

अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाने के लिए पहले रेडियो, अखबार और टीवी एक बड़ा माध्यम था। फिर इंटरनेट आया और धीरे-धीरे उसने जबर्दस्त लोकप्रियता...

साहित्य जगत

पूरी सभा स्‍तब्‍ध। मामला ही ऐसा था। शास्‍त्रार्थ के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्रश्‍नकर्ता के साथ ऐसा अपमानजनक व्‍यवहार...

मेरी भी सुनो

सीमा पर तैनात बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव ने घटिया खाने और असुविधाओं का मुद्दा तो उठाया ही, मीडिया की अकर्मण्यता पर भी निशाना...

समाज-सरोकार

रूपेश कुमार सिंहस्वतंत्र पत्रकार झारखंड के बोकारो जिला स्थित बोकारो इस्पात संयंत्र भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का इस्पात संयंत्र है। यह संयंत्र भारत के...

Advertisement