वीओआई न्यूज चैनल के सीनियर प्रोड्यूसर अशोक उपाध्याय जी नहीं रहे. श्रद्धांजलियों का दौर जारी है. लेकिन इन सबके बीच एक सवाल मुंह बाए खड़ा है कि क्या अशोक जी की मौत स्वाभाविक थी? चिकित्सा विज्ञान की भाषा में अशोक जी की मौत हार्ट-अटैक से हुई है, लेकिन क्या सच यही है? हम उन कारणों पर विचार क्यों नहीं कर रहे हैं जिनके चलते अशोक जी जैसे धीर, गंभीर, मृदुभाषी और संवेदनशील पत्रकार को असमय ही काल के गाल में समा जाना पड़ा. आभारी हूं यशवंत जी का, जो अशोकजी की मौत के लिए मीडिया समूहों में भेड़ की खाल में घुस आये भेड़ियों को जिम्मेदार मानते हैं. पैसे के बलबूते चैनल-चैनल का खेल खेलने वाले लालाओं ने अशोक जी को लील लिया, लेकिन क्या यह दौर अब रुक जायेगा? जी नहीं, हम सभी अशोक जी की ही तरह इन लालाओं के क्रूर हाथों के शिकार हैं. देश में कई ऐसे वीओआई ब्यूरो हैं, जिनका वेतन, पीऍफ़, टीडीएस और ब्यूरो खर्च का लाखों रुपया वीओआई प्रबंधन ने डकार लिया.
उन्हें बेरोजगार कर अभिशप्त जिन्दगी जीने को मजबूर कर दिया. भगवान् न करें, लेकिन अगर इनमें से किसी और के साथ भी अशोक जी जैसा ही हादसा होता है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा? हम बुद्धिजीवी पत्रकार फिर श्रद्धांजलि के दो शब्द अर्पित कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेंगे और अपने काम में जुट जायेंगे. आखिर क्यों? क्यों दुनिया भर में हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले हम पत्रकार खुद को ही शोषण से नहीं बचा पा रहे हैं? हमें शिकायत है पत्रकारिता में उच्च पदों पर बैठे उन मूर्धन्य पत्रकारों से, जो बखूबी जानते हैं कि उनकी लेखनी और आवाज जब चाहे शासन-सत्ता की नींद हराम कर सकती है और पत्रकारिता की गंगा को मैली होने से बचा सकती है, लेकिन अशोक जी की मौत पर वे भी महज च..च..च…च… कर संतोष कर लेते हैं. मीडिया में इन दिनों हरियाणा के एक पूर्व डीजीपी के चलते आत्महत्या को मजबूर हुई एक लडकी रुचिका का मामला सुर्ख़ियों में है, अगर पूर्व डीजीपी को इस कृत्य के लिए जिम्मेदार मानते हुए हम कठोर सजा की मांग करते हैं तो वही मांग वीओआई प्रबंधन के खिलाफ क्यों नहीं?
लेखक यशवीर सिंह टीवी जर्नलिस्ट हैं और वाराणसी में कार्यरत हैं.