जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये। पूरी धरती से अंधेरा मिट जाये, ऐसी महत कल्पना कोई आदर्शकामी कवि मन ही कर सकता है लेकिन अंधेरा और घना न हो, कम हो, इतना तो सभी चाहते हैं। मगर केवल चाहने भर से कुछ नहीं होता। चाहने भर से सूरज नहीं उगा करता, उसे उगाना होता है। चाहने भर से नदियां अपनी धारा नहीं बदलतीं, उन्हें मोड़ना होता है। चाहने से नहीं, करने से कुछ भी हो सकता है, सब कुछ हो सकता है। हम हर साल दीवाली मनाते हैं, दीये जलातें हैं।