मकर-संक्रांति के मौके पर बहुत लोग नीरस और तनावपूर्ण जीवन से कुछ सुकून पाने हेतु पटना में गंगा के उस पार अर्थात् दियारे तरफ गए थे। जश्न मनाकर लौटते वक्त जो दर्दनाक हादसा हुआ ये कोई अप्रत्याशित नहीं था। आज समाज और प्रशासन का जैसा रवैया है उसमें तो ये होना ही था और अगर नियमों को सख्ती से नहीं लागू किया गया तो भविष्य में फिर इस तरह की घटनाएं होती रहेगी। घटना के बाद इस पर आरोप-प्रत्यारोप होगा, जाँच बिठाया जायेगा, कार्रवाई की मांग होगी; कारवाई होगी नहीं और हादसे में पीड़ित का पैसा डकार लिया जायेगा या इसका बंदरबांट हो जायेगा, फिर ये मामला चर्चा से भी गायब हो जायेगा। यही तो रवैया है इस समाज का और प्रशासन का।
इस घटना के कई निहितार्थ हैं। इसके लिए सबसे पहले जिम्मेवार जिला प्रशासन है। ड्यूटी पर तैनात लोग कर क्या रहे थे? लिमिट से ज्यादा लोगों को रोकने या नहीं जाने देने के लिए पुलिस तैनात थी या नहीं। तैनात थे तो वे गिनती कर क्यों नहीं रहे थे? नाव को परमिट कैसे दिया गया जब नाव दुरुस्त थी ही नहीं। कहीं चेक करने की आड़ में वसूली का धंधा तो नहीं हो रहा था? तैनात मजिस्ट्रेट कहाँ थे? इन सारे सवालों के लिए अधिकृत जिला प्रशासन, प्रमंडलीय प्रशासन, नगर प्रशासन और राज्य प्रशासन है। त्वरित कारवाई कर दोषी पुलिसकर्मी, मजिस्ट्रेट, एसपी, डीएम या अन्य जो भी दोषी है कड़ी कार्रवाई होनी चाहिये।
और, अब सब से महत्वपूर्ण सवाल? लड़के-लड़कियां घर से बाहर पढाई के लिए जाती है या वासना मिटाने के लिए? पढाई के नाम पर क्या-क्या करती है? कॉलेज और कोचिंग में पढाई छोड़कर लड़के लड़कियों के साथ और लड़कियां लड़कों के साथ क्या करने जाती है? निश्चित तौर पर पढाई के लिए तो नहीं ही जाती है। देह प्रदर्शन का दौर चल रहा है? गंगा उस पार की भीड़ के चरित्र को देखिये, तो पता चलेगा कि बच्चे या बूढ़े नगण्य ही रहते हैं और अश्लील हरकत करते, छिछोरापन को प्रदर्शित करते छोकरे-छोकरियाँ ज्याद। अकेलेपन से अधिक बच्चे-बुजुर्ग गुजर रहे हैं तो ये छिछले वहां क्या करते है। ये लोग नाव पर ही चूमा-चाटी में लग गए होंगे और नाविक का ध्यान भटक होगा और ये घटना हो गया होगा, इसकी प्रबल संभावना है।
आज पार्कों में, सड़कों पर, कॉलेज में जो दृश्य दीखता है वहां शर्म के कारण नजरें झुकी पड़ती है। इसके लिए नैतिक पतन और को-एजुकेशन जिम्मेवार है। नियमों का सख्ती से पालन हो और गन्दी हरकतें करने वाले छिछोरों-छिछोरियों को चौराहे पर जिन्दा जल देना चाहिए। अब यही एक और एकमात्र उपाय बचा है।
सुभाष सिंह यादव
स्वतंत्र पत्रकार
पटना
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