उस गिरोह में चैनल मालिकान भी शामिल हैं, जिनकी चाकरी हमारे ‘सरोकारी पत्रकार’ बजा रहे हैं

: बनाना चैनलों के मैंगो पिपुल कौन हैं? : अच्छा हुआ कि डेविड कैमरन ने कह दिया कि जलियाँवाला बाग वाली घटना शर्मनाक थी। शर्म  उन्हें सचमुच में आयी या नहीं पता नहीं, पर अपने टीवी एंकरों के कपोलों पर लाली साफ नजर आयी। 'हाय! मैं शर्म से लाल हुई' की तर्ज पर बताने लगे कि हमारे पुराने आका को अपने करतूतों पर शरम आ रही है। जितना कैमरन शर्माये उससे ज्यादा अपने चैनल शर्माये।

”हड़ताल से धनपशुओं का नुकसान… होने दीजिए… रोज़ फायदा ही कमाएंगे हरामखोर?”

Abhishek Srivastava : गुरदास दासगुप्‍ता कुछ दिनों से इस बात को लेकर परेशान थे कि हड़ताल सम्‍बन्‍धी बयान कोई नहीं छाप रहा/दिखा रहा है। दस दिन पहले तक स्थिति यह थी कि भाषा के एक रिपोर्टर दीपक रंजन ने जब उनका एक साक्षात्‍कार लिया, तब जाकर खबर चल सकी। प्रधानमंत्री के परसों अपील करते ही हालांकि खबर अचानक बड़ी बन गई। और चैनलों की स्‍वामिभक्ति देखिए कि आज सब जगह लिखा आ रहा है: … हज़ार करोड़ की हड़ताल/देश को नुकसान, आदि।

‘हड़ताल पर पुण्य प्रसून बाजपेयी का भ्रम आजतक चैनल पर साफ दिखा’

Abhishek Srivastava : ‎'आज तक' चैनल के रिपोर्टर पुण्‍य प्रसून वाजपेयी हमेशा की तरह आज भी पटरी से उतरे हुए हैं। हड़ताल पर उनका भ्रम साफ दिख रहा है, न निगल पा रहे हैं, न उगल पा रहे हैं और जबरन डबल विंडो में बीजेपी की रैली के साथ उसका घालमेल कर के खिचड़ी पकाए दे रहे हैं। अचानक कभी स्‍वदेशी जागरण मंच के किसी नेता का प्रोफाइल बताने लगते हैं, तो कभी अहमदाबाद के बस स्‍टैंड पहुंच जाते हैं। उधर उनकी सहयोगी महिला रिपोर्टराएं नई दिल्‍ली स्‍टेशन पर भारी भीड़ बता रही हैं, लेकिन फ्रेम में सामान्‍य दिनों से कम भीड़ दिख रही है।

जब भी हड़ताल होती है तब सारे चैनल सरकार और पूंजीपतियों के रनिंग डॉग हो जाते हैं

Himanshu Kumar : समाज के अन्याय के मामलों में कानून का बहाना बनाने वालों को ये भी स्वीकार कर लेना चाहिये कि जनरल डायर का गोली चलाना भी कानूनी था. भगत सिंह की फांसी भी कानूनी थी. सुक़रात को ज़हर पिलाना कानूनी था. जीसस की सूली की सज़ा कानूनी थी. गैलीलियो की सज़ा कानूनी थी. भारत का आपातकाल कानूनी था. गरीबों की झोपडियों पर बुलडोजर चलाना कानूनी है. आज की हड़ताल गैरकानूनी है. अंग्रेज़ी राज का विरोध गैरकानूनी था. सुकरात का सच बोलना गैरकानूनी था. कानून और गैरकानूनी तो ताकत से निर्धारित होते हैं महाराज. आज तुम्हारे पास ताकत है इसलिये हम गैर-कानूनी है. कल जब हमारे हाथ में ताकत होगी तब ये मुनाफाखोरी और अमीरी गैरकानूनी मानी जायेगी..

”कोई भी समाचार चैनल लगाइये और देखि‍ए, कैसे ये चवन्‍नी चोर पत्रकार सपनों की हत्‍या करते हैं”

Jagadishwar Chaturvedi : दो दिन की हड़ताल के बाद मीडिया में जनता बनाम मजदूरवर्ग के हितों के सवाल को खड़ा किया जा रहा है। बार-बार यह दिखाया जा रहा है हड़ताल के कारण बीमार को अस्पताल पहुँचने में तकलीफ हुई, बच्चे स्कूल नहीं जा पाए, आदि सामान्य जीवन के त्रासद दृश्यों को मजदूरों की हड़ताल को जनविरोधी साबित करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। सच यह है कि अपनी मांगों की सुनवाई के लिए मजदूर सालों-साल इंतजार करते रहे हैं, कोई उनकी बात नहीं सुन रहा। औने-पौने मेहनताने पर काम कर रहे हैं। अधिकांश मजदूर अकल्पनीय शारीरिक कष्ट में रहकर काम कर रहे हैं। मीडिया में मजदूरों के कष्टों को न बताना मजदूरों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। यह उल्लंघन हमारा तथाकथित लोकप्रिय मीडिया रोज करता है। वे साल में एक भी दिन मजदूर की बस्ती में नहीं जाते।

भारत बंद की एकतरफा नकरात्मक रिपोर्टिंग हो रही

Mayank Saxena : भारत बंद की एकतरफा नकरात्मक रिपोर्टिंग क्या ये साफ करने के लिए काफी नहीं कि देश और मीडिया को कौन चला रहा है…मीडिया के जन-सरोकारों के दावे सुनते वक़्त आगे से ग़ौर कीजिएगा…आदिवासियों पर बंदूकें तान, गोलियां चला कर और रेप कर के विस्थापन करवाने के नज़ारों को ब्लैक आउट कर देने वाली मीडिया को मजदूरों की हिंसा तो दिखती है…पूंजीपतियों का हज़ारों करोड़ का नुकसान दिखता है…लेकिन सत्ता और पूंजीपतियों की हिंसा से परहेज़ किया जाता है…ज़ाहिर है कुछ तो गड़बड़ है…अगली बार जब कोई बड़ा पत्रकार किसी मंच से कहे कि इस देश में मीडिया ही है जो काफी कुछ बचाए हुए है, तो हंसते हुए उनके मुंह पर निकल जाइएगा…

आम आदमी पार्टी इस हड़ताल को एतिहासिक मानती है और इसका समर्थन करती है

Aam Aadmi Party : देश के 11 केन्द्रीय मजदूर संगठन हड़ताल पर हैं। साथ ही आटो, टैक्सी बस और कई राज्यों में सरकारी कर्मचारी भी हड़ताल पर हैं। हड़ताली कर्मचारियों की प्रमुख मांगें हैं – 1)महंगाई के लिए जिम्मेदार सरकारी नीतियों में बदलाव 2)महंगाई को देखते हुए न्यूनतम भत्ता बढ़ाया जाए 3)सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी प्राइवेट कंपनियों को न बेची जाए 4)आउटसोर्सिंग के बजाए रेग्युलर कर्मचारियों की भर्तियां हो…