Connect with us

Hi, what are you looking for?

तेरा-मेरा कोना

लोक सूचना अधिकारियों पर दस हजार रुपए का जुर्माना

महाराष्ट्र सूचना आयोग ने एक मामले की सुनवाई के बाद नंदुरबार जिला प्रशासन के दो लोक सूचना अधिकारियों पर 9,750 रुपए का जुर्माना लगाया है। मामला कुछ ऐसा है कि सरदार सरोवर बांध से प्रभावित आदिवासी सियाराम सिंगा ने जिला प्रशासन से सूचनाएं मांगने के लिए जो आवेदन दिया था उसे लोक सूचना अधिकारियों ने गंभीरता से नहीं लिया और सूचना देने में बेवजह देरी बरती। इसके बाद नर्मदा बचाओं आंदोलन की अगुवाई में प्रशासन की इस कार्यप्रणाली के खिलाफ राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया गया। आयोग ने दोनों पक्षों के साथ बैठकर सुनवाई की और अपने आदेश में लोक सूचना अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए उन्हें आर्थिक दण्ड दिया।

महाराष्ट्र सूचना आयोग ने एक मामले की सुनवाई के बाद नंदुरबार जिला प्रशासन के दो लोक सूचना अधिकारियों पर 9,750 रुपए का जुर्माना लगाया है। मामला कुछ ऐसा है कि सरदार सरोवर बांध से प्रभावित आदिवासी सियाराम सिंगा ने जिला प्रशासन से सूचनाएं मांगने के लिए जो आवेदन दिया था उसे लोक सूचना अधिकारियों ने गंभीरता से नहीं लिया और सूचना देने में बेवजह देरी बरती। इसके बाद नर्मदा बचाओं आंदोलन की अगुवाई में प्रशासन की इस कार्यप्रणाली के खिलाफ राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया गया। आयोग ने दोनों पक्षों के साथ बैठकर सुनवाई की और अपने आदेश में लोक सूचना अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए उन्हें आर्थिक दण्ड दिया।

यह किस्सा नंदुरबार जिले में अक्कालकुंआ तहसील के डेनेल गांव का है, जहां नरेगा के तहत कुदावीडुंगर से हिरापाड़ा तक एक सड़क बनायी जा रही है। सियाराम सिंगा ने अपने आवेदन में इस सड़क योजना की मंजूरी, उदघाटन, प्रकाशन पटल, मजदूरों की संख्या, हाजिरी रजिस्टर और नामांकन रजिस्टर से जुड़ी सूचनाएं मांगी थीं। उन्होंने 11 मई, 2009 को अपना आवेदन लोक सूचना अधिकारी, लोक निर्माण विभाग, मोलगी को दिया था। 15 मई, 2009 को पहला जवाब आया जो बहुत ही सीमित, अधूरा और भ्रामक था। इसके बाद जुलाई 2009 की 6, 14 और 27 तारीखों में विभागीय अपील प्राधिकारी के साथ कागजी सिलसिला तो चला मगर सूचनाओं के पते-ठिकाने का कोई ओर-छोर नहीं मिला। इसे देखते हुए 22 अगस्त, 2009 को राज्य सूचना अधिकारी के नाम से दूसरी अपील दाखिल की गई। हालांकि 5 सितम्बर, 2009 को कुछ सूचनाएं दी भी गईं जो एक बार फिर से अधूरी, झूठी और गुमराह करने वाली ही थीं। दिलचस्प यह है कि सूचना देने वाले कागजातों में बाकायदा यह लिखा हुआ था कि मस्टर रोल नहीं दिया जाएगा क्योंकि वह वेबसाइट पर उपलब्ध है। यह कथन अपने आप में दिलचस्प इसलिए है क्योंकि यहां के ग्रामीण और आदिवासी इलाके का  लोक सूचना अधिकारी पहले से ही यह मान बैठा है कि हर एक आवेदक के पास कम्प्यूटर होगा ही और उसे कम्प्यूटर के साथ-साथ बखूबी इंटरनेट चलाना भी आता होगा!!

इस मामले में 8 दिसम्बर, 2009 वह तारीख थी जिसमें आयोग के सामने सुनवाई शुरू हुई। इस दौरान महाराष्ट्र के मुख्य सूचना आयुक्त सुरेश जोशी के सामने आवेदक और लोक सूचना अधिकारी हाजिर हुए। तब आवेदक के पक्ष में नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता एडवोकेट योगनी कानोलकर ने मुख्य सूचना आयुक्त सुरेश वी जोशीबतलाया कि सूचना देने की यह पूरी प्रक्रिया किस तरह से गैरकानूनी और जानबूझकर उलझाने वाली है। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद आयोग ने पाया कि लोक सूचना अधिकारियों की ओर से सूचना देने में कुल 39 दिनों की देरी हुई है। इसलिए 24 दिसम्बर, 2009 को आयोग ने अपने आदेश में दोनों अधिकारियों पर 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से कुल 9,750 (250×39) रूपए का जुर्माना लगाया। मतलब अब दोनों को अपनी-अपनी जेब से 4,895-4,895 (आधे-आधे) रुपए देने पड़ेंगे। आदेश में आगे कहा गया है कि यह रकम दोनों लोक सूचना अधिकारियों को जनवरी, 2010 में मिलने वाली सेलरी से बसूल की जाए और इसी के साथ 15 फरवरी, 2010 तक राज्य सूचना आयोग के समक्ष जुर्माना भरे जाने की पुष्टि भी की जाए।

नर्मदा बचाओ आंदोलन ने आयोग के इस आदेश का स्वागत किया है। आंदोलन का मानना है कि नंदुरबार जैसे जिलों में, जहां लोक निर्माण कार्यों में होने वाली घूसखोरी पर नियंत्रण नहीं है, वहां अधिकारियों पर इस तरह की कार्रवाई से आमजनता में अच्छा संदेश पहुंचेगा। वैसे भी नरेगा जैसी परियोजना में बड़े पैमाने पर जो घूसखोरी व्याप्त है वो जगजाहिर है, लिहाजा आयोग द्वारा सुनाई गई यह सजा अपनेआप में खास महत्व रखती है।

इस मामले की अगर थोड़ी और पड़ताल की जाए तो महाराष्ट्र सूचना आयोग के आदेश पर थोड़ा और सोचा-विचारा जा सकता है। पहले विचार के मुताबिक, सूचना आयुक्त कानून में मौजूद अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए उचित मुआवजे के निर्देश भी दे सकते थे। ऐसा इसलिए भी क्योंकि आवेदक सियाराम सिंगा गरीबी रेखा के नीचे आने वाले उस आदिवासी परिवार से हैं जिसे बेवजह ही शारारिक और मानसिक परेशानियों से गुजरना पड़ा है। दूसरे विचार के मुताबिक, मई से लेकर अब तक मतलब कई महीनों के बीत जाने तक आवेदक को सूचनाएं देने के मामले में गुमराह किया जाता रहा है, इस हिसाब से लोक सूचना अधिकारियों पर 9,750 रुपए का जुर्माना तो बेहद मामूली है। कायदे से यह जुर्माना 25,000 रुपए के आसपास होना चाहिए था। तीसरे विचार के मुताबिक, आदेश में गुमराह करने वाले ऐसे अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई भी जरूरी थी। इससे सभी  लोक सूचना अधिकारियों को यह सबक तो मिलता कि उन्हें आवेदकों तक बगैर किसी देरी के सही, सटीक और पर्याप्त सूचनाएं पहुंचानी है।

लेखक शिरीष खरे पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं.

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

मेरी भी सुनो

अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाने के लिए पहले रेडियो, अखबार और टीवी एक बड़ा माध्यम था। फिर इंटरनेट आया और धीरे-धीरे उसने जबर्दस्त लोकप्रियता...

साहित्य जगत

पूरी सभा स्‍तब्‍ध। मामला ही ऐसा था। शास्‍त्रार्थ के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्रश्‍नकर्ता के साथ ऐसा अपमानजनक व्‍यवहार...

मेरी भी सुनो

सीमा पर तैनात बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव ने घटिया खाने और असुविधाओं का मुद्दा तो उठाया ही, मीडिया की अकर्मण्यता पर भी निशाना...

समाज-सरोकार

रूपेश कुमार सिंहस्वतंत्र पत्रकार झारखंड के बोकारो जिला स्थित बोकारो इस्पात संयंत्र भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का इस्पात संयंत्र है। यह संयंत्र भारत के...

Advertisement