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मीडिया मंथन

अश्लीलता परोसने में वेब मीडिया सबसे आगे…

अगर आपको छवि की परवाह नहीं और कम समय में पब्लिसिटी पाना चाहते हैं तो सबसे आसान रास्ता है बीच बाजार कपड़े उतारकर खड़े हो जाइये। आज का दौर कॉन्ट्रोवर्सी का दौर है। अच्छी खबरें दब जाती हैं और अश्लील खबरें जमकर परोसी जाती है। बिलकुल ऐसे ही मीडिया के तमाम माध्यमों में अश्लीलता परोसने में “वेब मीडिया” सबसे आगे है। 10 में से 8 खबरें बेडरुम, कपल, MMS और स्कैंडल की होती है। जैसे की दुनिया में जो कुछ भी है इन्हीं के बाद है। कुछ न्यूज़ पोर्टल्स तो ऐसे हैं जहां विज्ञापन भी एडल्ट चलते हैं। सच बताऊं तो उनको ओपन करते समय देखना पड़ता है आसपास कोई है तो नहीं। मानो न्यूज़ की वेब साईट न हुई एडल्ट साईट हो गई।

<p>अगर आपको छवि की परवाह नहीं और कम समय में पब्लिसिटी पाना चाहते हैं तो सबसे आसान रास्ता है बीच बाजार कपड़े उतारकर खड़े हो जाइये। आज का दौर कॉन्ट्रोवर्सी का दौर है। अच्छी खबरें दब जाती हैं और अश्लील खबरें जमकर परोसी जाती है। बिलकुल ऐसे ही मीडिया के तमाम माध्यमों में अश्लीलता परोसने में "वेब मीडिया" सबसे आगे है। 10 में से 8 खबरें बेडरुम, कपल, MMS और स्कैंडल की होती है। जैसे की दुनिया में जो कुछ भी है इन्हीं के बाद है। कुछ न्यूज़ पोर्टल्स तो ऐसे हैं जहां विज्ञापन भी एडल्ट चलते हैं। सच बताऊं तो उनको ओपन करते समय देखना पड़ता है आसपास कोई है तो नहीं। मानो न्यूज़ की वेब साईट न हुई एडल्ट साईट हो गई।</p>

अगर आपको छवि की परवाह नहीं और कम समय में पब्लिसिटी पाना चाहते हैं तो सबसे आसान रास्ता है बीच बाजार कपड़े उतारकर खड़े हो जाइये। आज का दौर कॉन्ट्रोवर्सी का दौर है। अच्छी खबरें दब जाती हैं और अश्लील खबरें जमकर परोसी जाती है। बिलकुल ऐसे ही मीडिया के तमाम माध्यमों में अश्लीलता परोसने में “वेब मीडिया” सबसे आगे है। 10 में से 8 खबरें बेडरुम, कपल, MMS और स्कैंडल की होती है। जैसे की दुनिया में जो कुछ भी है इन्हीं के बाद है। कुछ न्यूज़ पोर्टल्स तो ऐसे हैं जहां विज्ञापन भी एडल्ट चलते हैं। सच बताऊं तो उनको ओपन करते समय देखना पड़ता है आसपास कोई है तो नहीं। मानो न्यूज़ की वेब साईट न हुई एडल्ट साईट हो गई।

पत्रकारिता जगत में वेब जर्नलिज्म की भूमिका देखकर मुझे कभी-कभी यह महसूस होता है। कि वो उस भटके हुये बच्चे की तरह है। जिसकी जेब नोटों से भरी है लेकिन उसके पेरेंट्स पूछते भी नहीं कि वो उन नोटों को खर्च कहां कर रहा है। वेब मीडिया के पास भी अपार खबरें होती है लेकिन वो ज्यादा से ज्यादा सिडक्टिव या सीधे शब्दों में अश्लील ख़बरें ही परोसता है। और लम्बे समय से परोस रहा है मतलब कोई मॉनिटरिंग ही नहीं है।

अब सवाल यह कि क्या कोई इस माध्यम को मॉनिटर नहीं करता? क्या कोई यह नहीं देखता की अन्य माध्यमों में हम जितने तेज, सच्चे, सटीक खबर देने वाले बनते हैं उन सब दावों को उनका ही वेब मीडिया गठरी बनाकर समुन्दर में हर रोज बहाता है। बहरहाल आपको बता दूं कि वेब जर्नलिज्म में भी पूरी टीम होती है। रिपोर्टर, खबर एडिट करने वाला और सम्पादक भी। लेकिन यह सब होते एक ही मानसिकता के हैं। क्योंकि इन्हें बिठाया ही इसीलिए गया है। अगर आप कुछ बदलाव लायेंगे या यह समझाने की कोशिश करेंगे कि न्यूज़ पोर्टल्स कोई पोर्न साईट नहीं है। तो शायद आप काम ही नहीं कर पायेंगे।

बहरहाल लाईक/हिट्स की बढ़ती भूख ने वेब जर्नलिज्म की रेंज भी बढ़ाई है। अब सोशल मीडिया के जरिये भी आप खबरों से अपडेटेड रहते हैं। यही नहीं कुछ संस्थान व्हाट्सअप ग्रुप्स में जुड़कर भी खबरें पोस्ट करवा रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उसकी वेब साईट पर जायें और उनको हिट्स मिलें। लेकिन इन तमाम माध्यमों से जुड़ने के बाद भी वेब जर्नलिज्म आपको परोसेगा अश्लीलता ही। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सोशल मीडिया बच्चे यूज कर रहे हैं या बड़े। व्हाट्सअप ग्रुप में बच्चे है, महिलायें हैं या बुजुर्ग है। उसे तो बस मतलब है पब्लिसिटी से। लेकिन इसके लिए उसने जो रास्ता, जो तरीका अख्तियार किया है क्या वो सही है?

आशीष चौकसे
पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक और ब्लॉगर
[email protected]

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