जब पूरी दिल्ली दीपावली के मौके पर पटाखों, मिठाइयों, तोहफों के दायरे में असली-नकली खुशियों को पाने के लिए करोड़ों रुपए बरबाद कर रही थी, ठीक उसी समय एक बूढ़ी मां पुष्पा, जिसकी उम्र 62 साल है और जो हिंदुस्तान की धार्मिक नगरी वाराणसी की रहने वाली हैं, अपने बेटों की तलाश में दिल्ली में कदम रखती है. और कदम रखते ही दर्द की एक ऐसी कहानी शुरू होती है, जो देश के राजधानी की व्यवस्था पर सवाल तो खड़े करती ही है साथ ही साथ मानवता और इंसानियत के शिखर पर पहुंचने का दावा करने वाले हम हिंदुस्तानियों के उपर एक ऐसा कलंक लगाती है, जिसके अंधकार को धाने के लिए पावन दीप पर्व और करोड़ों रुपए के पटाखों की रोशनी भी शायद कम पड़ जाए.