टुच्ची पत्रकारिता से कब तौबा करेंगे भास्कर डाट काम वाले?

Mohammad Anas : पहले वो स्नान करती महिलाओं की तस्वीर उतार कर 'संगम में हो रही मस्ती' जैसी हेडलाइन चिपकातें हैं और जब उन्हें उनकी भूल और गलती जो उन्होंने पूरे होशोहवास में की होती है, उससे वाकिफ़ कराया जाता है तो वो गलती नहीं मानते, और जब प्रशासन उनके किये की उन्हें कड़ी सज़ा देने की बात करता है तब वो महिलाओं की तस्वीर तो हटा लेते हैं पर वो लाइन नहीं हटाते, जिसमें धर्म और अध्यात्म के संगम की गलत छवि बनायी जा रही होती है, और उसकी जगह साधु-महात्मा की तस्वीरें डाल दी जाती हैं… क्या यह मीडिया में कार्यरत दबंग, लम्मट और रसूखदार संपादको की हठधर्मिता की पराकाष्ठा नहीं है? क्या यह सरोकारी पत्रकारिता के साथ अन्याय नहीं है? क्या यह धर्म की सहिषुणता के साथ खेलना नहीं हुआ?