अगवा बेटी के लिए किसान अब कहां करे फरियाद?

इलाहाबाद। सत्तासीन होने के बाद अखिलेश सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती पटरी से उतरी कानून व्यवस्था को दुरूस्त करना, पुलिस की मनमानी को रोकना था। पर, पुलिस है कि हम नहीं सुधरेंगे की तर्ज पर कार्य करने पर आमादा है। भले ही इसके चलते सरकार को विधानसभा से लेकर सड़क तक बार-बार शर्मिंदगी क्यों न उठानी पड़ रही हो। समाजवादियों को जनता के सामने निरूत्तर होना पड़ रहा हो। कुंडा से देवरिया तक सरकार के मुखिया और पुलिस के मुखिया को तगड़े जनाक्रोश का सामना क्यों न करना पड़ रहा हो। पता नहीं इन घटनाओं से ‘सरकार-बहादुर’ सबक ले भी रही है या नहीं।

अखिलेश जी! आवाम के इस गुस्से को समझिए

इलाहाबाद। कुंडा में पुलिस अफसर की हत्या, जिन पर जनता के सुरक्षा की जिम्मेवारी, वे सरेआम मारे जा रहे हैं। डिप्टी एसपी के साथ बलीपुर गांव जा रहे वर्दीधारी सशस्त्र पुलिसकर्मियों का भयवश खेतों में घंटे छिपे रहना। पुलिस अफसर के कत्ल में खून के छींटे सरकार के कैबिनेट मंत्री के दामन पड़ना…आखिर क्या हो रहा है यूपी में। इन घटनाओं से उपजे कई सवाल, जवाब तलाश रहे हैं।

इलाहाबाद में गोली मारकर प्रधान पति की हत्‍या

इलाहाबाद। गंगापार के नवाबगंज में अपराध थमने का नाम नहीं ले रहा है। कछार के अकबरपुर उर्फ गंगागंज में दो मार्च को दिनदहाड़े ताबडतोड़ गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया। कत्ल के पीछे पुरानी चुनावी रंजिश बताई जा रही है। मृतक के भाई नौशाद ने थाने में एफआईआर दर्ज कराई है। इसमें उसी गांव के ही तीन लोगों को नामजद कराया गया है। पुलिस अफसरों ने मौके पर पहुंचकर लोगों से पूछताछ की। देर शाम तक किसी भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जा सका है।

फिर मिलने के वादे संग कल्पवासी लौटने लगे घर

इलाहाबाद। संगम की रेती को माथे लगा त्रिवेणी मइया का आशीष मांगा। पड़ोसियों से गले मिले और फिर मिलने का वादा कर लाखों कल्पवासी संगम नगरी से अपने-अपने घरों को विदा हो गए। ना कोई नेवता ना कोई चिट्ठी, बिन बुलाए ही करोड़ों लोगों का हर साल सैकड़ों-हजारों किमी दूर से यहां आना। एक अलौकिक उत्सव… जहां शब्द फीके पड़ जाते हैं। संगम के किनारे बालू की रेती पर आनंद लेना… इसे सिर्फ महसूस ही करके जाना जा सकता है।

साले की गुदगुदी से दुल्‍हा बना दुर्वासा, बैरंग लौटी बारात

इलाहाबाद। शादी का मंडप सजा था। बैंड बाजे और डीजे की धुन पर घराती-बाराती दोनों मस्ती में डांस कर रहे थे। सजी-संवरी नई नवेली दुल्हनियां को थोड़ी देर बाद ही मंडप में सात फेरे लेकर सपनों के राजकुमार की हमेशा के लिए हो जाना था। यह तो तैयारी का एक हिस्सा था पर भाग्य में तो कुछ दूसरा ही बदा था। द्वारचार के समय ही ‘तूफान’ आ गया। दूल्हे राजा दुर्वासा बन चुके थे। उनका रौद्र रूप देखने लायक था। आगे-आगे दूल्हे राजा पीछे-पीछे भागता एक किशोर। दोनों चकरघिन्नी बने भाग रहे थे। घराती-बराती के लिए यह सब किसी अजूबा से कम न था। लोग समझ ही ना पा रहे थे कि ये क्या हो रहा है।

कुंभमेला में बारिश का खलल, उजड़ा मेला, हजारों घर वापसी को मजबूर

इलाहाबाद। विश्व का सबसे बड़ा मेला प्रयाग का महाकुंभ। तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं वाले इस धार्मिक मेले पर आखिरकार देवराज इंद्र भारी पड़ गए। पैंतीस किमी परिक्षेत्र में फैले इस धार्मिक मेला की अच्छी खासी रौनक बिगड़ गई। दो दिन की मूसलाधार बारिश ने गृहस्थ कल्पवासियों को छोड़िए, संत-महात्मा, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, दंडी स्वामियों को मेला से वापसी को मजबूर कर दिया है। तीर्थराज प्रयाग के संगम तट पर कई मील दूर तक बसा धर्म का महानगर उजड़ने की ओर है। दो दिन पहले तक लाखों लोगों की भीड़ से गुलजार रहने वाली कुंभ नगरी में राहत कार्य जरूर चल रहे हैं पर वे नाकाफी हैं।