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तेरा-मेरा कोना

आम जीवन में संभोग को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां हैं!

सतीश सिंह आज भी भारत में सेक्स को वर्जना की तरह देखा जाता है। जबकि हमारे देश में खजुराहो से लेकर वात्सायन के कामसूत्र जैसी कृतियों में सेक्स के हर पहलू पर रोशनी डाली गई है। स्वस्थ व सुखी जीवन के लिए संयमित सेक्स को उपयोगी बताया गया है। सेक्स का स्थान जीवन में पहला तो नहीं कह सकते हैं। पर इसका स्थान गेहूं के बाद पर गुलाब के साथ जरुर है। सेक्स शरीर की एक जरुरत है और साथ ही इंसान के जीवन चक्र को जारी रखने वाला जरिया भी। आम जीवन में सेक्स को लेकर बहुत सारी भ्रांतियाँ हैं। जानकारी के अभाव में, परिस्थितियों के कारण या फिर मनोविकार के कारण इंसान बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करके सामाजिक बहिष्कार का पात्र बन जाता है। बलात्कार आज भारत में सबसे ज्वलंत मुद्दा है। बावजूद इसके इस समस्या के तह में जाने का कभी प्रयास नहीं किया गया है।

सतीश सिंह

सतीश सिंह आज भी भारत में सेक्स को वर्जना की तरह देखा जाता है। जबकि हमारे देश में खजुराहो से लेकर वात्सायन के कामसूत्र जैसी कृतियों में सेक्स के हर पहलू पर रोशनी डाली गई है। स्वस्थ व सुखी जीवन के लिए संयमित सेक्स को उपयोगी बताया गया है। सेक्स का स्थान जीवन में पहला तो नहीं कह सकते हैं। पर इसका स्थान गेहूं के बाद पर गुलाब के साथ जरुर है। सेक्स शरीर की एक जरुरत है और साथ ही इंसान के जीवन चक्र को जारी रखने वाला जरिया भी। आम जीवन में सेक्स को लेकर बहुत सारी भ्रांतियाँ हैं। जानकारी के अभाव में, परिस्थितियों के कारण या फिर मनोविकार के कारण इंसान बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करके सामाजिक बहिष्कार का पात्र बन जाता है। बलात्कार आज भारत में सबसे ज्वलंत मुद्दा है। बावजूद इसके इस समस्या के तह में जाने का कभी प्रयास नहीं किया गया है।

आज भी स्कूलों व कॉलेजों में सेक्स शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। किसी-किसी स्कूल में सेक्स शिक्षा को लागू किया गया है। किंतु उसको अमलीजामा अभी तक कागजों पर पहनाया जा रहा है। आमतौर पर सेक्स को घर में गुनाह के तौर पर देखा जाता है। माता-पिता अपने बच्चों को यौन संबंधित जानकारी देने से परहेज करते हैं। हालांकि इंसान की फितरत वर्जित माने जाने वाले विषयों के बारे में जानकारी हासिल करने की जिज्ञासा सबसे उत्कट होती है। मानसिक स्तर पर वैचारिक मतांतर की वजह से बच्चा अश्‍लील साहित्य पढ़ने का या साइबर सेक्स का आदी हो जाता है। इस क्रम में कुछ बच्चे मनोविकृति के शिकार हो जाते हैं। मनोविकार से ग्रसित बच्चे बाद में जाकर बलात्कार जैसे क्रूर व घिनौने जुर्म को अंजाम देते हैं। दरअसल सामाजिक सोच में टकराव के कारण युवक व युवतियों के बीच सेक्स के लिए आपसी सहमति बन ही नहीं पाती है। वैसे अब दूसरी वजहों से सहमति के इक्का-दुक्का मामले हमारे सामने आ रहे हैं। गाँवों में हालत और भी खराब हैं। वहाँ गाली या अपशब्द के आदान-प्रदान के दरम्यान पूरे कामसूत्र की झांकी आपको मिल सकती है। परन्तु उस कामसूत्र में मनोविकृति ज्यादा होती है। इसका दूसरा पहलू यह है कि गाँवों में नारी को महज वस्तु माना जाता है। आपसी दुश्‍मनी निकालने के लिए भी औरत को निशाना बनाया जाता है।

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि तकरीबन 3 से 5 फीसदी लोगों में सेक्स नशा की तरह होता है। ऐसे लोगों को सेक्सोहॉलिक कहा जाता है। यह नशा शराब, जुआ या फिर ड्रग्स के माफिक होता है। अभी हाल में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का यह बयान आया था कि सेक्स अभी भी उनके जीवन का अहम हिस्सा है। मशहूर गोल्फर टाइगर बुडस के विवाहोपरांत दूसरी स्त्रियों से संबंध रहे हैं। हॉलीवुड के अभिनेता डेविड डुकोवनी ने सार्वजनिक रुप से माना है कि वे सेक्सोहॉलिक हैं और वे 2008 से पुर्नवास केन्द्र में सेक्स विसंगति का ईलाज करवा रहे हैं। अमेरिका में कांगेस के प्रतिनिधि एंथोनी वीनर के सेक्सोहॉलिक होने के कारण ही अपने पद से हाथ धोना पड़ा। सच कहा जाए तो भारत में सेक्स के प्रति दीवानगी अधिक है। अपितु भारत में खुला समाज नहीं है। इस देश में सेक्स स्कैण्डल अक्सर दबा दिये जाते हैं। फिर भी बहुत सारे सेक्स स्कैण्डल मीडिया की सक्रियता से दब नहीं पाते हैं। अभी कुछ दिनों पहले फिल्म स्टार शाइनी आहूजा बलात्कार के आरोप के कारण सुर्खियों में थे। उनपर अपनी नौकरानी के साथ बलात्कार करने का आरोप था।

आंध्रप्रदेश के पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ कांगेस नेता नारायण दत्त तिवारी को सेक्स स्कैण्डल के कारण 2009 में अपने पद से हाथ धोना पड़ा था। सेक्स से ही जुड़े दूसरे मामले में रोहित शेखर नाम के एक नौजवान ने दावा किया है कि नारायण दत तिवारी उसके पिता हैं। दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी जानबूझकर नारायण दत तिवारी डीएनए टेस्ट करवाने से कतरा रहे हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान पर अभिनेत्री से राजनीतिज्ञ बनी जयाप्रदा की तथाकथित नंगी तस्वीरों का वितरण आम जनता के बीच करवाने का आरोप लगा था। उत्तर प्रदेश के पूर्व काबीना मंत्री अमरमणि त्रिपाठी पर 2003 में अपनी प्रेमिका मधुमिता शुक्ला के कत्ल का आरोप लगा था। बाद में अदालत में यह साबित भी हो गया और अब मंत्री महोदय जेल में सजा काट रहे हैं। उल्लेखनीय है कि मधुमिता शुक्ला मरने के समय गर्भवती थी। 1982 में पटना में बॉबी का कत्ल हुआ था। वह सचिवालय में काम करती थी। उसके कत्ल के पीछे तत्कालिक मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के नेतृत्व वाली सरकार के कबीना मंत्रियों का हाथ बताया गया था। पटना में ही 1999 में शिल्पी जैन और गौतम सिंह ने संदेहास्पद तरीके से या तथाकथित तौर पर आत्महत्या किया था। किन्तु लोगों का मानना है कि यह घटना आत्महत्या के बजाए कत्ल था और यह राजद के कुछ वरिष्ठ नेताओं की करतूत थी।

1978 में जब बाबू जगजीवन राम जनता पार्टी के शासनकाल के दौरान रक्षा मंत्री थे तब उनके 46 वर्षीय पुत्र की तस्वीर दिल्ली कॉलेज की एक 21 वर्षीय छात्रा सुषमा चौधरी के साथ तब की एक पत्रिका ‘सूर्या’  में प्रकाशित हुई थी। कहा जाता है कि उस सेक्स स्कैण्डल के कारण ही श्री राम देश के पहले दलित प्रधानमंत्री बनने से वंचित रह गए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उड़ीसा के पूर्व मुख्यमंत्री जेवी पटनायक पर 1998 में दो सरकारी मुलाजिमों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। महाराष्ट्र के जलगाँव में चल रहे सेक्स रैकेट में राजनीतिज्ञ, नौकरशाह व कॉरपोरेट जगत की संलिप्तता थी। 1994 में भंडाफोड़ हुए इस स्कैण्डल में 300 से लेकर 500 तक लड़कियाँ शामिल थीं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि अधिकांश लड़कियाँ सकूल जाने वाली थीं और उनका संबंध अच्छे घरों से था। 1997 में मुस्लिम लीग के वरिष्ठ नेता पी के कुंजालिकुट्टु उत्तरी केरल में आईसक्रीम पार्लर के माध्यम से वेश्‍यालय चलाते हुए पकड़े गए थे। यदि भारत के सिर्फ नामचीन लोगों से जुड़े हुए सेक्स कांड की चर्चा की जाए इसकी फेहरिस्त बेहद लंबी हो जाएगी। लब्बोलुबाव के रुप में कहा जा सकता है कि भारत में इस तरह के सेक्स स्कैण्डलों की भरमार है।

पश्चिमी देशों की तरह हमारे देश में खुलकर सेक्स पर परिचर्चा आयोजित नहीं की जाती है। विदेशों में स्त्री एवं पुरुष आपसी सहमति से सेक्स का आनंद लेते हैं। खुलापन से युक्त सामाजिक संरचना के कारण बलात्कार जैसे मामले वहाँ कम प्रकाश में आते हैं। भारत में एक जमाने से सेक्स को टैबु के रुप में देखा जाता रहा है। पर इसी भारत में वैसे लोग रहते हैं जो अपने घर की कुंवारी कन्याओं का हमल गिरवाने में संकोच नहीं करते हैं, लेकिन इसके साथ ही साथ घर के बाहर जाकर निर्बंध समाज के प्रति बड़ी आसानी से घृणा का इजहार भी कर देते हैं। मेरा मत खुले सेक्स की वकालत करना नहीं है। पर आम आदमी के मन में सेक्स के प्रति समझ तो होनी ही चाहिए और उन्हें दोहरा चरित्र जीने की बजाए यौन जनित भावनाओं पर नियंत्रण रखने के लिए अपनी मानसिक क्षमता का विकास करना चाहिए। ताकि सामाजिक शुचिता की संकल्पना का विखंडन नहीं हो। इस संदर्भ में हम भी पश्चिमी देशों की तरह पुनर्वास केन्दों की मदद से सेक्स जनित विसंगतियों पर काबू पा सकते हैं।

लेखक सतीश सिंह स्टेट बैंक समूह में एक अधिकारी के रुप में दिल्ली में कार्यरत हैं और स्वतंत्र लेखन करते हैं. सतीश से [email protected]  या 09650182778 के जरिए संपर्क किया जा सकता है.

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