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87 साल के बुजुर्ग ने दी पटकनी!

गिरीश जी: प. बंगाल, केरल में माकपा की चुनावी गणित के अंतर्द्वंद्व : वैसे तो किसी भी चुनाव से पहले सीटों को लेकर आपसी उखाड़-पछाड़ या फिर सहयोगी पार्टियों से तालमेल में सीटों की संख्या को लेकर विवाद होना आम बात है. विवाद, वार्ता, संतुलन, समन्वय, सहमति-ये सब लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शुमार हैं. लेकिन मजे का नजारा केरल और पश्चिम बंगाल में देखने को मिल रहा है और वो भी दर्शन, विचार, जनआकांक्षा और जनसंघर्ष की बात करने वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी कि माकपा के अंदरूनी संघर्ष में. एक ओर पश्चिम बंगाल में अब तक मुख्यमंत्री रहे बुद्धदेव भट्टाचार्य की अगुवाई में लेफ्ट सक्रिय हो गया है तो केरल में मुख्यमंत्री रहे वीएस अच्युतानंदन को चुनावी परिदृश्य से हटाने के लिए पिछले कई दिनों से जबरदस्त ड्रामा चलता रहा, लेकिन 87 साल का यह बुजुर्ग मैदान से हटने को तैयार नहीं है.

गिरीश जी

गिरीश जी: प. बंगाल, केरल में माकपा की चुनावी गणित के अंतर्द्वंद्व : वैसे तो किसी भी चुनाव से पहले सीटों को लेकर आपसी उखाड़-पछाड़ या फिर सहयोगी पार्टियों से तालमेल में सीटों की संख्या को लेकर विवाद होना आम बात है. विवाद, वार्ता, संतुलन, समन्वय, सहमति-ये सब लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शुमार हैं. लेकिन मजे का नजारा केरल और पश्चिम बंगाल में देखने को मिल रहा है और वो भी दर्शन, विचार, जनआकांक्षा और जनसंघर्ष की बात करने वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी कि माकपा के अंदरूनी संघर्ष में. एक ओर पश्चिम बंगाल में अब तक मुख्यमंत्री रहे बुद्धदेव भट्टाचार्य की अगुवाई में लेफ्ट सक्रिय हो गया है तो केरल में मुख्यमंत्री रहे वीएस अच्युतानंदन को चुनावी परिदृश्य से हटाने के लिए पिछले कई दिनों से जबरदस्त ड्रामा चलता रहा, लेकिन 87 साल का यह बुजुर्ग मैदान से हटने को तैयार नहीं है.

वीएस.अच्युतानंदन को टिकट न देने का फैसला भी पार्टी महासचिव प्रकाश करात की तिरुअनंतपुरम में मौजूदगी के बीच केरल के माकपा सचिवालय और राज्य समिति ने कर लिया. दिलचस्प तो ये है कि ऐसा तब हुआ जबकि अभी एक हफ्ते पूर्व के सर्वे में यह पाया गया कि केरल के सर्वाधिक जनप्रिय नेताओं में वीएस प्रमुख हैं. फैसला यह भी किया गया कि वीएस कैबिनेट में गृहमंत्री रहे कोडियरी बालाकृष्णन माकपा का चुनावी चेहरा होंगे. सभी जानते हैं कि वीएस के धुर विरोधी पिनाराई विजयन खेमे के बालाकृष्णन प्रमुख स्तंभ हैं और विजयन को महासचिव करात का ‘मूक’ आशीर्वाद हासिल है.

लेकिन दो दिन पहले जैसे ही वीएस का टिकट कटा तो पूरे केरल में 2006 की तरह इन्हीं स्थितियों में भारी विरोध प्रदर्शन को देखते हुए फिर से वीएस को टिकट देने की घोषणा कर दी गई. तो क्या पार्टी अपने भविष्‍य को लेकर डर गई? या उसे वीएस और उनके समर्थकों के विरोध की आशंका ने पुनर्विचार के लिए प्रेरित किया? या फिर वीएस ड्रामे का असर उस सबसे बड़े जाति समूह ‘इझावा’ पर पड़ने की आशंका ने भयभीत कर दिया -जिस जाति से वीएस आते हैं? बहरहाल जो भी हो, मजे की बात तो यह है कि एक ओर पार्टी महासचिव प्रकाश करात की मौजूदगी में टिकट कटता है तो उसके बाद दूसरी ओर दिल्ली में पार्टी पोलितब्यूरो की बैठक में वीएस को टिकट देने का जब फैसला होता है तो वीएस समर्थकों में सीताराम येचुरी के अलावा प्रकाश करात की पत्नी वृंदा करात का नाम भी शामिल रहता है. इसे क्या माना जाए, नियोजित राजनीति या कुछ और? यह सवाल अहम तब हो जाता है, जब विचारधारा पर जोर देने वाली पार्टी खुद को कांग्रेस जैसी मध्यमार्गी पार्टियों से अलग बताते नहीं थकती.

दिलचस्प तो यह है कि व्यक्ति और व्यक्ति समूहों का संघर्ष जब संगठन में इतना प्रभावी हो जाए कि उसे खुद दांव पर लगे अपने ‘कल’ की चिंता न हो तो इसे क्या कहा जाए. यह सही है कि केरल और पश्चिम बंगाल में दो साल पहले संसदीय चुनावों में मिली हार से उसके सांसदों की संख्या लोकसभा में 43 से घट कर 16 हो गई और फिर उसके बाद स्थानीय निकाय चुनावों में भी दोनों ही जगह माकपा की अगुवाई वाली लेफ्ट सरकार को नुकसान ही उठाना पड़ा है. लेकिन प. बंगाल में बुद्धदेव भट्टाचार्य जहां एक ओर 35 साल के अनवरत शासन को हाथ से फिसलने से रोकने के लिए गलतियों में सुधार की बात कर रहे हैं. 294 सदस्यीय विधानसभा सीटों के लिए डेढ़ सौ नए चेहरों की तलाश करते हैं. नब्बे से ज्यादा पुराने सदस्यों के टिकट काटे जाते हैं, जिनमें नौ मंत्री भी शामिल होते हैं तो साथ ही हिंसा और आपराधिक गतिविधियों के आरोपी माकपा के बाहुबलियां जैसे लक्ष्मण सेठ, लगनदेव सिंह, माजिद मास्टर को भी टिकट नहीं दिया जाता. इनमें चार हत्याओं के आरोपी माजिद मास्टर को दो दिन पहले गिरफ्तार भी किया जाता है.

मजे की बात है कि बुद्धदेव घोटालों, अकर्मण्यता जैसे आरोपों में फंसे अनेक मंत्रियों – विधायकों को जहां अपनी चुनावी सेना से अलग कर रहे हैं, वहीं उनके पर्यटन मंत्री मानब मुखर्जी पर लगे आरोपों में से एक आरोप ये भी है कि उन्होंने सरकारी फंड से 22 हजार रुपए का एक चश्मा खरीदा है. नंदीग्राम, झारग्राम, सालबोनी, खनकुल, नानूर, मंगोलकोट जैसे हिंसा प्रभावित इलाकों के माकपा प्रत्याशियों को भी बदला गया है. लेकिन इन सब प्रयासों के साथ ही बुद्धदेव ये डर भी दर्शाते हैं कि यदि माओवादी आ गए तो वे हम सबको मार डालेंगे. कोई नहीं बचेगा. और ये माओवादी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को आक्सीजन दे रहे हैं. यानी कि त्रुटियों में सुधार का आश्वासन देते हुए डरी हुई मानसिकता के बीच हाथ से फिसलती बागडोर को बचाने की कोशिश. इसे  पार्टी का समर्थन भी हासिल है.

लेकिन ऐसा केरल में वीएस के साथ नहीं है. यहां व्यक्तियों और उनके समर्थकों का संघर्ष प्रभावी है. घर के अंदर ही जबरदस्त तोड़फोड़ और मारामारी है. लेकिन मजे की बात यही है कि 87 साल के बूढ़े वीएस. ने सभी को चित कर दिया है. दरअसल, इस बुजुर्ग की ताकत है उसकी साफगोई, भ्रष्टाचार और सेक्स स्कैंडलों के खिलाफ जिस तरह से वीएस ने लंबा संघर्ष चलाया है, निश्चित रूप से इससे उनकी छवि एक साफ-सुथरे नेता की बनी है. लेकिन यही वजह उनके गले की फांस भी बनी है. पार्टी में उनके विरोधियों को इसने एकजुट भी किया है. तभी तो उन्हें नीचा दिखाने के लिए विजयन गुट ने राज्य स्तर पर पार्टी की शीर्ष बैठकों में उनका टिकट ही नहीं कटवाया, चुनाव में नेतृत्व की बागडोर भी खुद वीएस कैबिनेट में गृहमंत्री रहे बालाकृष्णन को सौंप दी. वैसे उत्‍तरी केरल में बालाकृष्णन प्रभावशाली जरूर हैं. लेकिन प्रसिद्धि और लोकप्रियता के मामले में वो वीएस के आगे कहीं नहीं ठहरते.

वैसे विरोधी लॉबी ने चतुराई भी दिखाने की कोशिश की है. वीएस का टिकट जहां इस आधार पर कटा कि वो पार्टी निर्णयों की अनदेखी करते हैं और उन्हें पूर्व में पार्टी की अनुशासनिक कार्रवाई जैसे निलंबन इत्यादि का शिकार होना पड़ा है. वहीं पार्टी ने वीएस के साथ ही उनके धुर विरोधी विजयन को भी टिकट नहीं दिया. शायद यह संतुलन की छद्म कोशिश ही ज्यादा थी. लेकिन यह भुला दिया गया कि लोकतंत्र में तंत्र कैसा भी हो, उसकी व्यवस्था जो भी हो, निर्णायक तो ‘लोक’ ही होता है. और यहां भी वही हुआ.

वैसे तंत्र ने ‘लोक’ की उपेक्षा में कोर-कसर रखी हो, ऐसा नहीं रहा. तभी तो जब 2006 में भी वीएस को ऐसे ही अपमानित किया गया था, तब भी जनता ने पूरे राज्य में भारी जनप्रदर्शन करके विरोध जताया था. इसके बाद माकपा ने उन्हें टिकट दिया था – नतीजा हुआ था कि वीएस ने राज्य की 140 में से 100 सीटों पर जीत हासिल करके अपनी ताकत का अहसास कराया था. कहा जाता है कि ‘दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता हैं’, लेकिन यहां तो उनके विरोधियों को शायद फिर से सबक सीखना बाकी था. जहां तक तर्क की बात है तो विरोधियों के इस तर्क में दम है कि वीएस यदि इतने ही दमदार और लोकप्रिय हैं तो फिर 2009 के संसदीय चुनाव में और हाल के स्थानीय निकाय चुनावों में लेफ्ट की हार क्यों हुई? और वैसे भी एक सामान्य परंपरा यह बताई जाती है कि केरल में माकपा नेतृत्व में एलडीएफ और कांग्रेस नेतृत्व की यूडीएफ के बीच हर पांच साल में सत्‍ता बदल होता ही है, ऐसे में वीएस फैक्टर का असर कितना निर्णायक हो सकता है? इससे कोई बड़ा बदलाव तो नहीं हो जाएगा. निश्चित रूप से इन तर्कों में दम हो सकता है. तो दूसरी ओर वामपंथी खेमे के ये तर्क भी मौजूं हैं कि केंद्र की यूपीए सरकार जहां घोटालों और महंगाई के आरोपों में फंसी है और उस पर लगातार जिस तरह से उंगलियां उठ रही हैं, उसका फायदा चुनावों में हासिल किया जा सकता है.

ठीक है कि लेफ्ट का मुख्य जनाधार मुस्लिम और ईसाई तबके आज पूरी तरह साथ नहीं हैं. खास कर प. बंगाल में, जहां सच्चर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में मुसलमानों की स्थिति दूसरे राज्यों के मुसलमानों से काफी खराब है. इसी तरह केरल में ईसाई तबका सरकार की शिक्षा नीति से बेइंतिहा नाराज है. लेकिन इसके बावजूद वीएस. की भ्रष्टाचार विरोधी साफसुथरी छवि का गहरा असर केरल में मौजूद है, जहां उन्होंने घोटालों और सेक्स स्कैंडलों से संबद्ध और उन्हें प्रश्रय देने वाले दूसरी पार्टी के नेताओं और उनसे जुड़े तबकों को ही सीखचों के पीछे नहीं पहुंचाया है, बल्कि अपनी पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं के चहेतों को भी कटघरे में खड़ा किया है. शायद यही उनकी पूंजी भी है. लेकिन इसी ने उनके विरोधियों को भी एकजुट किया है. फिलहाल तो इन सारी स्थितियों को देखते हुए लेफ्ट को उनकी अगुवाई में चुनावी संग्राम पर विचार करना चाहिए, क्योंकि आज भी ये बुजुर्ग सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में एक है.

लेखक गिरीश मिश्र वरिष्ठ पत्रकार हैं. इन दिनों वे लोकमत समाचार, नागपुर के संपादक हैं. उनका ये लिखा लोकमत में प्रकाशित हो चुका है, वहीं से साभार लेकर इसे यहां प्रकाशित किया गया है. गिरीश से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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