क्या अमेरिका के 9/11 और मुंबई के 26/11 की तरह ही पिछले हफ्ते पाकिस्तान के कराची में 22/05 का हमला था? यह सवाल पाकिस्तान और पश्चिमी दुनिया के अखबारों में इस समय प्रमुखता से उठ रहा है. वैसे पिछली दो मई को ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी सैनिकों द्वारा खोज कर मारे जाने के ठीक बीस दिनों बाद कराची के मेहरान स्थित नौसेना केंद्र पर हुए इस भीषण आतंकी हमले को दुनिया बहुत गंभीरता से ले रही है. हालांकि इसमें मरने वालों की संख्या सिर्फ 14 है, लेकिन इसे पाकिस्तान के इतिहास में अपने ढंग का ऐसा पहला हमला माना जा रहा है, जिसकी तुलना 9/11 और 26/11 से की जा रही है. अंतर सिर्फ यह है कि वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के 9/11 और मुंबई के 26/11 में जहां अंतर्राष्ट्रीय आतंकियों ने आम नागरिकों को अपना निशाना बनाया था. वहीं 22/05 को तालिबानियों ने आम नागरिकों की जान लेने की जगह पाकिस्तान सरकार और उसके सबसे बडे़ सैन्य केंद्रों में से एक को नुकसान पहुंचाना चाहा है और करोड़ों अमेरिकी डॉलर यानी कि अरबों की सैन्य सम्पत्ति को क्षति पहुंचाई है.
वैसे बात सिर्फ इतनी भर होती तब भी पेशानी पर चिंता की इतनी लकीरें न होती, क्योंकि प्रमुख सैन्य केंद्रों में से एक रावलपिंडी पर भी जिहादी हमला 2009 में हो चुका है और 2007 में भी लाल मस्जिद पर ऐसा ही हुआ था, लेकिन ऐबटाबाद के बाद इस बार तो न केवल पाकी खुफिया संगठनों की पोल पूरी तरह से खुल गई है बल्कि आईएसआई समेत सेना की भी आतंकियों से मिलीभगत का खुलासा हुआ है. इस बार दुनिया भर के देशों की परेशानी का खास कारण यह है कि मेहरान से महज 15-16 किलोमीटर की दूरी पर मसरूर एयर बेस है, जहां पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का जखीरा है. गौरतलब है कि अमेरिका, रूस, चीन के बाद बडे़ परमाणु हथियारों के जखीरे के केंद्र के रूप में मसरूर को भी शामिल किया जाता है.
ऐसे में सवाल अब यह भी उठ रहा है कि क्या पाकिस्तान के परमाणु हथियार सुरक्षित हाथों में हैं? या फिर वे आतंकियों की पहुंच से बाहर नहीं हैं? अब चिंतित करने वाले सवाल ये भी हैं कि यदि पाकिस्तान के प्रमुख परमाणु हथियारों के केंद्र के इतने पास चंद आतंकी 17 घंटे तक अनवरत डेढ़ हजार पाक सुरक्षाकर्मियों, कमांडों और विशेष बलों से लोहा ले सकते हैं, तो इसके संकेत क्या हैं? क्या इससे पाकिस्तान के पूर्व एयर वाइस मार्शल शहजाद चौधरी की आशंका सच साबित नहीं होती कि बिना सेना में अंदर की मदद के यह हमला हो ही नहीं सकता था, और वो भी लगातार 17 घंटे तक? आतंकियों को किसने बताया कि मेहरान में पांच अत्याधुनिक अमेरिकी पी-3 सी ओरिएन विमान कहां हैं जो आतंकियों से निपटने के लिए मिली एफ-16 की खेप के अलावा हैं, जिनसे समुद्र में और तटों पर आतंकी गतिविधियों पर नियंत्रण और पनडुब्बियों एवं जहाज की निगरानी का काम सहजता से होता था? तो क्या पाक की इस क्षमता की कमर तोड़ने के लिए इन विमानों को निशाना बनाया गया?
शहजाद चौधरी ने चिंता जताई है कि आतंकी आखिर मेहरान के नौसेना केंद्र में रॉकेट लांचर और अन्य अत्याधुनिक हथियारों के साथ पहुंचे कैसे – उन्होंने ये बात ऐबटाबाद की घटना के बाद तालिबान द्वारा बदला लेने की घोषणा के संदर्भ में हुई सुरक्षा तैयारी के संदर्भ में कही. गौर करने की बात यह है कि कराची के इसी केंद्र की बसों पर पिछले महीने भी दो बार आतंकी हमले हुए थे, लेकिन फिर भी सुरक्षा व्यवस्था में चूक रही. दूसरी ओर खुफिया तंत्र की हालिया विफलता को भी क्रमवार गिनाया जा रहा है – पहले बिन लादेन का सैन्य केंद्र के बगल अनेक वर्षों से रहने की जानकारी न होना, फिर अमेरिकी हमले का अहसास तक न होना, उसके बाद मेहरान केंद्र पर हमले और तीन दिन बाद फिर पेशावर में बारूद से भरी सेना की टन्क को उड़ा देना, जिसमें दस लोगों की जान भी गई. इसे बड़ी विफलता के साथ ही यह भी माना जा रहा है कि आईएसआई और सेना के अंदर कुछ तबकों की मिलीभगत के बिना ये संभव नहीं है, लेकिन पाकिस्तान सरकार ने ऐसी किसी भी मिलीभगत से इनकार किया है. वैसे यह इनकार स्वाभाविक इसलिए है क्योंकि ऐसी किसी छोटी सी स्वीकारोक्ति से यह भी साबित होगा कि सेना भी जिहादी आतंकियों से मिली हुई है.
लेकिन जिस समय ये घटनाएं पिछले दिनों हुई हैं, ठीक उसी समय पाकी मूल के अमेरिकी नागरिक डेविड कोलमैन हेडली ने शिकागो में अदालत में बयान दिया है कि ’26/11 के बारे में पाक सरकार को जानकारी थी और इस आतंकी हमले में आईएसआई ने लश्कर-ए-तैयबा की मदद की थी’. हमले की साजिश में अपनी भूमिका स्वीकार कर चुके हेडली ने अपने साथी पाकी मूल के कनाडाई नागरिक तहव्वुर हुसैन राणा के मामले में गवाही के दौरान शिकागो की जिला अदालत में यह बात कही. हेडली ने यह भी कहा कि लश्कर के प्रमुख लोगों और आईएसआई तथा सेना के अधिकारियों से निरंतर मुलाकातें होती रही हैं. इसके अलावा आईएसआई आतंकियों को पैसे, प्रशिक्षण और नैतिक मदद भी हर स्तर पर प्रदान कर रही है. उसकी डायरी में सेना के उन अफसरों के फोन नंबर भी दर्ज हैं, जो 26/11 के हमले में लगातार आतंकियों को निर्देश दे रहे थे. अब जहां हेडली के खुलासे से भारत को आस बंधी है कि यही बात वो लगातार कहता रहा है और अब दूसरे देश की अदालत में भी इसका खुलासा हुआ है, वहीं इस्लामाबाद ने हेडली के आरोपों से इनकार करते हुए उसे डबल एजेंट करार दिया है. बहरहाल, दिल्ली इस मसले को अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की आगामी यात्रा के दौरान उठाने वाला है. यह खुलासा भी हुआ है कि भारत के परमाणु केंद्र और दिल्ली स्थित नेशनल डिफेंस कॉलेज भी आतंकियों की हिट लिस्ट में थे और उनका इरादा यह था कि वहां पर हमले से भारत को उतना नुकसान पहुंचाया जाए जितना कि पाक से पिछले कई युद्धों में भी नहीं हुआ था.
लेकिन हेडली के इन खुलासों के साथ ही पाक के झूठ की कलई तब भी खुली जब कई अंतर्विरोधी बयान सामने आए. गौर करें- मेहरान में आतंकी हमले की जो एफआईआर लेफ्टि. इरफान असगर ने लिखाई, उसमें 10-12 आतंकियों द्वारा हमले का जिक्र है. लेकिन फिर दूसरे दिन पाक के आंतरिक मंत्री रहमान मलिक ने प्रेस कान्फ्रेंस में आतंकियों की संख्या को सिर्फ छह बताया. मलिक ने कहा कि छह आतंकियों के हमलों में 10 सुरक्षाकर्मी मारे गए और 15 घायल हुए, जबकि चार आतंकी मारे गए और दो भाग निकले. उधर, पाक नेवी चीफ एडमिरल नोमान बशीर ने 12 से 15 आतंकियों की बात कही. गौरतलब ये है कि 17 घंटे तक चली आतंकियों के साथ 1500 पाक सुरक्षाकर्मियों, कमांडों और विशेष सैनिकों की इस गोलीबारी ऑपरेशन की टीवी चैनलों में लगातार खबरें भी आती रहीं, जिनमें बताया गया कि चार आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया गया है और चार को गिरफ्तार कर लिया गया है. ऐसे में सवाल यही उठता है कि आतंकियों की संख्या को लेकर इतना अंतर क्यों है? टीवी चैनलों की संख्या को अलग भी कर दें तो भी अधिकारिक बयानों में विरोधाभास क्या ये खुलासा नहीं करते कि कहीं कुछ गड़बड़ है? तो क्या कुछ आतंकियों को गुपचुप तरीके से छोड़ दिया गया या उनकी गिरफ्तारी को छुपाया गया? ऐसा सरकारी स्तर पर क्यों प्रचारित किया गया कि मरने वाले पाकिस्तानी नहीं लग रहे थे, उनकी वेशभूषा और रंग पश्चिमी देशों के लोगों जैसा था?
गौर करने की बात ये है कि ऐसे ही अंतर्विरोधी बयान तब भी आए थे जब लादेन मारा गया था. लादेन का छोटा बेटा हमजा कैसे गायब हुआ? पाकी राडारों से अमेरिकी हेलिकाप्टरों को पकड़ने में चूक कैसे हुई? सेना के मुख्यालय के बगल लादेन इतने दिनों तक कैसे रहता रहा? तब भी पाक के झूठ का पर्दाफाश खुद उसके ही अंतर्विरोधी बयानों से हुआ था और आज भी वही हो रहा है. दरअसल, वाशिंगटन और बीजिंग की सैन्य मदद से पाक में जिहादी लंबे समय से तैयार हो रहे हैं और सभी जानते हैं कि उनके निशाने पर पड़ोसी देश भारत और अफगानिस्तान रहे हैं. लेकिन पहली बार दुनिया के सामने पाक के परमाणु हथियारों की सुरक्षा का सवाल प्रमुखता से उठा है. यह सवाल ‘डॉन’ में प्रकाशित विकीलिक्स के नए खुलासे से और भी महत्वपूर्ण हो गया है जिसमें पाकिस्तान में पूर्व अमेरिकी राजदूत ऐन पीटरसन के हवाले से कहा गया है कि ‘बिन लादेन के मारे जाने के बाद इस्लामाबाद में अमेरिका के खिलाफ घृणा का माहौल बनाया जा रहा है. वहां नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी में वाशिंगटन के खिलाफ सैन्यकर्मियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. डर है कि पाक सैनिक अफसर जिहादियों को तैयार कर रहे हैं.’ दरअसल, पाकिस्तान की परेशानी और द्वंद्व भी यही है कि जिससे अरबों की मदद ले रहा है, उसी की मुखालिफत भी कर रहा है. जिस आतंक से लड़ने का दावा करता है, उसी को पाल-पोस भी रहा है. लेकिन अब बात सिर्फ पाक की ही नहीं है, दुनिया को परमाणु हथियारों के खतरे की भी है, या कहें कि आशंका इनके आतंकियों के हाथ में जाने की है, इसीलिए अब 22/05 को विश्व ऐसे ही नहीं जाने देना चाहता….
लेखक गिरीश मिश्र लोकमत समाचार के संपादक हैं. उनका यह लिखा लोकमत समाचार में प्रकाशित हो चुका है, वहीं से साभार लेकर इसे यहां प्रकाशित किया गया है.