चला गया दरबारी और सूना हो गया राग दरबार

श्रीलाल शुक्ल जी के निधन से एक युग का अंत हो गया है। वह युग जो भारतेंदु से प्रारंभ और व्यंग्य लेखन के शीर्ष तक पहुंचा। उन्होंने ऐसी खिड़की बनाई जिससे भारत का सच्चा रूप देखा जा सकता था। गांव-शहर के बीच के सम्बन्ध पर ऐसी तस्वीर किसी और उपन्यास में नहीं जैसा राग दरबारी में है। रूप में विद्रूप का यह स्वरूप ‘राग दरबारी’ की एक महाकाव्यात्मक उपलब्धि है, जो अपने प्रथम अनुच्छेद से ही बांध लेता है.. हमारे ट्रक हमारी सड़कों से कैसा सलूक करते हुए गुजरते हैं। और उस ट्रक में जो युवा है वह संजय के समान कस्बे में बदलते गांव की तस्वीर बांचते चले गये।