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नक्शे पर बिहार राज्य और बिहारी प्रेस

बिहार का स्थापना दिवस 22 मार्च को दिल्ली में धूमधाम से मनाया गया। बिहार को उड़ीसा से पृथक राज्य बनाने का नोटिफिकेशन तो इसी दिन जारी कर दिया गया था, लेकिन यह लागू 1 अप्रैल 1912 से हुआ था। यानि देश के नक्शे पर बिहार इसी दिन एक पृथक प्रांत के रूप में अवतरित हुआ था। इससे पहले बिहार बंगाल का एक उपेक्षित प्रदेश था। ब्रिटिश शासनकाल में जब बंगाल का महत्व बढ़ा, तो बिहार का गौरव जाता रहा। बिहार बंगाल के साथ जुड़ा एक भू-भाग मात्र बन कर रह गया था। शिक्षा, सार्वजनिक सेवाओं में स्थान, सामाजिक प्रतिष्ठा, साहित्यिक वातावरण तथा व्यापारिक एवं प्रशासनिक सभी दृष्टि से बिहारियों को हमेशा अपमानित होना पड़ता था।

<p>बिहार का स्थापना दिवस 22 मार्च को दिल्ली में धूमधाम से मनाया गया। बिहार को उड़ीसा से पृथक राज्य बनाने का नोटिफिकेशन तो इसी दिन जारी कर दिया गया था, लेकिन यह लागू 1 अप्रैल 1912 से हुआ था। यानि देश के नक्शे पर बिहार इसी दिन एक पृथक प्रांत के रूप में अवतरित हुआ था। इससे पहले बिहार बंगाल का एक उपेक्षित प्रदेश था। ब्रिटिश शासनकाल में जब बंगाल का महत्व बढ़ा, तो बिहार का गौरव जाता रहा। बिहार बंगाल के साथ जुड़ा एक भू-भाग मात्र बन कर रह गया था। शिक्षा, सार्वजनिक सेवाओं में स्थान, सामाजिक प्रतिष्ठा, साहित्यिक वातावरण तथा व्यापारिक एवं प्रशासनिक सभी दृष्टि से बिहारियों को हमेशा अपमानित होना पड़ता था।</p>

बिहार का स्थापना दिवस 22 मार्च को दिल्ली में धूमधाम से मनाया गया। बिहार को उड़ीसा से पृथक राज्य बनाने का नोटिफिकेशन तो इसी दिन जारी कर दिया गया था, लेकिन यह लागू 1 अप्रैल 1912 से हुआ था। यानि देश के नक्शे पर बिहार इसी दिन एक पृथक प्रांत के रूप में अवतरित हुआ था। इससे पहले बिहार बंगाल का एक उपेक्षित प्रदेश था। ब्रिटिश शासनकाल में जब बंगाल का महत्व बढ़ा, तो बिहार का गौरव जाता रहा। बिहार बंगाल के साथ जुड़ा एक भू-भाग मात्र बन कर रह गया था। शिक्षा, सार्वजनिक सेवाओं में स्थान, सामाजिक प्रतिष्ठा, साहित्यिक वातावरण तथा व्यापारिक एवं प्रशासनिक सभी दृष्टि से बिहारियों को हमेशा अपमानित होना पड़ता था।

अपमान के इस कटु अनुभव का सबसे सटीक वर्णन सच्चिदानंद सिन्हा के उन शब्दों से प्राप्त होता है, जिसे उन्होंने इंग्लैण्ड में अपने अध्ययन काल के दौरान पाया था। उन्होंने लिखा है कि ब्रिटेन में कुछ भारतीय मित्र साहित्यिक चर्चा के लिए ललकारते हुए मुझसे इस बात पर अड़ गए कि भूगोल की किसी भी मान्यता प्राप्त पुस्तक में ‘बिहार’ प्रांत को दिखाओ। सच्चिदानंद सिन्हा पहले बिहारी थे, जिन्होंने इस अस्तित्वहीन बिहार की वास्तविक स्थिति को इतने तीव्र रूप में समझा था। तभी से उन्होंने बिहार को बंगाल से स्वतंत्र कराने को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया और इसके लिए उन्होंने सबसे बड़ा अस्त्र बनाया प्रेस को।

बिहार में पहला वर्नाकुलर प्रेस उर्दू में 1810 में ही शुरू हो चुका था। साप्ताहिक पत्र ‘उर्दू अखबार’ के नाम से कलकत्ता से प्रकाशित होता था। इसके संपादक मौलवी अकरम अली थे। फिर 1853 में आरा से ‘नूर-अल-अनवर’  नामक अखबार प्रकाशित हुआ। इसके संपादक सैय्यद मुहमद हाशिम थे। बिहार की भूमि से प्रकाशित होने वाला संभवत: यह पहला अखबार था।

बिहारी प्रेस के इतिहास में 1872 का वर्ष सबसे महत्वपूर्ण है। 1872 में बिहार में पहला हिंदी और अंग्रेजी अखबार प्रकाशित हुआ। पटना के नामी वकील गुरु प्रसाद सेन, शालिग्राम सिंह और गोविंद चरण के सहयोग से 1872 में ‘बिहार हेराल्ड’ नामक अंग्रेजी अखबार निकाला, जिसके संपादक स्वयं सेन थे। 1872 में ही सबसे पहला हिंदी अखबार ‘बिहार बंधु’ निकला। दो वर्षों तक यह कलकत्ता से प्रकाशित होता रहा। इसे निकालने का श्रेय मराठी ब्राह्मण पंडित केशव राम भट्ट तथा उनके छोटे भाई पंडित मदन मोहन भट्ट को है। इसके प्रथम संपादक मुंशी हसन अली थे।

किंतु जब 1894 में सच्चिदानंद सिन्हा और महेश नारायण ने अंग्रेजी में ‘बिहार टाइम्स’ निकाला तो बिहार की पत्रकारिता में एक नई क्रांति आई। इसके संपादक महेश नारायण (1859-1907) थे। थोड़े समय के लिए यह अखबार भागलपुर से भी प्रकाशित हुआ। किन्तु बाद में स्थायी रूप से इसे पटना ले जाया गया। इस अखबार ने कलकत्ता के अमृत बाजार पत्रिका, द बंगाली, संजीवनी तथा हितवादी से टक्कर लिया था।

19वीं शताब्दी के 70 के दशक में मुंगेर से एक उर्दू अखबार निकलता था ‘मर्ध-ए-सुलेमान’। इसी अखबार ने सबसे पहले ‘बिहार बिहारियों के लिए’ का नारा दिया। पृथक बिहार की मांग को बिहार के बाहर प्रकाशित होने वाले अखबारों एवं पत्रिकाओं ने भी जायज करा दिया। सर हेनरी कॉटन ‘कलकत्ता रिव्यू’ के संपादक, पाल केनिथ ‘स्टेट्समैन’ के संपादक तथा गंगा प्रसाद वर्मा ‘एडवोकेट’ (लखनऊ) के संपादक ने बिहार के पृथककरण के सिद्घांत को जायत ठहराते हुए अनेक संपादकीय लिखे। इस दिशा में इलाहाबाद के ‘पॉयनियर’ (सायं अखबार) की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही थी। पॉयनियर ने हमेशा बिहारियों का समर्थन किया था।

अखबारों द्वारा बिहार को अलग करने की मांग जोर पकड़ती गई। ‘बिहार बंधु’ ने काम-काज की भाषा को हिंदी में करने पर जोर दिया। जब बिहार के अखबारों ने अलग बिहार प्रांत की आवाज उठाई तो बंगाल के अखबारों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। उसी दौरान बंगाल के गवर्नर सर एगिले इडन ने एक सर्कुलर जारी कर यह कहा कि बिहार में नौकरियों में बिहारियों को ही प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इससे प्रभावित होकर बिहार के अखबारों ने अपनी मांग को और भी तेज कर दिया।

19वीं शताब्दी के अंतिम चरण में जब ‘द बिहार टाइम्स’ का उदय हुआ, तो पृथक बिहार की मांग को एक नया रूप दिया गया। महेश नारायण और सच्चिदानंद सिन्हा ने बिहार की हीन अवस्था के हर पक्ष को ‘बिहार टाइम्स’ के द्वारा उजागर किया। लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन की घोषणा 1905 में की तो यह अलग बिहार का आंदोलन और भी तीव्र हो गया था। 1908 में पहली बार प्रांतीय कांग्रेस का गठन सोनपुर में सरफराज नमाज की अध्यक्षता में हुआ तो वहां भी पृथकता की लहर देखी गई। क्योंकि प्रांतीय कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन 1908, पटना (अध्यक्ष- सर अली इमाम), दूसरा अधिवेशन 1909, भागलपुर (अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा), तीसरा अधिवेशन 1910, मुजफ्फरपुर (अध्यक्ष दीप नारायण सिंह) तथा चौथा अधिवेशन 1911, गया (अध्यक्ष मजहरुल हक) सबों ने पृथक बिहार की मांग की थी। 1911  आते-आते बिहार के अखबारों ने देश में ऐसा वातावरण बना दिया था कि सारे बड़े राजनीतिक नेता अलग बिहार के औचित्य को स्वीकार करने लगे थे।

दिसंबर 1911 में दिल्ली दरबार लगा। दिल्ली एक बार फिर मुगलों के दिनों की भांति सुशोभित हो रही थी। किन्तु इस समय ब्रिटिश सम्राट का दरबार लगा था। ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम ने भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली बनाने की घोषणा की और साथ में यह भी घोषणा की गई कि बिहार और उड़ीसा को बंगाल से अलग करके पृथक प्रांत बनाया जाएगा। 1 अप्रैल 1912 के दिन इस घोषणा को कानून मान्यता मिलने के साथ ही आधुनिक बिहार के नए युग का आरंभ हुआ।

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लेखक डा. संदीप ठाकुर दिल्ली से प्रकाशित अखबार ‘हमारा महानगर’ के मेट्रो एडिटर हैं.

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