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मीडिया कालेज से बनिये अरबपति

[caption id="attachment_2251" align="alignleft"]विनोद विप्लवविनोद विप्लव[/caption] ढिबरी चैनल का घोषणापत्र : भाग-3 : अपने फर्म की इस दुधारू शाखा को शुरू करने के लिये, सच कहा जाये तो, हमारी अंठी से एक धेला भी नहीं लगा। हालांकि दुनियावालों को पता है कि हमने इसके लिये करोड़ों रुपये फूंक डाले। इस झूठ के फैलने से इससे हमारी इज्जत भी बढ़ गयी और हमें अपने काले धन को सफेद करने में भी मदद मिल गयी। दरअसल जिस तरह से हाथी के दांत के दो तरह के दांत होते है – खाने के और दिखाने के और, ठीक उसी तरह हमारे और हमारे धंधे के दो चेहरे होते हैं – एक दुनियावालों के लिये और एक अपने और अपने जैसे धंधेबाजों के लिये।

विनोद विप्लव
विनोद विप्लव

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ढिबरी चैनल का घोषणापत्र : भाग-3 : अपने फर्म की इस दुधारू शाखा को शुरू करने के लिये, सच कहा जाये तो, हमारी अंठी से एक धेला भी नहीं लगा। हालांकि दुनियावालों को पता है कि हमने इसके लिये करोड़ों रुपये फूंक डाले। इस झूठ के फैलने से इससे हमारी इज्जत भी बढ़ गयी और हमें अपने काले धन को सफेद करने में भी मदद मिल गयी। दरअसल जिस तरह से हाथी के दांत के दो तरह के दांत होते है – खाने के और दिखाने के और, ठीक उसी तरह हमारे और हमारे धंधे के दो चेहरे होते हैं – एक दुनियावालों के लिये और एक अपने और अपने जैसे धंधेबाजों के लिये।

इसी परम्परा का पालन करते हुये हमने इस धंधे की नयी शाखा के लिये दो घोषणापत्र बनावाये थे। एक घोषणापत्र तो वह था जिसे हमने अखबारों में छपावाये थे ताकि चैनल में पैसे लगाने वालों को फंसाया जा सके जबकि असली घोषणापत्र को हमने तैयार करके बही खाता के बीच सुरक्षित रखकर गद्दी के नीचे दबाकर रख दिया ताकि जरूरत के समय इस्तेमाल में लाया जा सके। सबसे पहले हम अखबारों में छप चुके नकली घोषणापत्र और लुभावने प्रस्ताव को लेकर प्रोपर्टी डीलर से बिल्डर बने अपने एक पुराने कारिंदे के पास गये। जब हमने कई साल पहले प्रोपर्टी डीलरी का एक नया धंधा शुरू किया था तब उसे हमने दुकान की साफ-सफाई और देखरेख तथा वहां आने वाले ग्राहकों को पानी पिलाने के लिये रखा था।

बाद में वह ग्राहकों को पानी पिलाने में माहिर हो गया। धीरे-धीरे उसने ग्राहकों को फंसा कर हमारे पास लाना शुरू किया और हम उत्साह बढ़ाने के लिये उसे कुछ पैसे भी देने लगे। कुछ समय में ही वह इस काम में इतना होशियार हो गया कि उसने बाद में खुद ही प्रोपर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया। बाद में वह बिल्डर बन गया और आज उसकी गिनती देश के प्रमुख बिल्डरों में होने लगी है। उसने जब पिताजी के नाम पर टेलीविजन चैनल शुरू करने के प्रस्ताव को पढ़ा तो वह खुशी से उछल पड़ा। वह इस प्रस्ताव से इतना प्रभावित हुआ कि वह उसने खुशी-खुशी दस करोड़ रूपये टेलीविजन चैनल में निवेश करने को तैयार हो गया। उसकी केवल एक शर्त थी कि लड़कियों के चक्कर में पिछले पांच साल से बारहवी की परीक्षा में फेल हो रहे अपने एकलौते बेटे को चैनल में कोई महत्वपूर्ण पद पर नौकरी दी जाये, जिसे हमने सहर्ष स्वीकार कर लिया। बाद में हमने उसके लफंगे बेटे को इनपुट हेड का पद दिया। पैसे की उसे कोई जरूरत थी नहीं, इसलिये हमने उसके लिये कोई सैलरी तय नहीं की।

इसके बाद हम इस प्रस्ताव को लेकर अपने एक लंगोटिया यार के पास गये जो इस समय लाटरी और चिटफंड बिजनेस का टायकून माना जाता था। वह जुएबाजी में माहिर था और उसने जुए से पैसे जमा करके ‘‘वाह-वाह लॉटरी’’ नाम से एक कंपनी शुरू की। उसका यह धंधा चल निकला और उसके पास पैसे छप्पड़ फाडू तरीके से इस कदर बरस रहे हैं कि उसके यहां नगदियों के बंडलों की औकात रद्दी के बंडलों से ज्यादा नहीं रही है। वहां अगर किसी उपरी रैक से कोई कागज या कोई सामान निकालना होता है तो नगदियों के बंडलों का इस्तेमाल सीढ़ी या मेज के तौर पर किया जाता है। नगदियों के बंडलों को गिनते समय या बंडल खोलते समय जो नोट खराब निकलते हैं या फट जाते हैं उन्हें कूड़े की टोकरियों में डाल दिया जाता है और दिन भर में ऐसी कई टोकरियां भर जाती है। बाद में फटे नोटों को कूड़े के ढेर में मिला कर जला दिया जाता है। वह मेरे पिताजी का मुरीद था और उनका बहुत सम्मान करता था, क्योंकि उन्होंने ही उसे लॉटरी का ध्ंाधा शुरू करने के लिये प्रेरित किया था। जब उसने सुना कि हम पिताजी के नाम को अमर करने के लिये टेलीविजन चैनल शुरू कर रहे हैं तो उसने उसी समय नगदी नोटों के बंडलों से भरा एक ट्रक हमारे गोदाम में भिजवा दिया। जब हमने कहा कि अभी इनकी क्या जरूरत है तो उसने कहा कि ‘यह तो उसकी तरफ से पिताजी की महान स्मृति को विनम्र भेंट है। आगे जब भी पैसे की जरूरत हो केवल फोन कर देने की जरूरत भर है। वैसे भी उसके लिये उसके खुद के गोदामों में नगदी के बंडलों को असुरक्षित है, क्योंकि कभी भी सीबीआई वालों का छापा पड़ सकता है जबकि टेलीविजन चैनल के दफ्तर में नगदी के बंडलों को रखने में इस तरह का कोई खतरा नहीं है। वह चाहता है कि उसके यहां के गोदाम में जो नोटों के बंडल भरे पड़े हैं, उन्हें ट्रकों में भर कर ढिबरी न्यूज चैनल के आफिस में भिजवा देगा ताकि उन्हें वहां चैनल के दफ्तरों के दो-चार कमरों में इन नोटों को रखकर बंद कर दिया जाये।’ हमने अपने दोस्त की यह इच्छा मान ली।

उस दोस्त की एक और इच्छा थी और उसे भी हमने उसके अहसानों को देखते हुये सिरोधार्य कर लिया। असल में उसकी पत्नी को पूजा-पाठ एवं धर्म-कर्म में खूब आस्था थी। वह दिन भर बैठ कर धार्मिक चैनलों पर बाबााओं के प्रवचन सुनती रहती थी। प्रवचन सुनते-सुनते उन्हें भी आत्मा, परमात्मा, परलोक, माया-मोह, भूत-प्रेत, पुनर्जन्म आदि के बारे में काफी ज्ञान हो गया था वह मेरे दोस्त चाहता था कि उसकी पत्नी को ढिबरी चैनल पर सुबह और शाम एक-एक घंटे का कोई विशेष कार्यक्रम पेश करने को दिया जाये अथवा उन्हें किसी विषय पर प्रवचन देने का विशेष कार्यक्रम दिया जाये। इससे पत्नी खुश भी रहेगी और जब अपने मनचले पति पर हमेशा नजर रखने वाली पत्नी का ध्यान कुछ समय के लिये पति और उसके रंगारंग कार्यक्रमों से हट जायेगा ताकि उसके पति को अपनी शाम को रंगीन करने के सुअवसर मिल सके।

हमने मिलावटी दारू, दूध, दवाइयों आदि के कारोबारों में लगे अन्य व्यवसायियों से भी संपर्क किया और इन सभी ने हमें दिल खोल कर पैसे दिये। दिल्ली, मुबंई और बेंगलूर जैसे कई शहरों में कालगर्ल सप्लाई करने का कारोबार करने वाले एक अरबपति कारोबारी ने चैनल के लिये बीस करोड़ रूपये का दान किया। इसके अलावा उसने हर माह चैनल चलाने के खर्च के तौर पर पांच करोड़ रूपये देने का वायदा किया। उसने अपनी तरफ से एक छोटी इच्छा यह जतायी कि उसे हर दिन चैनल में एंकरिंग करने वाली लड़कियों में से एक लड़की को हर रात उसके यहां भेजा जाये। हमने उसे एक नहीं पांच लड़कियों को भेजने का वायदा किया ताकि वह अपने उन अरब पति ग्राहकों की इच्छाओं का भी सम्मान कर सके जो मीडिया में काम करने वाली सुंदर बालाओं के साथ रात गुजारने की हसरत रखते हैं।

इस तरह हमारे पास जब सौ करोड़ से अधिक रूपये जमा हो गये तब हम चैनल के इस प्रस्ताव को लेकर शिक्षा मंत्री के पास गये। शिक्षा मंत्री के पिता हमारे पिताजी की दारू की गुमटी पर दारू बेचने का काम करते थे। पिछले चुनाव में भी हमने अपने जाति के सारे वोट उन्हें दिलाये थे। इसलिये शिक्षा मंत्री को हमसे खास लगाव था। उन्होंने चैनल खोलने का हमारा प्रस्ताव देखा तो हमसे लिपट कर हमारे पिताजी की याद में रोने लगे। वह कहने लगे, ‘‘मैं तो आपके पिताजी के एहसानों तले इस कदर दबा हूं कि उनकी याद मै खुद पहल करके सरकार की तरफ से उनके नाम पर एक विश्वविद्यालय खोलने वाला था। अब अगर आप टेलीविजन चैनल खोल रहे हैं तो मैं आपसे कहूंगा कि आप टेलीविजन चैनल के साथ-साथ एक मीडिया एक कालेज भी खोल लें जिसका नाम ‘‘राष्ट्रीय ढिबरी मीडिया इंस्टीच्यूट एंड रिसर्च सेंटर’’ रखा जा सकता है। बाद में मैं इस कालेज को अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिला दूंगा। इससे पिताजी का नाम न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में रौशन हो जायेगा। इस कालेज के लिये मैं सरकार की तरफ से 100 एकड़ की जमीन एक रूपये प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से दिलवा दूंगा। साथ ही कालेज के भवन के निर्माण पर आने वाले खर्च का 50 प्रतिशत सरकार की तरफ से दिलवा दूंगा। आप इसी कालेज से अपना चैनल भी चलाइये। आपको करना केवल यह होगा कि इस कालेज में गरीब और एस टी-एस सी के 25 प्रतिशत बच्चों को निःशुल्क प्रशिक्षण देने के नाम पर हमारे जैसे मंत्रियों, अधिकारियों एवं नेताओं और उनके रिश्तेदारों के बच्चे-बच्चियों का दाखिला कर लिजिये जबकि बाकी के बच्चों से फीस के तौर पर ढाई-तीन लाख रूपये सालाना वसुलिये। ’’

शिक्षा मंत्री ने जो गुर बताये उसे सुनकर मेरी इच्छा हुयी कि मैं उनके पैर पर गिर पड़ू, हालांकि मुझसे वे उम्र में छोटे हैं, लेकिन उन्होंने क्या बुद्धि पायी है। वैसे ही वह इतनी कम उम्र में शिक्षा मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन नहीं हो गये। कितने तेज दिमाग के हैं। अब उनकी सफलता का राज समझ आया। आज पता चला कि ऐसे ही मंत्रियों की तीक्ष्ण बुद्धि की बदौलत ही हमारे देश ने इतनी अधिक प्रगति की है। शिक्षा मंत्री जो मंत्र सिखाया उसके आधार पर मैंने हिसाब लगाकर देखा कि आज जिस तरह से चैनलों में काम करने के लिये लड़के-लड़कियां उतावले हो रहे हैं, उसे देखते हुये पिताजी के नाम पर बनने वाले कालेज में प्रवेश लेने वालों की लाइन लग जायेगी, क्योंकि इतने हमारे कालेज और चैनल के साथ एक से एक बड़े नाम जुड़े होंगे। सभी बच्चों को सब्जबाग दिखाया जायेगा कि कोर्स पूरा होते ही उन्हें एंकर अथवा रिपोर्टर बना दिया जायेगा। अगर हर बच्चे से तीन-तीन लाख रूपये लिये जायें और पांच सौ बच्चों बच्चों को प्रवेश दिया जाये तो हर साल 15 करोड़ रूपये तो इसी तरह जमा हो जायेंगे। इस तरह एक मीडियाकालेज से ही कुछ सालों में अरबों की कमाई हो जायेगी। साथ ही साथ कैमरे आदि ढोने, सर्दी-गरमी में दौड़-धूप करने, कुर्सी-मेज और गाड़ियों की साफ-सफाई करने जैसे कामों के लिये मुफ्त में ढेर सारे लडकेे तथा चैनलों में पैसे लगाने वाले तथा अलग-अलग तरीके से मदद करने वालों की मचलती हुयी तबीयत को शांत करने के लिये मुफ्त में कमसीन लड़कियां मिल जायेंगी। कालेज में दाखिला लेने वालों में से किसी को नौकरी तो देनी नहीं है, केवल प्रलोभन ही देने हैं, क्योंकि जब पत्रकारिता स्कूल-कालेज चलाने वाले अन्य चैनलों और अखबारों के मालिक जब उनके कालेजों में पढ़ने वाले लड़के-लड़कियों को कोर्स खत्म होते ही लात मार कर निकाल देने की पावन परम्परा की स्थापना की है तो हम क्यों इस परम्परा का उल्लंघन करने का पाप लें।

…शेष भाग चार में….

लेखक विनोद विप्लव पत्रकार, कहानीकार एवं व्यंग्यकार हैं।

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1 Comment

1 Comment

  1. Rajesh Garg

    June 9, 2019 at 6:13 pm

    acha likha hai iske pehle 2 bhag kahan hain

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