आधा जोधपुर गहलोत का!

राजनीति में आरोपों का सिलसिला कोई नया नहीं है। लेकिन आरोप जब रिश्तेदारी निभाने को लेकर उछाले जाने लगें, और सामने आदमी का नाम जब अशोक गहलोत हो तो मामला कुछ ज्यादा ही भारी हो जाता है। वैसे, रिश्तेदारी का भी अपना अलग ही मायाजाल है। रिश्तों के बिना जिंदगी आसान नहीं होती। लेकिन लोग रिश्तेदारी को जी का जंजाल भी बना देते हैं। खासकर राजनीति में तो बहुत दूर की रिश्तेदारी भी आफत बनकर उभरती है। हमारे सीएम अशोक गहलोत इस तथ्य को और तथ्य में छुपे सत्य को पता नहीं जीवन के किस मोड़ पर बहुत अच्छी तरह समझ गए थे। इसीलिए रिश्तेदारी और रिश्तेदारों से शुरू से ही वे थोड़ी दूरी पर ही मिलते रहे।

बजट से मारा, अब पेट्रोल से जलाया, और डीजल अभी बाकी है मेरे दोस्त

महंगाई पता नहीं हमें कहां ले जाएगी। आमदनी घट रही है। महंगी बढ़ रही है। सरकार कह रही है कि हर एक को आधार कार्ड जरूरी है। लेकिन हालात देखकर अपना मानना है कि आधार नहीं उधार कार्ड जरूरी है। आप जब तक यह पढ़ रहे होंगे, महंगाई और बढ़ चुकी होगी। सरकार ने अपने लुभावने लगनेवाले बजट के घाटे को कम करने का इंतजाम कर दिया है। पहले बजट से तेल निकाला। अब वह तेल से कमाई निकालेगी। दो दिन पहले बजट में जो महंगाई बढ़ाई गई थी, उससे भी ज्यादा महंगाई पेट्रोल के भाव बढ़ाकर बढ़ाई है। 

आपने तो हमारे अर्थशास्त्र की ऐसी की तैसी कर दी सरदारजी!

हमारे देश का बजट आने वाला है। कहने को भले ही सरदार मनमोहन सिंह पीएम हैं और पी चिदंबरम हमारे वित्त मंत्री। लेकिन सरकार बहुत सारे दलों के बावजूद कांग्रेस की है और श्रीमती सोनिया गांधी उसकी वास्तविक मुखिया है। वह जितना कहती है उतना ही होता है। न उससे कम, न ज्यादा। किसी की औकात नहीं है कि सोनिया गांधी जैसा कहें, वैसा न करे। उनकी बात मानना मजबूरी जैसा है। इसीलिए लोग इंतजार कर रहे हैं कि इस बार के बजट में देश के लिए तो होगा ही, महिलाओं के लिए भी बहुत कुछ होगा।

मकसद हंगामा करने का नहीं था, पर वह तो हो गया बंसल साहब!

रेल बजट पेश हो गया। अपने जीवन का पहला और इस सरकार का अंतिम रेल बजट पेश करते समय रेल मंत्री पवन बंसल ने लोकसभा में कहा तो था कि हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,… पर सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी तथा विपक्षी दलों ने भारी हंगामा किया। हंगामे के कारण रेल मंत्री अपना बजट भाषण भी पूरा नहीं पढ़ पाए। अब चर्चा होगी। बहसबाजी भी होगी। और पास भी हो जाएगा। लेकिन सवाल ये है कि क्या रेलवे की हालत सुधरेगी।

सैक्सी सिंघवी की सियासत और कुकर्म के कलंक का दाग

बम फटे हैदराबाद में और दिल्ली में दुकान सजाने लग गए अभिषेक मनु सिंघवी। वैसे, सिंघवी खुद तो किस ‘काम’ के काबिल हैं, यह उनके दफ्तर की दीवारें और वहां के सीसीटीवी कैमरे के अलावा, एक बेबस महिला वकील के साथ मुंह काला करते हुए सिंघवी को देखनेवाला सारा देश अच्छी तरह जानता है। लेकिन फिर भी सिंघवी देश के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे की काबिलियत पर सवाल उठा रहे है। हैदराबाद में बम फटने के बाद सिंघवी ने कहा कि जब देश के गृह मंत्री का प्रमोशन उनकी कार्यक्षमता के बजाए वफादारी के बूते पर हुआ है तो ऐसे में उनसे क्या अपेक्षा की जा सकती है।

कटघरे में काटजू, पद की गरिमा और प्रेस कौंसिल की औकात

जस्टिस मार्कंडेय काटजू एक बार फिर खबरों में हैं। और बीजेपी भड़की हुई है। काटजू ने एक लेख लिखा। उसमें कहा कि गोधरा में क्या हुआ था, अभी भी यह एक रहस्य है। काटजू ने मुसलमानों को निशाना बनाने और लोगों को जान से मारने की कार्रवाई की हिटलर से तुलना की। वे यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि दंगों में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई हाथ नहीं था। उन्होंने मोदी के विकास के दावों को भी ख़ारिज किया। लेख में उन्होंने अंत में अपील की थी कि लोग अपने वोट डालते समय ख़्याल रखें नहीं तो वे भी वहीं ग़लती करेंगे जो जर्मनी की जनता ने हिटलर को जिताकर की थी। कांग्रेस और उसके समर्थकों ने काटजू की पीठ थपथपाई और जमकर तारीफ की।

गहलोत की धार, कटारिया की कटार और वसुंधरा के वार

राजस्थान विधानसभा का सत्र शुरू हो गया है। सीएम अशोक गहलोत अदम्य साहस के साथ खड़े हैं। सरकार सधी हुई है। बचाव की मुद्रा में नहीं है, लेकिन हाथ में ढाल है। ढाल इसलिए, क्योंकि सरकारें हमारी माई बाप हुआ करती हैं और लोकतंत्र के माई बापों के हाथों में तलवारें शोभा नहीं देती। मगर, विपक्ष के हाथ में तलवार है और वार भी। बहुत सारे लोगों के हाथों में बहुत सारी तलवारें। एक एक के हाथ में अनेक तलवारें। कहीं आपस में ही न लड़ मरें। हमारे देश में और हर प्रदेश में हर बार, संसद और विधान सभाओं में जैसा भी माहौल होता है, वैसा ही जयपुर में भी है। लेकिन थोड़ा सा अलग। वसुंधरा राजे प्रदेश बीजेपी की मुखिया बन गई है और गुलाब चंद कटारिया विपक्ष के नेता। बाहर से सब कुछ ठीक ठाक। लेकिन अंदर घमासान। फुल। कोई किसी का मुंह भी देखना नहीं चाहता।

अरे कोई इस राहुल भैया को राजनीति सिखाओ भाई… !

हरीश रावत अचानक बहुत खुश हैं। वैसे तो, रावत जितने बड़े आदमी हैं, उत्तराखंड में उससे भी बड़े नेता हैं। केंद्र में मंत्री भी हैं। राहुल गांधी के करीबी हैं और सोनियाजी भी उनको पसंद करती है। कांग्रेस में उनकी चलती है। रावत की जिंदगी में खुश होने के सारे साधन मौजूद हैं। लेकिन फिर भी आजकल अचानक ज्यादा खुश क्यों?

दिल्ली आकर देश के दिल में बैठेंगे मोदी?

नरेंद्र मोदी दिल्ली आ रहे हैं। देश ने, आपने–हमने और खासकर कांग्रेस ने मोदी को इस मुकाम पर ला दिया है कि अब उनके पास दिल्ली आने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा है। वक्त आ गया है कि गुजरात से बाहर निकलें। वहीं रहे, तो जितने हैं, उससे बड़े नहीं होंगे। हालांकि देश के पीएम की कुर्सी पर बैठे होने के बावजूद अपने सरदारजी की गुजरात के सीएम मोदी के सामने कोई बहुत बड़ी  राजनीतिक औकात नहीं है। मोदी का कद इतना बड़ा हो गया है कि गुजरात के फ्रेम की साइज से उनकी तस्वीर बाहर निकलने लगी है। अब वे दिल्ली आएंगे। और देश की राजनीति में छाएंगे तो कांग्रेस को डर है कि मोदी बहुत कुछ अपने साथ बहा ले जाएंगे।

कांग्रेस में कमजोर कड़ियों को कसने की कवायद शुरू

राजस्थान में विधानसभा चुनाव सर पर है। कांग्रेस ने तैयारी कर ली है। सीएम अशोक गहलोत कमर कस चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिलकर बहुत सारे कामों की इजाजत एक साथ ले ली है। अब थोड़ी सी तेजी आनेवाली है। सवाल सिर्फ राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता फिर से लाने का नहीं है। निशाना केंद्र की सरकार में फिर से आने पर भी है। यानी पहले प्रदेश, फिर पूरा देश। इसीलिए हर स्तर पर कांग्रेस की कमजोर कड़ियों को कसने की कवायद शुरू हो गई है। साथ ही ब्लॉक स्तर ही नहीं गांव और बूथ लेवल तक के मैनेजमेंट को भी मजबूत किया जा रहा है। सरकार और संगठन में सामंजस्य की तैयारी है और जो जहां मजबूत है वहां उसे ज्यादा जोरदार बनाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।